अवधी डायरी (कालम ) शान्तिमोर्चा दैनिक , अयोध्या -फैजाबाद

awadhi diary

अवधी डायरी /ललाम लेख

@ मिसिर भारतेंदु 



1

.हमको लिखेव है कहाँ 💐(ललाम लेख-1).


अवधी डायरी 


# का लिखा जाय?

@भारतेन्दु मिश्र

आजकल झूठ मूठ कि तारीफ औ लफ्फाजी केर जमाना हवै। मालुम होति है कि हम सब जने चौतरफा महा महाकबियन औ बड़े ऊँचे दर्जे वाले लेखकन ते घिर गे हन। लेखकन का अस घटाटोप पहिले कबौ साहित्य कि दुनिया म न भा रहै।कुछ बड़के हिंदी के महा किसिम के बिदुवान औ बिदुसी अपनै महातम बतावै म जुटे हैं, दूसर कुछ अवधिया अवधी के नाम पर खाली राम राम कीन करत अहैं।बाकी दूसरे मसलन ते मसट्ट खैंचि लेत हवैं।लेकिन जब मौका मिलत है तो पहिलिही कूद मा अवधी लिखाई पढ़ाई के सम्मान पुरस्कार गपचै खातिर जाँघिया बनियाइन बदलै लागत हवैं।पुरस्कार कि बात का बताई अपने हिन्दी संस्थान  के अवधी पुरस्कार तो तीन चार जने आपसै म बाँट लेत रहैं।बरसन यहै रीति चली कि अवधिया  बिना किताब के कृति सम्मान लेत रहे। लेकिन   जी अवधी क बोली बतावत हैं उनका अवधी के नाम ते कौनो पुरस्कार सम्मान न लेक चही,जो गलतफहमी म लै लिहिन हैं तो वहिका अब लौटाय देयक चही।लेकिन अब उनते अत्ती नैतिकता कि उम्मीद काहे कीन जाय ?

अवधी म कउनो काम करैया बड़ी मुस्किल ते दिखाई देत है। पूरे अवध मा माटी के ढूह अस कुछ विदुआन ढेरियान हैं जिनकी जिंदगी तुलसीदास कितौ अवधी हिंदी कि कमाई खात खात उनका अपच औ सुगर हुइ गै। कुछ हेड बनै के लालच मा दूबर हुईगे,कुछ बिरादरी के झगड़न म फँसे हैं। कुछ तो पार्टी बदल लिहिन कुछ भगुआ ओढ़ लिहिन हवै।कुछ खालिस सवर्ण बनिगे ,कुछ ख़ास अम्बेडकर वादी बने कि लाइन म लगे हवैं। भासा तो यक्कै आय लेकिन ऊ जो कहा जाति रहै -चारि कनवजिया तेरह चूल्हा वाली मसल अबहिनौ हमारे समाज पर लागू होति हवै। 

ई तो जनतेव नहीं कि अवधी के सुद्ध पढ़इया लिखइया कौनी  तकलीफ ते गुजरत हैं।कुछ और अकाशवाणी दूरदर्शन औ अखबारन मा एड़ी घिस कै आपन कद घटाय लिहिन मुला पढ़ीस, वंसीधर,रमई काका,मृगेश,केदारनाथ अग्रवाल,त्रिलोचन शास्त्री,विश्वनाथ पाठक का नामो नहीं चीन्हति हैं।अस अवधियन  ते का उम्मीद कीन जाय ?लेकिन जब कहूँ अवधी कि बात चलै तो उनका पूरा लबेद गावा जाय उनही पर टिप्पणी कीन जाय,कइयो दफा उनका उल्लेख बहुत जरूरी आय।उनके उल्लेख म उनकी कुर्सी औ कुर्सी के चरिव पावँन का उनके कुल खानदान, पानदान के साथै तफसील ते गावा बजावा जाय।

लखनउवा तो अवधी म बतलाय म सरमाय जाति हैं, मालुम होत है कि अवधी ते जुड़ते खन उनकी नाकै कटि गै। उनका गंवार समझे जाय कि चिंता सतावै लागत हवै।उनके लरिका बिटिया उनते सर्मिन्दा होय कि कला सीख लिहिन,वुइ अब हिंदी बोलै म सर्मिन्दा होय लाग हैं।कुछ हिन्दी के प्रगतिशील औ जनवादी लोटिया डोर लिहे दूर कि कौड़ी खैचे खातिर अपन जिउ हलकान किहे देत हवैं,लेकिन असल म  लोकभासा और सर्वहारा जन ते दुइ मीटर दूर सोशल डिस्टेंस बनाये रहत हैं। जौन समाज म रहत हवैं वाहिकी लोकचेतना वार पीठि कीन्हे रहत हैं।का जनी साइत इनके परदादा मार्क्स औ लेनिन कहूँ यहि तना क्यार संदेस लिखि गे रहैं कि लोकभासा बुर्जुआ चिंतन कि प्रतीक आय।लेकिन जब कौनिव रपट छपत अहै तो अपन नाव हेरै लागत हैं।बस अपनि तारीफ सुनिकै गुलगुला हुइ जाति हैं।

कुछ पढ़ीस, वन्सीधर सुकुल, औ रमई काका के गोतिया जौ कुछ अवधी म लिख पढिके सामने लावा चाहें तो वाहिका ई बड़के प्रोफेसर, पत्तरकार आगे नहीं आवै देत।संस्कृत के नाटककार भास कहिन रहै-

"शरीरे अरि: प्रहरति, हृदये स्वजनस्तथा।" माने दुस्मन देहीं पर वार करत है मुला परिजन तो बिना लाठी डंडा सीधे करेजे  पर वार करत अहै।का कही कुछ अपनेहे अवधिया अपनी ही अवधी माई का अपमानित करै पर आमादा देखात हवैं।

बात यहौ आय कि अवधी के नाम पर तमाम खर पतवार एकट्ठा हुइगा है। अब जब अवधी गद्य कि बात कीन जाय या सार्थक सहित्य कि चर्चा होय तो कुछ भकुआ अपनी तारीफ के बिना जिउ देय पर आमादा हवैं।कहति हवैं हमका सरकारी सम्मान मिल चुका हवै | अरे भाई अवधी के नाम ते सरकार ते इनाम मिल गवा,तो वहिका खाव पियो,बसपा,सपा,भाजपा,जौने सरकार ते पुरस्कार मिला है वहिके दुआरे जायके सलामी बजाओ।साखा पर जाओ दंड प्यालो। अब तुम सार्थकता क्यार सर्टिफिकेट आलोचक ते माँगत हौ,या बात कुछ हजम नहीं होत। कुछ लखनौवा अवधियन के किस्सा ग़ज़ब हैं।एक्को लाइन दुसरें पर न लिखिहै मुला अपन तारीफ़ सुनैकि उनकी लालसा लार तना मुंह ते चुआ करत है। नयके लेखकन ते यहै निवेदन अहै कि - अस अपने म खोए लरबहे लेखकन का दूरेत परनाम करो।

आलोचना गोपी के नाव कि चिट्ठी तो आय ना , कि सबै ऊधौ पर टूटि परौ--"हमको लिखेव है कहाँ ? हमको लिखेव है कहाँ ?"...

तो भैया यू समझि लेव कि अपने म मगन अपने कमरा म कूदै वाले जो लिखइया पढ़इया महाकबि,लेखक बने  देखात आंय वुइ बोली औ भाखा कि दुबिधा म फंसे हवैं।औ ई जो कबिसम्मेलनी बहादुर मंचन ते डींगे हांकत हवैं वुइ सब चौदह खाना के रिंच बनिगे हैं।हिंदी के मनई माने चौदह खाने वाला रिंच,चहै जउन ढेबरी कसवाओ,खोलवाओ,माने उनका बोलाय  लेव तो सब ठीक हुइ जाई।अवधिया समाज के हिन्दी के तमाम मास्टर प्रोफेसर लोक भासा कि बात पर भिन्नाय जात हवैं।काल्हि एक हिंदी बचाओ वाले सज्जन मिले कहेनि - अवधी बोली तो अब हिन्दी म समाय गय है।अब अवधी अवधी काहे कीन  करत हौ ? 

हम कहा-बोली तो कूकुर बिलार कि होत हवै, मनई तो  भाखा म बतकही करत अहै।

बोले- खड़ी बोली हिंदी बनिगै,अवधी भाखा अब बोली बनिगै।

हम कहा-हिंदी ते खुसरो,कुतुबन,मंझन,दाऊद,तुलसीदास, जायसी,रहीम,नरोत्तम सब निकर जाँय तो का बची?

बोले- बहुत नुकसान हुइ जाई।

हम पूछा-तुम्हार लरिका कौने दर्जा म पढ़ति हवै?

बोले- डीपीएस म बारहवीं कइ रहा हवै।साइंस साइड ते पढ़ति हवै।

हम पूछा-अवधी म कबौ बतलात हवै?

बोले-ऊ तो हिंदी औ अंग्रेजी म बतलात हवै।वहिकी मातृभासा तो हिंदी आय।

हम पूछा-हिंदी नीके  लिखि लेत होई ?

बोले- कहाँ भैया,ऊ सब अंगरेजी माने रोमन लिपि मा लिखत हवै।

हम पूछा - ‘तुमार मातृभासा कौनि आय ?’  

बोले- ‘हिन्दी’...

हम पूछा - ‘तुम्हरी अम्मा कि मातृभासा कौन रहै ?’ 

तनी खांस के बोले- ‘अवधी’।

हम कहा -’तुमरी अम्मा कि मातृभासा अवधी रहै तो तुमार मातृभासा अवधी न होई ?’

बोले -' सही कहेव..दादा! अवधी के विकास ते हिंदी के कौनो खतरा नहीं है, लेकिन का कीन जाय हिंदी औ सब हिंदुस्तानी भासा अंग्रेजी कि बंधुआ बनि चुकी हैं।’ 

हम कहा- ‘ भासा बिज्ञान कि नजर ते द्याखा जाय तो सब भारतीय भाषा हिन्दी कि बोली बनि गयी हवैं,लेकिन साहित्य कि नजर ते देखिहव तो अवधी हिन्दी कि अजिया देखाई देई। वह हजार  साल कि बुढ़िया अम्मा  जी का सब माल असबाब या नयेकी बिटेवा हिन्दी हड़पि  लिहिस हवै, वह अवधी हमार मातृभासा आय। मातृभासा आय तो अब नयी सिच्छा नीति म सरकार अवधी भोजपुरी बुन्देली औ ब्रज माध्यम ते प्राइमरी कि किताब बनवाय चुकी है।अब नए पुस्तकालय औ नई पाठ योजना बनावेक परी।’ 

वुइ हिन्दी बचावै वाले बिदुआन हमका तनी देर बेचैनी ते  घूरत रहे। फिर हमका  सनकहा बैल कितौ  बौखल समझिके हिकारत से  जय सियाराम कहिन औ खोपड़ी झटक के  निकर लिहिन।

अब अवधी के लिखइया पढ़इया जागि रहे हैं।कुछ नयके लेखक समझे लाग हैं कि -का लिखा जाय? जो कुछ अवधी के नाव ते साहित्य ढेरियान हवै वहिमा मौलिक चेतना कम हवै।धरम पाखंड क्यार घालमेल औ करकट जादा है।नयके पढ़इया लिखइयन ते अवधी क बड़ी उम्मीद हवै।अब सोसल मीडिया के जमाने म लिखे पढ़े कि औ अपन बिचार साझा करेकि सुबिधा औ आज़ादी हम सबके तीर हवै।कुछ अवधिया एहिका सही इस्तेमाल कै रहे हैं।तार्किक आलोचना के बाद जो कुछ टिकी वहै नीक साहित्य होई।जीमा हमरे संबिधान कि सामाजिक मरजाद बनी रहै वहु सही साहित्य होई।जीमा गरीब किसान मंजूर स्त्री औ दलित के हक के साथ लेखक खड़ा देखाई देई वहै सही प्रगतिशील साहित्य होई।  लिखे ते जादा जरूरी यहौ आय कि लेखक क यह तमीज होय कि का न लिखा जाय? नफरत बोवै वाली ,मर्दवादी,जातिवादी, धार्मिक बयानबाजी औ बदफरूसी साहित्य न आय।

जय अवधी जय अवधिया।

@#भारतेंदु मिश्र







2.मनई कि गिरगिटान  ☺️💐👍( ललाम लेख 2.)

#मिसिर भारतेंदु

अपने अवधियन म मनई कम हैं गिरगिटान जादा हवैं।मनई तो माने अपने रंग मा सब जगह के मनई यकसाँ होत हैं।लेकिन यू जौन अवधियन क्यार अवध वाला इलाका है वहिमा मनई अपन रंगु बदलै खातिर जाना जात है।

कम मनई जानत है कि पुरब मा फैज़ाबाद अवध रहै औ पछाँह मा महमूदाबाद अवध रहा। ऐहिक बीच मा जौन सब इलाका आवत रहै सब अवध माना जात रहै। एहिम महाबीर प्रसाद द्विवेदी प्रसाद,निराला,प्रेमचंद,महादेवी वर्मा, रामविलास शर्मा, केदारनाथ अग्रवाल, त्रिलोचन,नामवरसिंह, जैसे नामी कबि लेखक पैदा भे, मुला एहि धरती का भाग द्याखो कि अपनी माटी अवधी क्यार बिकास न हुइ पावा। का अमीर ख़ुसरो ,मुल्ला दाऊद,जायसी,तुलसी अवधी बानी के कबि न आँही? कुछ ई हिंदी के बैल प्रोफेसर इन सबकी भासा का हिंदी औ अवधी का बोली बतावति हैं। जाने कौनि पढ़ाई किहिन हैं ई हिंदी के घटिया गिरगिट मास्टर।यू अवध क्यार इलाका अजोध्या के आसपास बहुत दूर तके फैला रहै।अब जनता बढ़ी तो इलाका उत्तर मां नेपाल औ दक्खिन मा बघेल खण्ड तके फैलत गवा।ऐसी लखीमपुर औ एटा तके अवधियन कि एक्कै भासा है वैसी बनारस गोरखपुर तके सब अवधी इलाका आय।

हम याक दफा मैहर औ उमरिया के जंगल मा घूमै गएन तो हुआँ के मनई सब हमरीही भासा मा बतलाय लाग। हम गाँव के समझदार मनई माने मास्टर खोजि के वहिते पूछा वहु कहेसि या बघेली बोली आय।हमार जिउ जुड़ाय गा।वहिका अपनी बोली भासा मा बतलाय मा तिनुको सरम न आई।हमका सबियों समझे मा कौनिव कठिनाई न भइ।

हियाँ दिल्ली मा नौकरी के बहाने बहुत जिनगी कटी तो द्याखा कि पंजाबी,भोजपुरी , गढ़वाली, कश्मीरी सब मनई अपन साथी संघाती देखते खन अपनी मातृभासा मा बतलाय लागत हैं।काहेते सुख दुख तो अपनी मातृभासा मा निकरत हवै। लेकिन अवधियन मा कबौ अस अपनी बोली भासा क्यार अपनपौ न दीख परा।

हियाँ फ़िजी, मॉरीशस,वाले आवत हैं तो अवधी मा बतलात दीख परत हैं मुला अपनअवधिया खास कइके लखनौवा उहै गिरगिट की चाल पकरे घूमत हैं।ई सब दाढ़ीजार अंग्रेजी बूंकै लागत हवैं। ई गिरगिट के भेस मा मनई अपन बोली बानी छोड़के नकली सभ्य बने के चक्कर मा दूसर भासा बहुत जल्दी सीख लेत हैं। हम तो यू जान लिया कि हमार अवधिया मनई - मनई कम गिरगिट जस जादा देखात है।

# भारतेंदु मिश्र

प्रबन्धक ,अवधी समाज


3. 💐

अवधी डायरी

 

फक्कड़ बाबा 

# मिसिर भारतेंदु 

 

अजोध्या  मा राम मंदिर बन रहा है। सदियन क्यार बिबाद खतम भवा, सुपरिम कोर्ट का फैसला आय गवा। अवधियन कि खुसी साचौ बढ़िगै। का जनी कतने करोड़ यहिमा खर्चा होई,ठीक आय कि अब रामलला क्यार मंदिर अजोध्या म न बनी तो अउर कहां बनी? वुइ हमरे देसवा के सांस्कृतिक गौरव आंय।दुनिया भरे के मनई अजोध्या उनके दरसन खातिर आवत अहैं।अब डबल इंजन वाली  सरकार हवै।उत्तरप्रदेश मा तो अजोध्या तीरथ क्यार बढ़िया उद्धार हुइ जाई। 

वहि दिन सरजू मैया के घाट पर टहलित रहेन तो हमका उज्जल मिरजई पहिने  फक्कड़ बाबा मिले।हम कहा- राम राम, बाबा।वुइ हमरी तन देखिके  कुछ बरबराय लाग।उनके नेरे जायके पूछा का भवा अब तो मंदिर बन रहा है?

वुइ बोले-राम लला आजाद हुईगे,लेकिन अभई उनकी परजा कि भासा अवधी आजाद नहीं भई। तमाम सरकारी जोजना बनी हवै, मुला अजोध्या मा राम सीता हनुमान सहित उनकी परजा कि मातृभासा खातिर कौनिव योजना सरकार कि तरफ ते नहीं सुनाई दिहिस। सोचित है कि अवधी के बिना कस होई राम राज ?  कैसे बनी अवधेस क्यार तीरथ धाम? अवध विश्वविद्यालय तो है लेकिन हिंया अवधी भासा क्यार बिभाग तके  नहीं बना। अरे कोई भाखा संस्थान बन जाय तो वहै नीक काम होई,या अजोध्या ग़ज़ब कि चुप्पी साधे हवै,औ हियाँ के मास्टर औ पढ़ाकू नौजवान लरिका बिटेवा  सब  चुपान बैठ हैं,सिया राम जी की बिस्व भासा अवधी कि पढ़ाई, लिखाई औ वहिमा सोध वगैरह करैकि  कौनिव सुबिधा नहीं है। अवधी अखबार को कहै , अबहीं हियां ते याक पत्रिका तक नहीं निकरत हवै। इनका भाखा कि कौनो चिंता नहीं है। भाखा के बिना देखेव बसि हिंया पूजा पाखंड पंवारा रहि जाई, बाकी सब बिलाय न जाई…?

हम कहा- बाबा! अबकी देवारी म तो दिया जलावै क्यार बिस्व रिकार्ड बनिगा हवै। पूरी दुनिया अजोध्या कि रौनक देखि लिहिस।भासा खातिर तो  हिंया रामायण शोध संस्थान बनिगा हवै। 

वुइ फिर बरबराय लाग-

 बहुत नीक आय जो यू रिकार्ड बनिगा। दुनियाभरेम अजोध्या क्यार नाव हुइगा।लेकिन आगे वहिते का होई ? आधुनिक अवधी के पढ़इया आगे कहाँ ते मिलिहैं? गोरखनाथ,कबीर,जायसी,तुलसी सबका ज्ञान औ साहित्य ई महाकबिन की भासा, वहि भासा कि परम्परा के साथै आधुनिक अवधी क्यार साहित्य,कथाकिहनी, नाटक ,नौटंकी,खीसा,किसानी,निर्गुनिया, सगुनिया संतन कि अवधी बानी सब ज्ञान विज्ञान कि जानकारी औ लोक परम्परा के बारे म नौजवान अवधियन क न पढ़ावा  जाई ?

अब एतने बड़े बिदुआन गोरखबाबा  के भगत  योग्य मुख्यमंत्री के होने से अगर गोरखनाथ,जायसी औ तुलसीदास जी की भाखा खातिर कोई संस्था बनि जाय तो यू बड़ा काम न होई? रामलला कि परजा माने आजादी के साथै अवध प्रदेश के रहवैया औ उनकी अवधी भासा हरियाय न जाई?

हम कहा - बाबा ,गोरखबानी का अवधी कि किताब आय ?

वुइ अपन माथा पीटके  बोले- 

    तुम पंचन का यहौ  नहीं मालुम ? तनी देखा जाय। आगे फक्कड़ बाबा सुनावै लाग --

हसिबा बोलिबा रहिबा रंग। काम क्रोध न करिबा संग।।

हसिबा खेलिबा गाइबा गीत। दिढ़ करि रखिबा अपना चीत।।

हसिबा खेलिबा धरिबा ध्यान। अहनिसि कहिबा ब्रह्म गियान।।

हसै खेलै न करै मत भंग।ते निहचल सदा नाथ के संग।।

हबकि न बोलिबा ढबकि न चलिबा धीरे धरिबा पांव।

गरब न करिबा सहजै रहिबा भणत गोरख  रांव।।(गोरखबानी ) 

का यहि कबिता कि भासा अवधी न आय? जोगी जी तो सब जनतै हवैं।

हम कहा- बिल्कुल सही कहेव बाबा,जोगी जी ते का छिपा है?

बाबा बोले- चुप रहौ,अवधी भासा खातिर हिंयन के पढ़इया लिखइया मनई  कहूँ आगे आवत देखे हौ ? चमचई खातिर जोगी जी के भगत बने सब घूमत हैं मुला गोरखबाबा कि भासा केर परवाह नहीं करत। भोजपुरी वाले भैया बहुत नीक हैं वुइ दिल्ली, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश सब जगह इकट्ठा हुइके  भोजपुरी अकादमी बनवाय लिहिन। काशी बिस्व विद्यालय म भोजपुरी भाषा विभाग खोलवाय लिहिन।तुम सब का किहेव? हमार अवधिया अवधी की नगरी अजोध्या मा अवधी के नाम पर कौनौ संस्थान तके न बनवाय पाएन। एक अवधी अध्ययन केंद्र सुना रहै वहौ खटाई म परिगा। जय होय तुमरे अस जोगी मोदी भक्तन की।

हम पूछा- बाबा सरकार ते का चाहत हौ?

अरे, अवधी भासा कि अकादमी ,कौनो संस्थान,अवध मा बनै तो अवधी भाखा म पढ़ाई लिखाई चालू होय। हियां न बनी तो का अमरीका मा बनी।खाली मंदिर बने ते पूजा पाठ होय लागी अउर कुच्छो न होई अपनी मातृभासा खातिर अपने नेता ते तुम अपनि बात न करिहौ तो अउर को करी? मांग तो उठाओ अपना चित्त दिढ़ कै रहेव,फिर जो होई देखा जाई।बाबा एतना कहि के हफ्फै लाग। हम उनका पानी पियवा,तखत पर बैठावा। उनकी तबियत बिगड़ जाए वहिते पहिले हमहूँ उनते राम राम कीन औ अपन राह लीन। अब ऐसे सीधे सच्ची ज्ञान कि बात करै वाले फक्कड़ बाबा के मुंह को लागै।उनके  तीर जादा देर कस बैठा जाय। हिंया तो सगुनिया भगति कि बयारि चल रही है । कबीर पंथी औ नाथ जोगी  निर्गुनियन तीर को खड़ा होय?

 

# भारतेंदु मिश्र 

प्रबंधक ,अवधी समाज 

💐अवधरानी ते मुलाकात💐 (ललाम लेख-4)

#मिसिर भारतेंदु

मातृभासा अवधरानी ते पहिल मुलाकात तो गाँवे मा भय।अम्मा बुआ ,दादा सबके बतखाव ते कब अवधी ते नाता जुड़ि गा, पता नहीं चला।जस जस तनी सायन होति गएन तो तुलसीदास घरहिम बैठ रहैं, वुइ रामचरितमानस के अपने ढब ढंग ते पकरि लीन्हेंनि।तब तक जनिही न पाएन कि यू कीबिध सब मातृभासा ते नाता जुड़त चला गा।तनी और बड़े भएन तो जब स्कूल गएन हुवौ यहै मातृभासा अवधी मिली उंच नीच हिन्दू मुसलमान सबै अवधिया रहैं| बस लिखाई पढ़ाई खड़ीबोली मा होय लागि रहै,लेकिन बतकही सब अवधिय मा होत रही।मास्टर समझावत रहे कि अवधी दिहती भासा आय हिंदी सहरुआ आय। जब गांव ते लखनऊ आय गएन तो हियाँ अवधी के साथै सहरुआ भासा माने हिंदी दुनहू ते साबिका परा। तहूं घर परिवार मा साथिन के बीच या अवधी भासा सदा चलतै रही।हमरे पुराने लखनऊ म आप जनाब वाले जादा रहैं तो घर ते बाहर सब कैती उर्दू मिली जुली अवधी चलत रहै।

बचपने कि यादि आवत है कि गर्मिन के दिनन मा दुआरे तरवाहे तरे गांव के दस पांच मनई सदा बैठ रहति रहैं। किस्सा किहानी कबिताई होत रहै। पिताजी कबहूँ रामचरितमानस कबहूँ हल्दीघाटी कबौ आल्हा तो कबहूँ रमई काका कि कबिताई गांव के मनइन का सुनावति रहैं।वुइ कबिता सुनावैं वहिका अर्थ बतावैं फिर कुछ संका होय तो वहिका समाधान होत रहै।

एहि तना की चौपाल सेमिनार दुआरे रोजुइ होत रही। खेती किसानी केर सब अपन संका समाधन एहिम तय करत रहैं।जब नवीं किलास मा आएन तो हमहुक हुआँ बैठक मा बैठावा जाय लाग। तबै बड़ेन के तीर बइठे मा जिउ न लागत रहै लेकिन उनके सामने कुछ कहैकि हिम्मत न रही।फिर भवा यू कि जब पिता जी घर पर न होंय तो तरवाहे तरे के मनई हमका रामायन सुनावै खातिर घेर लेत रहैं।बहुतेन का रामायन कि चौपाई यादि रहै ,लेकिन पोथी देखिके वुइ पढि न पावति रहैं | तब हम और हमार मुँहबोले चाचा कम दोस्त सीताराम दुनहू जने मिलिकै कबिता पाठ कारित रहै।

वुइ टेम हमरे गाँव के मनई रमई काका कि कुछ कबिता बार बार सुनत रहैं।जैसे - बुढ़ऊ क्यार बियाहु,अवस्थी कै बारात,लछमिनिया कजरीतीज रही,ध्वाखा हुइगा, मद्यनिषेध पर हीराललवा जैसी कबिता बहुत सुनी जाती रहीं।कथा भागवति तो चलतै रहै।हमार ननिहाल उन्नाव क्यार आय तो हियां नाना के घर मा पहिलेहे ते रमई काका कि फुहार,बौछार जैसी किताबें उनके  तीर मिल जाती रहैं।हमार दादा उर्दू मीडियम ते मिडिल तक पढ़े रहैं। जवार के माने बैद रहैं,तो दवा ले मनई आवै करत रहै।बैदकी अस कि अपने तीर ते मुफ़्त दवा देत रहैं।कोई अपने आप दवाई के पैसा दै जाय तो अलग बात है|जब अस्पताल के डॉक्टर पैसा औ खून चूसेक बाद जवाब दै देत रहैं तब ग़रीब किसान मंजूर उनके तीर आवत रहैं। कइयो मेडिकल कालेज के जवाब दीन भये मनई वुइ ठीक किहिन रहैं ।वुइ हिंदी कि पढ़ाई कम जानत रहैं। लेकिन ई दुपहरिया कि गंवई सेमिनार मा वहू बैठत रहैं।किसानी, पहलवानी औ बीमारी के बारे मा बतावति रहै|रामचरितमानस क्यार अखण्ड पाठ तो गांवन मा चलतै रहा। एहिते मातृभासा अवधी क्यार संस्कार सदा बना रहा।

अवधी के ई तना के संस्कार अब गांवन मा बिलाय गे।अब तो सब फ़िल्मी हुइगे हैं, चिलमबाजी, नसा, चोरी- चकारी अब आम बात हुइगै।अब ऊंची जातिन के लरिका एहि तना के अपराधन म जादा सामिल हैं। अब तो देखावै खातिर मनई हनुमान चालीसा पढ़त है।सबका हनुमान जी की फोटू व्हाट्सएप पर भिनसारे ते भेज देत है।बस भगति पूर हुइगै।हनुमान जी के फोटू ते बहुत पियार है तो उनकी भासा अवधी ते काहे नहीं |अपने घर गांव कि साफ सफाई औ दुसरेन कि मदति  क्यार भाव बिलाय गा है।एक जने ते हम ई नीचे लिखी चौपाई क मतलब पूछेन तो वुइ नाराज हुइगे -

बिद्यावान गुनी अति चातुर।राम काज करिबे को आतुर।।

चौपाई सुनिकै कहिन, हनुमान चालीसा यादि कीन जात हवै, मतलब ते हमका का लेना ? तबै बिना मतलब जाने मनई सब यादि किहे रहै।अब तो सब कुछ फोन मा समिट गवा हवै। बटन दबाओ जो चहौ सुनि लेव। अब मनई कि  याददाश्त कम हुइगै हवै।भजन आरती सब फोन के सहारे होय लाग हवै।

हनुमान तो राम के सब काज पूर किहिन लेकिन आजकल के कुदिनहे भगत हनुमानजी का तो खुस कीन चाहति हैं मुला अवधी बोलेउ मा संकोच करत हैं।यू दोहरा चरित्तर अब हनुमान जी जान गए हैं। यह झूठ मूठ कि भगति तो रामौ समझि गए हैं। अवधी संस्कार आचरन म उतारे बिना यहि चरित्तर ते तरक्की कस होई |जागौ अवधिया, जागौ ।

#भारतेंदु मिश्र

प्रबन्धक, अवधी समाज

5.“घर वापसी”

कोरौना काल के मंजूर(ललाम लेख - 5)

दद्दू कबौ कौनौ सोचिस न होई कि कोरौना काल मा मंजूरन कि असि दुर्गति हुइहै। चीन ते अबहीं तके तमाम समान पैसा दैके मंगावा जात रहै मुला अबतिक मुफ्त मा यू कौनौ जनलेवा किरवा आवा है।सुनित हवै कि पूरी दुनिया तबाह हुइगै है। सबते जादा तो अमरीका औ इटली के मनई मरि गए हैं।अपने देसवा मा हजारन तो मरि चुके हैं। दिल्ली ते लौटे गनीमियाँ बतावति रहैं कि या बेमारी अमीरन कि आय।गरीब किसान मंजूर तो दुखिया भूखै ते मरि रहे हैं।आपदा होय चहै महामारी हमरे देस मा मौत गरीबनै कि होत है| हम कहा- ‘गनी भाई जब महामारी आयी है तो सब अमीर गरीब सबका खतरा है ,येहिमा अमीर गरीब का करी,का कोरोना अमीर गरीब का चीन्हत है|’

‘ तुम बौड़म हौ ,तुम न समझ पैहौ|‘

‘अरे कायदे से समझाओ तो काहे न समझ पैबा |’

सुनौ –‘मकान मालिक सब कमरा खाली करवाय लीन्हेंनि।काम बंद हुइगा तो का जिंदगी थोरे बन्द हुइहै।खाना पीना तो बन्द न होई। जउन कुछ हजार दुइ हजार  बचा रहै, वहु सबियों ई दिनन मा चुकि गवा।दुइ लरिका याक बिट्यूनी और हम मेहरुआ मनई मिलाय के पाँच जने तो पांच मुँह खाय पियै वाले हुइगे। हमरे तीर राशन कार्ड न रहा,तो सरकारी रासन वाले एक दफा मदति कीन्हेनि।मकान मालिक एक महीना का केरवा न लीन्हेसि, औ ऊ और का मदति करत।अब ई दिल्ली मा 500/ रोज  कि कमाई न होय तो भूखन मरे कि नौबति आय जात है। अपने गाँव अपने घर वापिस जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा रहै । हम यू जानि लीन कि गरीब कि सबते बड़ी बेमारी भूख आय कोरौना सार हमार का बिगारी।याक दाँय सरकारी खिचरी खातिर मेहरेऊ के साथै हमहू लाइन लगावा। सबेरे छह  बजे ते लाइन लगाए रहे तो दुइ जने के खाय भरेक वा बेसवाद खिचरी दुपहर का दुइ बजे मिल पाई।अब जब रिक्सा हाँथ गाड़ी सब बन्द हुइगै तो आखिर का करी।

अम्मी जब ते यू सब हिंया क्यार हाल जानेनि तो बहुत दिक्क भईं । एक दिन तो फोन पर रोवै लागीं कहेनि "भैया हिंया घर आय जाव अल्ला के फजल ते याक रोटी जुरी तो  वहेते गुजारा हुइ जाई।" हम कहा कि अम्मी का करी  ट्रेन बस सब बन्द हवैं।

हमारी बीबी बड़ी हिम्मत वाली हैं| हमते कहेनि अइसन कब तक जिंदगी चली , न होय तो या अंगूठी बेंच के कुछ पैसा लै लेव फिर पैदरै गांव का पयान कीन जाय।जो होई सो द्याखा जाई,मौत आई तो चलत फिरत रास्ता मा आई,भूख से तो लरिकन का मरत कैसे देखा जाई।‘

उनकी अंगूठी करामाती रहै| पुराने टाइम कि अंगूठी भैया साढ़े पांच हजार कि बिकी|  भैया बीबी कि अंगूठी बेंच के चार हजार का पुरान रिक्सा खरीदा | मुंह पर बांधे खातिर चार वुइ मुसिक्का खरीदा, बस फिर सबका लैके हसन पुर के लिए तान दिया| हियाँ तक आराम से सुस्ताके रिक्सा से धीरे धीरे पांच दिन लगे| खाना पानी रस्ते मा जो मिल पावा खा लिया| रस्ते वाले खेतिहर किसान पानी पत्ता से बहुत  मदत कीन्हेनि| दुइ दफा रस्ते मा पुलिस वाले रोकिन फिर हमार किहानी समझ के बिस्कुट औ खाना दीन्हेनि| हमार किस्मत बहुत अच्छी रही ,हम सब जने ठीक से अपने गाँव आय गए| बहुत अभागे मंजूर रस्ते मा भूख पियास और अक्सीडेंट से मरि गे| एक मंजूरनी औरत तो बच्चा जनेसि, वा पेट से रही | बस भैया अल्लाह से यही दुआ है कि  ऐसा टेम परवरदिगार जल्दी कट जाए|

ठीक कहेव गनी भाई हम लोग भी भगवान श्री राम से प्रार्थना करबे|

#भारतेंदु मिश्र

अवधी डायरी

💐भाखा तिमाही 💐

#मिसिर भारतेंदु

 

सोसल मीडिया के जमाने मा कुछ नए नौजवान अपनी मातृभासा बदि चौकस हुईगे हैं। हमहुक ई जवान अवधियन का देखके बहुत नीक लागत हवै।कौनो अपने जेब खर्च ते बचत कैके साईट बनाए है,कौनो अपन अवधिया चैनल बनाए है।कोई कबिता लिखि रहा है तो कोऊ किहानी लिखत आय। एक जने तो रोIज खीसा लिखि के  सुनावत हवैं। एक भैया अवधिया चैनल बना लिहिन है।ई सबका देखि के जिउ जुड़ाय जात है।लरिका जागे हैं बिटेवा जागी हैं,अधेड़ मनई मेहेरुआ जागी हैं।रामलला के भगत जागैं तो अवधी मा बालपोथी बने।रामलला कि पढाई तो अपनी मातृभासा अवधिये  मा होई।बाकी कि हिन्दी , संसकीरत औ इंगरेजी तो बादि मा सिखिहैं।न होय तो तब तक परोसी देस नेपाल ते उनके नीतिन बालपोथी मंगवाय लीन  जाय।उनके देस म बहुत पहिले ते अवधी कि पढ़ाई हुइ चुकी है।

अबै सब अपने हिसाब ते संविधान कि अभिब्यक्ति कि आजादी ते अवधी म लिख रहे हैं।या आभासी आकासी लिखत पढ़त अजूबी है।लिखौ चहै जौने कोने म बैठिके पढ़ैया चाहै जहां होय पढिके समझिये लेत है।बरही सदी म अवधी व्याकरण बनी रहै किताब क नाव आय "उक्तिव्यक्ति प्रकरण" मुला अबै नई अवधी के गद्य कि ब्याकरण नहीं बनी, हालांकि कुछ नौजवान अवधिया लोकजीवन ते अपने समाज कि बोली बानी के साथ अपन बात ई सोसल मीडिया के मार्फत रखै लाग हवैं।तमाम नए पुरान शब्द नए अर्थ के साथै सबकी नजर म  नाचै लागत हैं। जिउ जुड़ाय जात हवै।हमहू दस साल ते येहि आकासी भासा ते जुड़े हन।अब तौ  सब बहुत आसान लागत हवै।

जब सन 1989 म लखनऊ ते सुशील सिद्धार्थ भाई "बिरवा"निकारब सुरू किहिन रहै।डॉ कैलाश देबी सिंह औ रामबहादुर मिसिर मिलिके अवधी अध्ययन केंद्र बनाइन रहै।हमहूँ तनी बहुत वहिते जुड़े रहन।तबै,अवधी मा लिखइया बसि दुइ चारि देखात रहैं। तबै अवधी के साहित्य कि छपाई बहुत कठिन काम रहा।अब ई नए जमाने मा बहुत सुबिधा हुइगै।तमाम तना के मंच  बनिगे हैं यहिमा हिंया ज्यादा कोई खर्चा नहीं है। दूसर बात कौनो केहूक बपौती या माने कंट्रोल नहीं है कि केतना लिखा जाय, कब लिखा जाय कस लिखा जाय। मनई अपन आजादी केर दायरा खुदे  बनाय लेत हवैं |अब  मनई खुद मुख्तार हुइगा हवै।यह जो तकनीकी विकास के नाते आजादी मिली है वहिका कुछ अवधिया जवान बढ़िया इस्तेमाल कै रहे हैं। का नई बिटवा का अधेड़ मेहेरुआ ,बूढ़ औ नौजवान सब सोसल मीडिया पर आवत जात देखि परत हैं।लालगंज बैसवारा के पाड़े दादा अब अस्सी कि उमिर के हुइहैं, मुला उनका अवधी खातिर उत्साह देखते बनि परति है।

हालांकि अवधी लेख किहानी छापे वाले अखबार अवधियन के पास नहीं हैं।सरकारी कौनिव पत्रिका तक नहीं है।एक "अवध ज्योति" निजी खर्चे ते कब तक चलिहै,रामुइ जानै।येहिके  अलावा कौनिव दूसर पत्रिका तके नहीं हैं। अरे गरीब किसान मंजूरन कि भासा आय अवधी तो पैसा कहां ते आवै।अखबार औ पत्रिका अपन खून पियाय के कैसे निकलै,यहौ कब तक निकल पाई पता नहीं । रामबहादुर मिसिर भैया तहूं 25 साल ते जुटे हैं, पत्रिका  लगातार निकाल रहे हैं।लेकिन ई नौजवान सब अपनी बोली भासा मा कुछ कहै ,लिखै ,बतियाय लाग हैं नीकी नीकी बिटेवा अवधी गीत गावै लगी हैं,मेहेरुआ कबिता लिखे लागी हैं।दलित सबरन सब हियाँ आभासी दुनिया के मंच पर चिरैया तना कुछु लिखि जाति हैं।कुछ सुनाय  जाति हैं।यह बहुत चमत्कार कि बात आय।

जब त्रिलोचन शास्त्री जी ते 1990 के आसपास मुलाकात भइ तो अवधी कबिता और उनके बरवै संग्रह " अमोला" के बारे मा चर्चा भइ रहै। वुइ पहिली मुलाकातै मा कहिन रहै -"अवधी मा गद्य लिखा जाएक चही।.. आप भी लिखिए।" तबते उनके आदेस ते हम अवधी मा कुछ टूट फूट लिखब सुरू कीन रहै।अब तो अवधी कि नेट पत्रिका निकरै लागी हैं।दस साल ते अमरेंद्र अवधिया भैया  " अवधी कै अरघान" निकार रहे हैं। तबहें हमहू "चिरैया नेट ब्लॉग" सुरू कीन रहै।शैलेंद्र सुकुल भैया 'जनकृति' पत्रिका क्यार अवधी अंक निकारिन रहै।अब गंगा प्रसाद गुनसेखर भैया अवधी कि नई पत्रिका "भाखा' तिमाही निकारब सुरू किहिन है।जीका उद्घाटन  "पढ़ीस जयंती" के दिन देस बिदेस के बिदुआन अवधिया किहिन है। भाखा कि टीम क झौआ भरि कै सुभकामना।कुछ नौजवान साथी सजग भे हैं।सबका बधाई।

 

# भारतेंदु मिश्र#बतकही जरूरी आय # (ललाम लेख -7 )

#मिसिर भारतेंदु

आपस मा बतलात रहेव तो समस्या क्यार समाधानु मिल जाई | जिद्दी सुभाव ते कौनौ काम न चली अड़ियल मनई जल्दी बिलाय जाति हवै |अहंकारी मनई कि बुद्धि पहले वाहिका साथ छोडि के चुपाय जाति है , फिर   अपने हाथ औ  जुबान पर ते वहिकी पकड़ छूटि जाति हवै|जब बतबढ़  होई तो मामिला गड़बड़ाय जात हवै| कबौ कबौ तो बातने मा मारपीट सुरू  होइ जात है , जादा बतबढ़  माने हिंसा होय लागी|  हिंसा ते सबका बचके रहना है , हिंसा चाहै जहां होय चाहे जिनके बीच होय मारा गरीब मनई जाति है| सबकी दबंगई याक दिन ख़तम होइबे करी | अब देखि लेव विकास दुबे क्यार सब भौकाल  बिलाय गा, औ कस मौत मिली ?   लेकिन यू समझि लेव रार ठन जाए पर नुक्सान तो गरीब मनई  क्यार होई | गरीबी तो याक बीमारी आय,गरीब कि कोई संस्कृति नहीं वहिकी कोई भासा नहीं ,माने वहिकी जिन्दगी क्यार कोई मतलब नहीं है|अवधी ऐसन करोड़न गरीब अवधियन  कि भासा आय |

अब ई साईत द्याखो कोरोना काल मा सबते जादा मनई अमरीका मा मरि चुके हैं तहूँ हुआ नस्ली हिंसा का बिरोध जारी है| "ट्रंप" कि जुबान वुनके काबू म नहीं है| अरे ई कुदरती बेमारी ते वैसेहे लाखन मनई मर रहे हैं तो ई बड़के नेतवन का सोच समझिके बयान जारी करेक चही| याक दिन  तो गजबे हुइगा कि नस्ल- भेद के खिलाफ सबते बड़े लड़ैया महात्मा गांधी के पुतले पर नस्ली बहादुर अपन जोर आजमाय के देखाय  दीन्हेनि कि वुइ कतने बड़े जंगली जानवर हवैं| हमार नेतवा  ई घटना पर जादा कौनिव  किरिया प्रतिकिरिया नही कीन्हेनि| कब कहाँ केतना बोलेक है, कब नहीं बोलना है ई सब वुनका मालुम आय |

लड़ाई खातिर तैयार बैठ परोसी  चीन के "शी जिन " पर जब सब कैती ते दबाव बना तो कुछ वुनकै राजनीति केर बरफ तनिक झरी है| हमार बीस जवान  देस पर सहीद हुइगे वुनके चालिस मरे लेकिन अब सुनाति आय कि बतकही ते मसाला सुलझाय लीन  जाई|  यू  'ट्रंप' अपने घर की आगि बुझाय नही पायेसि ,हिंया चीन और भारत के बीच समझौता करावे बदि हरबर देखात है| तनी भारत सरकार औ चीन कि समझदारी ते लड़ाई क्यार माहौल ठीक होत नजर आय रहा है| लेकिन कुछ अबही कहना ठीक नहीं है,बहरहाल बतकही जरूरी आय| बतकही होत रहै तो सांति की उम्मीद बनी रही |लड़ाई होई तो गरीबै मनई मारा जाई |

 बयान बहादुर खबीस नेतवन कि अपने हिंया माने उत्तर भारत मा कमी नहीं है| और कुछ होय चहै न होय वह याक मसल  जो कही जाति है कि  ' का पूत बतनौ के अभागी हैं?' तो हमरे तमाम अवधिया नेतवा बदफरूसी के मेडल बिजेता देखाई देत  हवैं| अवधी के ई तमाम  सपूत भारत कि संसद मा बिराजमान हवैं औ उत्तरप्रदेश सरकार कि विधानसभा, विधानपरिसद मा मिलायके सैकरन एमपी, बिधायक औ एमएलसी जरूर हुइहै-  ई सब गरीब अवधियन के वोट ते राजनीति मा आये हैं| ई सब जानत, मानत हैं बयान देत मिलत हैं कि अवधी भासा खातिर कुछ बड़ा काम करना है | एक कौनो बिधायक जब अवधी संस्थान बनावे खातिर औ अवधी के बिकास खातिर  बिधान सभा म बात उठाएस तो वाहिका अपनेहे  नेता समर्थन नहीं कीन्हेनि| कुछ तो लपकि के वाहिका मुंहु चापै खातिर तैयार हुइगे|

अब सरकार बहादुर गोरखबाबा के भगत गोरखबानी  के बिदुआन कुछ करैं तो बहुत नीक बात आय | न करिहैं तो हम गरीब अवधिया मनई  उनका का बिगार लेबै ...?..बस अपने पास तो यहै बतकही आय तो येहिका जारी रखना है| अब नेता न मनिहैं तो रामलला के दरबार मा अर्जी लगाई जाई | अब जस जस रामलला बड़े होइहैं वुनका मंदिर बन रहा है तो का वुनकी पढाई लिखाई खातिर अवधी कि जरूरत न होई | वुइ अवधी न सिखिहै तो हम सब वुनते कस बतलावा जाई ?

बतकही जरूरी है मुला बतकही औ बदफरूसी क फर्क जाने रहेव| अपनी कमीज कि तमीज ते बाहर न निकरेव |सरकार बहादुर जब मन मा आय जाई तो वही दिन कुछ कइ देहैं | हम सबके खातिर या बहुत बड़ी बात आय लेकिन सरकार बहादुर के लिए कौनो मुस्किल न आय | उम्मीद बनाए राखौ ,उम्मीदे  पर दुनिया कायम है | 

जय अवधी ,जय अवधिया

# भारतेंदु मिश्र

 

#गोबरधन कि बीमारी# (ललाम लेख-8 )

 

#मिसिर भारतेंदु 

 

अब सब कैती लॉकडौन खुलिगा रहै, लेकिन मौतन का सिलसिला अबै नहीं रुका।सरकार बहादुर बतावति आंय  कि अब यही तना चल।पूरी दुनिया के तालाबंदी खुलि गई।गोबरधन काका हैरान हैं,वुइ डेरहुत मनई बहुतै डेरात हवैं,उनका जिउ हाली हाली  धुकुर पुकुर करै लागत है।तमाम मनइन तना डेरात तो वुइ अपनी मेहेरुआ औ लरिकनौ ते हैं।मेहेरुआ और लरिकवन के समुहे उनका बोल नहीं फूटत है,हालाकि  सबके समुहे कौनो वुनकी बेज्जती नहीं करति है।मुला का जनी बचपने ते  कैसे उनके करेजे मा पैदायसी कउनो डेरु समाय गाहै तो वहु निकसत नहीं। जब ते कोरोना आवा है वुइ घरके भीतर मुँह पर अंगौछा कैसे रहत हैं। मालूम होति है कि कोरोना वुनके घर मा घुसिके उनका पकर लेई। दुआरे गल्ली पर कउनो बिगिर मास्क के देखाय जाय तो वहिका तक मुसिक्का माने जाबा कसवाय न लिहैं तले चुप न हुइहैं।

दुनहू लरिका  लॉकडौन के टेम बाहर नौकरी के चक्कर मा फंसे रहे, तो उनकी चिंता मा गोबरधन काका बहुतै दुखी रहें| हालांकि फोन ते सब राजी खुसी मिल जात हती ,लेकिन चाहै जेत्ता बतलाय ले, जिउ मजबूत तो आँखिन के सामने देखेहे तो होत है| 

      गजब बात या है कि जब ते लॉकडौन खुला हवै तबते वुनकी धुक धुकी और बढ़ि गई है। दुइ कोठरी क्यार घर हवै , दुइ लरिका बाहर ते घर का लौटे हैं।अब लरिकन के लरिका बच्चा सब मिलाइके आठ जने का खर्च हुइगा।चारि बिगहा कि खेती मा काकी के साथै अबलौ वुनका  जस तस काम चलि जात रहै| छपरा पर की लौकी ते वुनकी बहुत मदति हुइगै,महीनन लौकी फूलत फलत रही औ वुनकी तरकारी क्यार इंतिजाम छपरा ते चलति रहा।अब वा लौकिव  झुराय गै रहै।

यही बिच्चा  मा अब सुरेसवा  पंजाब ते औ महेसवा  जब दिल्ली ते अपन परिवार लैके घर लौटा तो पूरा घर भरिगा। याक दिन तो सबका  जिउ बहुत  खुस भा , मुला अब आगे कस कटी। दुनहू खाली जेब जस  तस गाड़ी, रिक्सा  औ पैदर चलि के राजी खुसी कौनिव तना गांव आय गए। हम सब जनिही न पाएन, काका मुख्यमंत्री जोगी क बहुत आसीस दीन्हेनि | सरकार कि तरफ ते हाजर रुपया मिला रहै,गोबरधन मुफ्त मा हजार रुपया मिलैकि बात सुनिकै बड़े खुस भे| पहिले जब लरिका गांवे आवत रहैं तो अपनी कमाई क्यार दस बीस हजार रुपया जेब मा होति रहैं, अबतिक कंगला हुइके आए हैं।नासपीटे कोरोना कि सब करामात आय।यू कुदिन देखिके काल्हि ते गोबरधन काका क्यार जिउ तेजी से धुक्कु पुक्कु होय लाग रहा।

महीना मा पांच दिन मनरेगा मा काम मिला।अबै वहिका पैसा नहीं मिला।कुछ कमाई बार काटे औ हजामत बनावे ते होत रही वहो कोरोना के कारन काम सब बन्द हुइगा रहै। अब सब खुदै अपन हजामत करै लाग।कुछ तो दाढ़ी बार रखाय लिहिन।सादी बियाहु को कहै गांव मा मरनी करनी खातिर कौनो किरिया वाला  समारोहौ न भवा|परजवटि खतम हुइगै।  सब कहूं ते दुइ पैसा कि आस ख़तम हुइगै रही|अब जब घर मा आठ जने खाय पिये वाले हुईगे तो वुनकी तबियत  और बिगड़िगै|

कुकुआय के रोवै  लाग- मोर दम घुटा जात …..महिका चक्कर आवतहै |

 काल्हि रतिया मा वुनकी तबियत जब जादा गढ़ियायगै तो दुनहू लरिका उनका डाकडर के पास लै गए, डाकडर जाँच कइके बताएन -

 इनका ब्लड प्रेशर घट गवा है।इनका जूस पियावो मौसमी का न मिली तो गन्ने का जूस मिल जाई विहिमा नमक और निम्बुआ मिला के पियाय देव,लेकिन बर्फ न मिलाएव।कोरोना चल रहा है तो तनी ठंडी चीजन का परहेज रही।

         लरिकवा नीक आँय तो फटाफट सब गन्ने क रस खोज लाए । वहिका पीकै गोबरधन काका कि तबियत  तनी ठीक भइ।दुइ घण्टा बादि उठिके बैठिगे, मुला अबै धौंकनी थिर न भै रही |चिंता करेजे म ब्यापी रहै |जिउ का धुकर पुकुर न रुका रहै।पता नहीं उनकी दहसत कब मिटी ,मिट पाई कि न मिटिहै ,इहौ कहना कठिन हवै। असल मा उनकी बीमारी तो लरिकन केर बेकारी आय।

अब लरिका फिरते दिल्ली पंजाब जायेक तैयार हैं | मुला जरूरी नही है कि वहै  नौकरी फिर  मिलि जाई |हिंया तो कौनो काम काज हैये नहीं |

# भारतेंदु मिश्र 

प्रबंधक अवधी समाज 

 

चाय कि गुमटी  

#मिसिर भारतेंदु 

जहां पर औटि पियावैं चाह ,हुआँ होई कस कस  निरबाह।-वंशीधर शुक्ल, कबौ लिखिन रहै कि चाह वाली सहरुआ सभ्यता हमार देसीपन मेटि देई ।अब तो चाह के बिना केहुक कामै नहीं चलत अहै ।ज़माना बदलिगा अब तो चाय कि गुमटी पर दुनिया जहान कि बतकही होत बा ।

चाय कि गुमटी  पर चर्चा चलत रहै कि  दहिजरे कोरोना के कारन  देस  परदेस सब कैती अब  लाचारी औ बेकारी बढ़ी हवै।अपन उत्तर परदेस जनसख्या म सबते आगे है तो बेकार नौजवानन केर संख्या  हियाँ सबते जादा हवैं ।बेकारी जुर्म सिखावत अहै ।जब काम धाम न होई तो चोरी चकारी ते काम चली ।कौनो नकली दवा बनावै लागत अहै, कौनो धर्मान्तरण के गलत काम म जुटि जात अहै ।सरकार बहादुर  सब जानत अहैं मुला सबका रोजगार दै पावै कि कुब्बत उनके तीर नहीं हवै।सरकार कहत अहै कि स्वरोजगार अपनाओ लेकिन वहौ आसान नहीं रहा । जोगी जी बहुत मेहनत करत अहैं ।सुना है कि हजारन  नौकरी निकरै वाली हवैं ।हमरे प्रदेश मा गुंडा राज ख़तम भवा,भ्रष्टाचार पर काबू कीन गवा| रिवर फ्रंट घोटाला खुलि गवा ।औ अब भौकाल बनावै वाले सरगना माफिया सब जेल म देखाई देत अहैं ।लेकिन हम सोचित आय कि अवैध निर्माण पर बुलडोजर काहे चलावा जाय बिहार  की तना अवैध भवन स्कूलन और अस्पतालन  क सौंप दीन  जाय । अबै हमरे प्रदेश म तमाम अस स्कूल औ डिस्पेंसरी मिल जैहैं जिनके तीर अपन भवन नहीं हैं ।वहि दिन बेकारी पर बात करति भये  चाय कि गुमटी पर हमका हुसियार सिंह कक्कू मिलिगे। हमहू बतकही म कूदि परेन कहा - लेकिन कक्कू  रोजगार केर मामिला बहुत कठिन अहै । सरकारी आंकड़ा बतावत अहैं कि  अपने प्रदेस म करीबन सात  फीसदी नौजवान बेकार हैं जबकि  दिल्ली मा पैतालीस फीसदी  बताये जात अहैं । आंकड़ा कि बाजीगरी तो अलग बात आय मुला नौजवान बेकार हैं तब्बै वुइ दिल्ली,सूरत ,कोलकाता  औ मुम्बई कैती भागत अहैं ।लॉकडाउन खुलत हवै तो फिर मंजूरी खातिर बड़े सहरन केर रुख करत अहैं ।

  हुसियार कक्कू बोले - ऐ भैया अनामिका बहिनिया क्यार किस्सा बहुत सुनाई देत रहै ।येहिमा का सच्चाई रहै पता न लाग  ..भैया याक मास्टरनी पचीस  जगह नौकरी कस करी ? सब जगह ते तन्ख्वाहौ लेत रही।करोड़न रुपया वहिके खाते मा जमा हुइगा होई  - झाँसी,सहारनपुर ,कानपुर,बाराबंकी और न जाने कतने जिला के बेगुनाह बेसिक सिच्छा अधिकारी बिचारे हैरान आय|वा बहुतै  हुसियार निकरी। अपनि धुंधली फोटू चपकाय के चौतीस जगह नौकरी ज्वाइन कीन्हेसि। है ना बड़े कमाल कि बात , बड़ी हिम्मति चही..भैया।वहि भर्ती घोटाला कि  कौनिव खबर नहीं मिली ।भैया,दुखी परेसान मनई का करिहैं ? तुलसीबाबा कहिन रहै-जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी ,सो नृप अवसि नरक अधिकारी..।

कहत तो सही हौ कक्कू ,मुला अब सब मामिला सेराय गवा है ।योगी जी फिर जीत के अइहैं ।कक्कू आगे बोले-

सुनित आय कि पंद्रह महीना  वा मास्टरनी येही तना पचीस  सहरन के स्कूलन मा हमरे  उत्तर परदेस के नौनिहालन का पढ़ावति रही ।का वा बिटेवा  योगमाया कि बिद्या पढेसि रहै। वा पचीस  रूप धरि लेत रहै ? का बतायी भैया,सकल ते वहिका कौनौ जानिही न पावा।यहौ  कोरोना काल कि माया होई  काहेते.बिचारे  सिच्छा अधिकारी  वहिके चक्कर मा फंसिगे हुइहैं  । बात तनी पुरान हुइगै बताओ भैया , अतनी बेरोजगारी के जमाने मा वहिका इत्ती जगह नौकरी कस मिली होई? आधार कार्ड तो एक्कै होत है।या अनामिका पचीस  जिला के छिच्छा अधिकारी कार्यालय के बेगुनाह कर्मचारिन का धोखा देत रही , पता न लाग । मुला वहिके  के नंबर बहुत नीक रहैं । होय चहै फर्जी, वा जहां अर्जी लगाएसि सब जगह वाहिका चुनाव हुइगा ।वहिकी किस्मत बहुतै नीक रही ।अब द्याखो  मनई  हजारन  जगह नौकरी कि अर्जी लगावत है तबहू सबका नौकरी नाई  मिलत हवै। अब सुना है  कैयो जिला म ई फर्जीवाड़ा कि जांच चलत अहै ।सिच्छा बिभाग के छोटके  भ्रष्टाचार पर को बात करै ?सबका अपन भ्रष्टाचार नीक दुसरे केर खराब देखात हवै। सब लीपापोती म लगे हवैं ।

फर्जी सनद बनवाय के नेतन के लगुआ भगुआ  नौकरी लूट रहे हैं ।फर्जी मेरिट लिस्ट ते कस निपटा  जाय? भगति  भाव से ई तना के काम न होंय तो  अब सिच्छा विभाग मा कौन कमाई बची है? कुल जमा यहै तो एकु विभाग है जीमा तिनुक  मस्ती कटि सकति हैं।

हम कहा -कक्कू अब सब योगी जी ठीक कइ  देहैं ..वुइ बोले- अल्लेव ,येहिमा योगी जी का करिहैं ? हम अनामिका बिटिया केर बयान पढ़ेन रहै  -वा  कहूं नौकरी पर  न रही । अब बताओ यह तो बहुतै बेढंगी बात होइगै। दुनिया भरेम ढोलकिया बाजी ,वुइ कहती हैं नाजी नाजी। अब जो तुमरे जस  भगत अवधिया हैं उनहू का समझेक परी कि-बिद्यावान गुनी अति चातुर, राम काज करिबे को आतुर। खाली येहि मार्ग पर चले ते काम न बनी। मेहनत कीन्हे ते काम बनी ।परसराम केर लरिकवा एमबीए किहिस रहै नौकरी छूटि गय तो अब तरकारी बेंचि रहा हवै।रहमत भाई केर लरिका तो पीएचडी किहिस रहै अब ओला कि डरेबरी  कइ रहा हवै।सतपाल कि मुनिया एम ए . बीएड पास कैके अब गाँव के बिलौज पेटीकोट  सिंयत अहै,वाहिका तो स्कूल वाले निकार दिहिन । जो काबिल लरिका बिटिया बेकार हैं वुनका तो नौकरी मिलै।अब चुनावी बेला आय रही है हमरे गाँव के दुइ चार लरिकन क नौकरी मिलै तो हमहू क पता लागै।हमरे गाँव के  नौजवानन के मन मलीन हुइगे हवैं ।कौनो खुस नहीं देखात  भैया, कहूं तुमहे  बहाली करवाय देतिऊ तो हमहू भगति भाव ते भगुआ कुर्ता सियाय लेइत । हम कहा कक्कू - अब तनिक योगी जी की बातन पर यकीन करौ ई अलगै किसिम के मुख्यमंत्री आहीं ।इनका चुनाव जीतै  कि कला मालुम अहै ।उनकी समाज सेवा औ भगति केर कौनो मुकाबला नहीं है ।वुइ सब कुछ ठीक करिहैं तुम देखे रहेव ।देखेव नहीं जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव सब जीति  लिहिन । अब देखौ जनसख्या कम करे म लगे हैं ।मोदी औ जोगी जो चहत हैं वो कैके मानत अहैं ।धकापेल डबल इंजन कि सरकार चलत अहै वहिकी धमक सुने रहो । कक्कू कहिन - भैया का हम योगी जी ते  बाहेर हन ?..हमहू उनका जितावा रहै सब तन कमल खिले रहैं  मुला या  बेकारी तो मौत से बत्तर  है, येहिते निस्तार मिलहेक चही । हम चुपाय रहेन औ  जय सियाराम कहिकै चाय कि गुमटी ते खसकि लीन ।

 

 

 

 

 💐 सिच्छा नीति मा अवधी 💐

                (ललाम लेख -10 )

#मिसिर भारतेंदु

 

भैया अवधिया मनई  दुनियाभरेम जहाँ जहाँ गए हुआँ आपनि रामचरितमानस की पोथी संग लै गए।वुइ सब यही का रामायन कहति रहे।मनई अपने सुख दुःख के साथी क अपने साथै लैके चलत है| ई सब गिरमिटिया और कमाई खातिर घर ते  निकरे गरीब मंजूर बिना केहू ते सिकाइत किहे अपनी समस्या ते जूझत रहे,जब संकट आवा तो कबौ हनुमान चालीसा दोहरावे लाग, कबौ रामचरित पढिके अपन दुख दूरि किहिन।

 अपने देसौ  मा जहाँ गए तो संकट मोचन कि आरती औ चालीसा जरूर साथै रहा।चाहे कलकत्ता गए चाहे मुम्बई, हैदराबाद गए चाहे श्रीनगर सब जगह या अवधियन की भासा अवधी उनकी माई बनिके साथै रही।दुनियाभर मा आरती भजन सब अवधी भासा मा गाए जात हवैं। हमका लागत है कि या अवधी भासा फ़िजी मॉरीशस नेपाल,इंगलैंड,अमरीका,कनाडा सहित दुनिया के तमाम देसन मा हिंदुस्तानी मनई कि सांस्कृतिक भासा बनिगै है।वुइ येही तना  कबौ  चालीसा पढे  खातिर इकठ्ठा हुइ जात हैं तो कबहूँ रामकथा के बहाने यानी रामचरितमानस के अखंड पाठ  खातिर परदेस मा इकठ्ठा होत रहे| अबहिनौ परदेस गवा अवधिया हुआँ अपने परदेसी घर मा अपनी ही  भासा म बतलात है| भोजपुरिया होय चहै हरियाणवी सब बिदेस मा आरती भजन कि बेरिया अवधिया बन जात हवैं |गुजरात, बंगाल, हरियाणा ,पंजाब ,मध्यप्रदेश ,बिहार ,उड़ीसा ,तमिलनाडु ,केरल सब जगह ई अवधिया आपनि आरती भजन अपने साथै जरूर लै गए। एहि तना पूरे हिंदुस्तान मा आरती और भजन कि भासा अवधी बनिगै। अपनी सांस्कृतिक चेतना ते अवधी माई सबका जोड़े रहीं|

मुला का बताई अपने घर के माने उत्तरप्रदेश के नेतवन का यू सब नहीं सूझत है। जेहिका गरीब मंजूर अपने सुख दुःख मा कब्बौ नहीं छोड़िन ई कलजुगी एहसान फरामोस नेता एहि सांस्कृतिक भासा की तरक्की खातिर कौनो गतिका काम न किहिन।जो भासा सबते जादा दुनिया भरेम अपने आप हिंदुस्तानी संस्कृति कि रच्छा किहिस वहिके बिकास खातिर याक अकादमी तके न बनि पाई।अरे धिक्कार है तुमरी नेतागीरी  का|बहुत तकलीफ वाली बात आय लेकिन अबै हार न मनिबे | हम तुम सब , गांव जवार मिलिके अपनी मातृभासा कि तरक्की कि कोसिस जरूर करति रहब।

 दिल्ली  विधानसभा के चुनाव मा हियन के मुख्यमंत्री अरबिंद केजरीवाल हनुमान चालीसा पढिके वोट माँगत हैं, तो जनता खुस हुइके उनका बम्पर वोटन ते जिताऊ बनाय देत हवै।अवधी कि ताकत वहू  जानत हवैं मुला अपन अवधिया नेता बहुतै  ढीठ हैं, ई सब अवधी भासा ते वोट तो खुब पाएनि विधायक बने मंत्री बने मुख्यमंत्री बने, लेकिन ई भासा कि तरक्की कि राह न खोलिन।

का एहि सांस्कृतिक भासा कि हालात कबौ ठीक होई, यह चिंता अवधी के पढ़इया लिखइया नौजवानन के मन मा चौकस  बनी रहत है।अबकिल सावन भादों मा जहां सब कैती हरियाली बगरी आय, हुआ अजोध्या जी का पियर रंग ते रंगि दीन गा है| हमका का करेक  सरकार बहादुर जौन मन होय सो करैं  | रामलला का सबियों रंग नीक लागति हवैं |अबै कोरोना काल आय तो चुप्पै घर मा बैठ हन |सिलान्यास होय देव, हमका नेउता नहीं मिला हम न जाब,प्रधान मंत्री औ मुख्यमंत्री पहुंच जैहै तो सब नीके होइन जाई  |तबलग हम नई सिच्छा नीति पढिके देख लेबे |  अब नई सिच्छा नीति आई हवै। वहिमा मातृभासा म पढ़ाई करावै कि सिफारिस कीन गै है।यहौ समझेक परी।यहिमा अपनि अवधी कहाँ धरि दीन गै है,वा पढाई लिखाई मा सामिल होई कि न होई  ।मातृभासा माने अवधी ,ब्रज, भोजपुरी ,बुंदेली कि हिंदी आय ? अबहीं कुच्छौ साफ नहीं है।

जय अवधी |

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11. ललाम लेख

 बिस्वकबि तुलसीदास 

# मिसिर भारतेंदु

बात पुरानि  आय ,जब हियने  अजोध्या  मा सन 1527 मा रामटेक कि पहाड़ी  पर  ‘ जन्म अस्थान महजिद ‘ बनवाई गै रहै तब तुलसीदास नैजवान रहैं |संत  समाज के सतसंग मा उनका यह खबरि मिली रहै |यही बीच  मा उनका बिहाव रत्नावली ते भवा रहै| तुलसीदास राजनीति नाई लिखेनि वुइ संत कवि आंय,  उनका भगवान राम पर पूरा भरोसा रहै | वुइ जनभासा मा ‘रामचरितमानस’ लिखिके अपना बिरोध दर्ज कराएनि | उनका भरोसा अब पूर होत देखात है,लेकिन अवधी भासा कि दसा सुधरै तो सांचौ उनकी सही श्रृद्धांजलि होई |

 

तुलसी मूलन  मा पैदा भे रहें |पैदा होतै महतारी हुलसी का देहांत हुइगा | पैदा होए के समय दांत निकारे रहें ,और राम राम बोले तो उनका नाव रामबोला धरि दीन गा|  और का कीन  जाय, घर  परिवार के सब जने  ई तना कि बिचित्र बातें देखेनि तो मनहूस और चंडाल समझिके घर ते निकार दिहिन | नौकरानी चुनिया के औलाद न रहै तो वा कहेसि - ‘हम पाल लेबै |...’

अबै बचपना बीता न रहै  कि पांच साल बादि चुनिया दुनिया ते चलि  बसी  | बिचरऊ  फिर अनाथ हुइगे |अब ऐसे लरिका का को पालै, अपने आपै मांगि जाचि के अपन प्रान  जियाए रहे | अब वुइ कौनिव तना घूमत फिरत राजापुर ते चित्रकूट आय गए | चित्रकूट मा तमाम सगुनिया निर्गुनिया संतन ते इनकी मुलाक़ात भै| संसकीरत सीख के तमाम बेद  पुरान पढेनि , कुछ समझि पावें कुछ  न समझे पावें लेकिन रामबोला कि किहानी संतन मा बहुत मसहूर हुइगै रहै | बाबा नरहरी दास इनका खोजिके तबै अजोध्या लेवाय लाए |रामबोला का जनेऊ करावा गा ,फिर बाबा नरहरी के गुरुकुल मा इनकी पढाई होय लागि |अब अजोध्या मा इनका नाव रामबोला कि जगह तुलसीराम  धरि दीन गवा | वैष्णव धरम की सिच्छा उनका हियनै मिली | प्रतिभा और बिबेक तो तुलसीराम मा कूटि कूटि के भरा रहै |वैष्णव धरम कि बारीकी जल्दिही समझि लिहिन | फिर कुछ दिन बादि तुलसीराम  प्रवचन दे लाग रहैं  |अब वुनके भीख मांगे वाली नौबति न रहै |

तुलसीराम जब जवान होइगे  तो उनका बिहाव रतनावली ते भवा | रतनावली बहुतै सुन्दरी रहैं | भवा यू कि तुलसीराम रत्नावली के प्रेम मा देवाने हुइगे | वैष्णव भजन ,राम कथा सबियों भुलाय  के तुलसीराम रत्नावली के आगे पाछे घूमै लाग | कोई अनाथ बेसहारा जब येहि तना क्यार सहारा पाय जात है तो आगा पाछा सब भुलाय जात हवै| तुलसीराम कि वहिमा कौनिव गलती न रहै | उबियाय के जब रतनावली एक दिना मइके गयीं  ,तो तुलसीराम उनके पाछे रतिया मा आंधी बौखा मा नद्दी पार कैके पहुंचि गए ,तो रतनावली का बहुत बुरा लाग फिर वुइ कसिकै फटकार लगायेनि एकु दोहा कहेनि-

अस्थि चर्ममय देह मम,  जामे ऐसी प्रीति |

होती जो श्रीराम सों, होत न तौ भव भीति ||

तुलसीराम यहु सुनिकै हकबकाय गे , भारी बेज्जती भइ मुला उनका बोल न फूटा |बेइज्जत होइकै लौटि आए | अब वुइ राम के दास बनिगे रहें |उनका नाव तुलसीराम ते तुलसीदास होइगा रहै | लौटि के रतनावली कि तरफ न देखिन |राम के काज कि इच्छा मन मा जागी,मानौ सांसारिक बंधन सब अपने आप खुलिगे  | मथुरा, वृन्दाबन, काशी सब कैती घूमत रहे, सबियों बेद,पुराण पढेनि| संस्कीरत  मा लिखवैया रहें लेकिन जायसी कि दोहा चौपाई उनके मन मा समाय  गयीं ,औ वुइ जनता कि भासा मा रामकथा लिखेनि |  संस्कीरत  वाले पंडित उनका बहुत तंग किहिन तो वुइ संस्कीरत  छोडि दिहिन | अपनी जनता कि भासा मा ‘रामचरितमानस’ लिखेनि |भगवान राम उनके येहि निर्णय ते बहुत खुस भे औ चित्रकूट मा उनका दरसन दीन्हेनि |बजरंगबली कि सेवा ते राम तक पहुचे कि जतन उनका मालुम रहै |-चित्रकूट के घाट  पर भइ  संतन की भीर /तुलसीदास चन्दन घिसें तिलक देत रघुबीर |अइस अवधी के बिस्व कबि  गोसाईं बाबा तुलसीदास कि जयन्ती पर उनका नमन |

# मिसिर भारतेंदु 





12.जय सिया राम 


अब तो सिलान्यास हुइगा |सदियाँ बीति गयीं जौन काम अटका रहै वहु मंदिर निर्माण क्यार काम सुरू हुइगा | अजोध्या कि सबियों जनता यहै चाहत रहै| मुला येहि मुद्दे पर जमिकै राजनीति भइ ,सरकारें गिरी, सरकारें बनीं |पक्ष बिपक्ष औ दुनिया कि बतकही, कानूनबाजी सब कुछ हुइगा | मुला हियाँ कि जनता बहुतै समझदार रही आपस मा कबौ अजोध्या जी मा झगड़ा लड़ाई नहीं भा  | विदुआन बतावति हैं कि अयोध्या, मतलब जी का युद्ध ते न जीता जाय सके वह नगरी | संस्कीरत मा बतावा गा - ‘न योद्धुम शक्या सा अयोध्या |’

तो यू बहुत बढ़िया भवा कि बिना लड़ाई झगड़े के अयोध्या क्यार फैसला बड़ी कचेहरी ते हुइगा | अब रामलला अपन घर पाय जैहैं |अबै तक तम्बू के तरे उनका रहन सहन रहै |यू समझौ कि बेघर भगवान श्री राम का अपन घर मिलत देखात  हवे | बहुतै खुसी का मौक़ा आय | 

लेकिन यू बहुतै कम मनई जानत हैं कि भगवान श्री राम का जब कोई जय श्रीराम कहिके गोहरावत हवै तो उनका नीक नही लागत | वुइ तो सीता का बहुतै चाहत रहें | सीता मैया के बिना जतनी जिन्दगी उनकी कटी वा सबियों दुख ते भरी  रही |अब जब कोऊ जय श्रीराम कहत है तो वुनका तकलीफ होत है | जब कोऊ जय सियाराम कहत है तो यू कहे ते वुनका जिउ जुड़ात हवैं | सीता उनते अलग रहीं तबहूँ वुइ उनका अपने हिरदय मा बसाए रहे | 


अब ई नकली धर्मधुरंधर अपने आराधन मा राम का सीता ते अलग कइ दीन्हेन रहै | यू तो कहौ भला होय अपने मोदी जी का सही टेम पर या बात समझि मा आय गै| वुइ सिलान्यास कि बेरिया जय सियाराम का नारा दै दीन्हेनि | संघ वाले तनी मर्दवादी सुभाव के हवैं उनके संगठन म महिला नेता नहीं दीख परती हैं | वुइ पुरान मराठी मूल के मनई तुलसी कि भावना न समझत रहे|

यू जय श्रीराम क्यार नारा तबै बाबरी ढांचा गिरावत बेरिया बनावा गा रहै | वहिते कुछ नुकसानौ भा,औ कुछ नेतवन का बहुत फ़ायदा भा ,सरकारें गिरीं ,सरकारें बनीं बहुत बदलाव भवा |  

लेकिन हमका  राजनीति ते का मतलब हमतो  अतना जानित है कि ई नारे ते समाज मा तनातनी  जादा बढ़ी रहै | मर्दवाद जादा बढ़ा रहै |अब ई नवक्के लरिका साइत सियाराम क्यार महत्तम  जानि  पावें ,बाबा तुलसीदास की आत्मा येहि नारे ते जरूर खुस होई| वुइ कहेनि रहै--

सियाराम मय सब जगा जानी /करहु प्रनाम जोरि जग पानी ||

बजरंगबली खातिर सीता मैया के बिना राम अधूरे रहें |  याक दिन सीता मैया क सेंदुर ते अपन मांग भरत  देखिन तो हनुमान जी पूछेनि -

‘मैया , यू मुड़े पर सेंदुर काहे मलती हौ.?’

सीता मैया कहेनि - ‘हनुमान  !  यू सेंदुर सुहाग कि निसानी आय | तुम्हार स्वामी श्री राम हमार पति आंय वुनके प्रेम औ वुनके प्रति समर्पण क्यार यू प्रतीक आय | ’

हनुमान ब्रम्हचारी रहें तो सुहाग के बारे म जादा कुछ समझ न पाए ,लेकिन वहि  दिन ते पूरी देंही मा सेंदुर पोतै  लाग | सीता मैया हनुमान का देखिन तो पूछेनि - ‘यू का कीन्हेव हनुमान !’

हनुमान कहेनि - ‘जस आप स्वामी श्रीराम ते प्रेम करती हौ ,वही तना हमहू वुनते प्रेम करित आय | ’

  वुइ तो राम कि भगति खातिर अपनी पूरी देही मा सेंदुर मलि  लिहिन रहै | जब भगति देखावे का मौक़ा मिला तो अपन सीना चीर के देखा दीन्हेनि ,वहिमा पूरा राम दरबार रहा | खाली श्रीराम के भगत वुइ न रहें सीता मैया के त्याग के टेम हनुमान बहुतै दुखी भे रहैं  |हनुमान के भगत  तुलसीदासौ  खातिर सिया के बिना राम अधूरे रहैं | हनुमान जी का आसिर्बाद लैके अबकी जब प्रधानमंत्री ‘जय सियाराम’ क्यार नारा  दीन्हेनि  है तो बजरंग बली क्यार पूरा असीरबाद वुनका मिला  | काम बनिगा कौनिव अड़चन न परी,हनुमान जी राजा राम के सेनापति आंय |अजोध्या के सेनापति का खुस कीन्हे बिना कौनो काम अजोध्या मा सफल न होई | सियाराम का एक्कै  साथ रखिहो तो हनुमान जी का आसिरबाद मिली, तबहें सब काम बनिहैं |

जयसीताराम।जय सियाराम।


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13.  तिरलोचन ते पहिल भेंट


# भारतेंदु मिश्र


त्रिलोचन अपने गाँवमा पहेलवानी सीखेनि रहैं | देहीं दसा ते तो हट्टे कट्टे रहबै कीन असली तो तिरलोचन भासा के पहेलवान रहैं ,लरिकईं  म कबड्डी ख्यालति बेरिया वुइ अष्टाध्यायी के सूत्र दोहरावति रहैं  |तबहीं उनमा शास्त्री बनैके सब लच्छन आयगे रहैं |बनारस म वुइ साहित्यिक गोष्ठिन के केंद्र बने रहे पैदर चलेम उनका कोई मुकाबला न रहै| जवानी के दिनन म वुइ साइकिल औ रिक्सौ चलावति रहैं | बहरहाल उनकी कबिताई बनारसै मा सबके गले क हार बनी| वुइ बहुती भासा सीखेनि रहै लेकिन कहति रहें - ‘तुलसीदास ते भासा सीखा है|’  वुइ ग़ालिब ते भासा कि रवानी, बाल्मीकि , कालिदास और भवभूति ते कबिताई की परंपरा सीखेनि रहै तो शेक्सपीयर ते सानेट सीखेनि | लेकिन मालुम होति है कि तुलसी उनके ख़ास वस्ताद रहैं ,येही कारन तिरलोचन तुलसीदास पर कइयो कबिता लिखिन है| अवधी म बरवै लिखति बेरिया तिरलोचन जी अवधी कबिताई कि परंपरा का यादि करत हवैं । गोसाईं तुलसीदास क तो फिरि फिरि यादि करत हैं |अपने गाँव कि बोली भासा म कबिता लिखै वाला कबि सांचौ बलगर तो होई।उनका एक बरवै द्याखो--

दाउद महमद तुलसी कइ हम दास

केहि  गिनती मंह गिनती जस बन घास|


त्रिलोचन खुद का मुल्ला दाउद,मलिक मोहम्मद जायसी औ तुलसी के दास बतावति हैं| माने उनकी बनाई अवधी वाली लीक पर तिरलोचन अमोला लिखेनि |अमोला के बरवै जेतने अनगढ़ औ सरल सहज है वतनै गंभीर औ किसान मजूर परिवारन कि दसा बखानै वाले हैं| वुइ अपनी बोली भासा मा अपने गाँव जवारि के मनइन का सिक्षितौ करति चलति हैं|वुइ भूख का नेरे ते देखिन रहै,अभाव झेलिन रहै लेकिन कब्बौ गलत राह नहीं चुनेनि ,काहेते सांचौ वुइ पहेलवान रहैं |उनकी पहेलवानी उनकी काठी ते झलकत रही|अभाव औ विपन्नता ते उनका पैदाइसी नाता रहै |वुइ सांचौ जंगली घास कि नाई प्राकृतिक जिनगी जिए। यह नैसर्गिक अरघान उनकी कबिताई कि असली रंगति आय|बरसन वुइ बड़ी केरि दाढी रखाए रहे|कहति रहैं- ‘ सरीर का खरपतवार आय -रोज रोज कि हजामत को करै केतना टेम कि बचत है, खर्चा तो बचतै है| दाढी मूछ तो रिसि मुनि की सान अहै |’ दाढी ते उनके चेहरे कि रौनक बनी रहै| चीन्ह वाले उनका जनतै रहैं, अनचीन्ह वाले मनई उनका साधू समझ लेति रहैं | तबै साधू आजकि तना बदनाम न रहैं। अब तो साधू के भेष मा सैतान घूमत आहीं।गांव समाज मा  देस परदेस मा सब अलंग उनका बहुतै सनमान रहा| जादातर लरिकवा उनका बाबा कहतै रहैं| लरिका वुनते बहुत जल्दी जुड़ि जात रहैं।श्याम सुशील भाई क्यार लरिका शिवांक तो उनका नाव ‘खरपत्तू बाबा ’ धरेसि रहै|


अवधिया रहैं तो हमका उनकी बातन मा बहुत रसु मिलत रहै|सन 1989 मा तिरलोचन शास्त्री ते पहिली दफा मुलाक़ात भय |  दिल्ली के सादतपुर मोहल्ले मा एक नागार्जुन नगर हवै | तब हुवनै   कानपुर के जनकवि शील जी के सम्मान मा समारोह आयोजित कीन गा रहै |तब हम भजनपुरा मा  रहन |वुइ समारोह म बाबा नागार्जुन ,त्रिलोचन शास्त्री,विष्णु चन्द्र शर्मा,डा.माहेश्वर,हरिपाल त्यागी,सुरेश सलिल ,रामकुमार कृषक,महेश दर्पण के अलावा दिल्ली के तमाम जनवादी,प्रगतिशील रचनाकार औ पढ़ैया लिखैया मिले| ई समारोह कि जानकारी हमका स्व.डा.बिंदुमाधव मिश्र जी ते मिली रहै| वहु  समारोह अपनी तन का अद्भुत समारोह रहा |सबते जादा आकर्षक तो ‘शील जी’ का कविता पाठ रहा | जहां तक हमका यादि है वुइ कइयो मार्क्सवादी विचारन कि कबितन के साथ यहु गीतौ सुनायेनि रहै| येहि गीत मा ख़ास बात है मनई के हार न माने कि प्रेरणा-


राह हारी मैं न हारा !

थक गए पथ धूल के उड़ते हुए रज-कण घनेरे ।

पर न अब तक मिट सके हैं,वायु में पदचिह्न मेरे ।

जो प्रकृति के जन्म ही से ले चुके गति का सहारा !राह हारी मैं न हारा !

‘राह हारी मैं न हारा’ –यह पंक्ति मन मा तब्बै ते बसि  गय है| यू समारोह कौनौ अकादमी वगैरह के कार्यक्रम जस न रहै|सब आपसी सहयोग ते व्यवस्था कीन गय रहै|

घर का बना भोजन ,गाँव जस वातावरण,मानो कोई पारिवारिक काम काज जस|ख़ास बात यह रहै कि  तब  पहली दफा  मिले तिरलोचन जी से निसंकोच बतियाये म हमका कौनिउ झिझक न भय | वह उनते  पहिल मुलाक़ात रहै |बाबा नागार्जुन का  बस पैलगी कीन और उनते तब दूरि ही बैठेन ,काहेते सुना रहै कि वुइ बड़े गुस्सैल हैं |तब वुइ बीमारौ रहैं |तिरलोचन जी सहज अवधिया बुजुरुग की नाई बतुआत रहैं |कुछ दिन बाद पता चला कि तिरलोचन जी यमुनाविहारैम  रहति हैं| उनके सहपाठी पंडित गंगारतन पाणे  से हम  लखनऊ मा मिल चुके रहन | पाणे  जी बनारस के किस्सन मा अपने सहपाठी तिरलोचन जी का औ शंभुनाथ सिंह का जिकर बड़े चाव ते करत रहैं | येहीके मारे हम उनते  मिलैका मनु  बनावा  औ बस फिर उनका पता  खोजि  लीन |वुइ बहुतै निसंकोच ढंग ते मिलैक समय दीन्हेनि  उनकी छोटकी पतोहू ऊषा जी चाह पानी ते हमार स्वागत कीन्हेनि |तिरलोचन जी हमते हमरे बारे में पूछेनि  – हम  बतावा  कि हम संस्कृत म लखनऊ से एम्.ए. कीन  है, औ अब हियाँ याक सरकारी इस्कूल  म पढायिति है| औ दिल्ली विश्वविद्यालय ते ‘नाट्यशास्त्र में निरूपित विविध कलाए’ विषय  पर शोध करिति  है |हिन्दी म पढें लिखेक सौख है| आपके सहपाठी गंगारतन पाणे ते आपकि बड़ी तारीफ़ सुना है| वुइ बोले-‘ये शुभ लक्षण है क्योकि हिन्दी वालो को हिन्दी नहीं आती |’ ईके बाद घनी  देर तक वुइ पाणिनि ,कालिदास,बाणभट्ट पर चर्चा कीन्हेनि | हम चुपान बैठ रहेन वुइ संस्कृत का महत्त्व औ वहिकी सीमा वगैरह हमका बतावति रहे|येही बीच चाह आय गय रहै हम दुनहू जने चाय पियेन औ फिर बतकही आगे चली |अकबकाय के तिरलोचन जी पूछेनि  –‘आप श्रुतिधर हैं?’ मैंने कहा- ‘नहीं..मैं वेदपाठी नहीं हूँ ,मुझे वैदिक परंपरा आदि का भी विशेष ज्ञान नहीं है| बस थोड़ा काव्य और नाट्य साहित्य पढ़ा है|’ वुइ मुसक्यान औ अपने कुर्ते के खलीते से चुनौटी निकार के कहेनि - ‘देखो भाई, मैं ब्राह्मण तो नहीं हूँ लेकिन श्रुतिधर अवश्य हूँ|’ अब हम बिलकुल सहज हुइ गयेन रहै|हम कहा-‘ई परंपरा ते तो हमहूँ जुड़े हन |..हमार  दादा औ नाना सब  श्रुतिधर रहैं , सब चुनही का ही सेवन करते थे| लेकिन हम पनही लेइति  है |’ वुइ हँसे औ तमाखू के बारे म तमाम लोकविख्यात किस्सा  सुनावै लाग|हमहुक बतकही म मजा आवै लाग रहै|फिर बोले –‘पनही लेने -का एक और अर्थ भी है| ’ हम कहा ‘जी अभी तो पान वाली तम्बाकू से ही आशय है|’ वो बोले-‘हाँ पनही और पनही पूजन से बचिए|’

ईबिधि निर्विकार वातावरण म उनसे पहिल भेंट भय रहै| जैसे तमाम साहित्यकार नए लेखकन के सामने अपनी योग्यता क्यार भौकाल खडा करति  हैं ,वह बात उनमा न रहै|  ख़ास बात यह कि तिरलोचन जी अपनि  कबिता, अपनि किताब ,यानी अपने लेखन के बारे मा तब कोई बात नहीं कीन्हेनि | हमका कब्बौ न लाग कि हम इतने बड़े कबि के सामने बैठ हन,बादि  मा कइयो मुलाकातै भईं| तब हम यमुनाविहार के पास  भजनपुरा म रहित रहै| उनका घरु हमरे घर ते कोई आधे कि.मी. के फासले पर रहै| फिर का जब द्याखौ तब उनकी वार जाय लागेन | जब तक वुइ यमुनाविहार मा 

रहे अक्सर उनका असीस मिलत रहा| वुइ दिनन मा  आद्याप्रसाद उन्मत्त जी हुवनै रहैं |

संपर्क:

सी-45/वाई-4

दिलशाद गार्डन,दिल्ली-11 00 95

ईमेल-b.mishra59@gmail.com


फोन-98 68 03 13 84 




14.  जयन्ती (25 सितम्बर )

“तुम राजा हौ हम परजा हन :पढीस”

# मिसिर भारतेंदु  

 

पढीस जी अवधी के भारतेंदु हरिस्चन्द  आंय। किसानन के  कबि  औ आधुनिक  अवधी कबिताई के जनमदाता बलभद्रप्रसाद दीक्षित ‘पढीस’ अवधी कबिन के गौरव आंय।वुइ अवधिया मनइन का सही लीक पर लावे बदि बहुत काम किहिन रहै।अवधी कबिता मा जो आज नई रोसनी देखि परत हवै वाहिका बुनियादी कारन उनहे कि मेहनति आय।उनका जनम 25 सितम्बर सन 1898 मा जिला सीतापुर की तहसील सिधौली के गाँव  अम्बरपुर मा भा रहै।बचपने मा पिता जी चल बसे तो उनका कुनबा मानौ कि अनाथ हुइ गवा।खेती जादा न रही ,बड़े भैया दीनबंधु तबै कुल बारह साल के रहैं।अब दीनबंधु पर पूरी बखरी केरि जिम्मेदारी आय गय।अउरु कोई राह न रहै वुइ गाँवें मा मजूरी करे लाग।उनकी गरीबी, ईमानदारी औ मेहनत का किस्सा कौनिव तना राजा साहेब कसमंडा तके पहुचि गा।राजा साहेब दयालु रहैं तो दीनबंधु का अपनी चाकरी मा राखि लिहिन। उनकी मुख्य कोठी कमलापुर(सीतापुर) मा  औ उनकी याक कोठी लखनऊ मा रहै। दीनबंधु ईमानदारी औ लगन ते काम करत रहैं तो राजा साहब उनते बहुतै खुस रहैं।राजा साहेब कि बिटिया का जब बिहाव भा तो दीनबंधु उनकी बिटिया के दहेज़ मा वहिकी ससुरार माने विजयनगर  राज्य भेज दीन गे।

जब दीनबंधु जाय लाग तो राजा ते अपने छोटके भाई कि नौकरी खातिर सिफारिस किहिन ,राजा साहेब बलभद्दर माने 'पढ़ीस' का नौकरी पर राखि लिहिन।राज साहेब औ रानी बहुतै उदार रहैं।वुइ राजकुमार के साथे बलभद्दर क्यार नाव एक्कै अंगरेजी सकूल मा लिखवाय दिहिन। बलभद्दर पढाई  लिखाई म बहुतै चटक  रहैं।किस्मत का खेलु द्याखो कहाँ रोटिन के लाले रहैं, कहाँ अब राजकुमार के साथ सब सुख भोग मिलै लाग।जब बलभद्दर तनी सयान भे तो राजा साहेब के निजी सचिव बनिगे।अंगरेजी राज रहा तो राजा साहब क्यार सब काम काज, लिखा पढी इहै देखै लाग।कुछ सालन बादि जब राजा साहब चल बसे तो अब राजकुमार राजा बने उनते इनकी राय न मिलत रहै।नए राजा के नए रंग ढंग रहैं पढीस जी उनते साफ़ कहिन-

‘तुम राजा हौ,हम परजा हन/तुम क्षत्री हौ हम बाँभन हन।’ ईके बाद अपने स्वाभिमान खातिर नौकरी छोड़ि दिहिन।थोरे दिन बादि  सन 1938 म लखनऊ क्यार आकाशवाणी केंद्र खुला रहै, वहिमा दिहाती कार्यक्रम खातिर उनका नौकरी मिलि गय।यही दिनन म निराला,रामबिलास शर्मा यशपाल औ अमृतलाल नागर ते इनका संबंध बनिगा।गाँव जवार के किसानन खातिर अवधी भासा म सुधारवादी कार्यक्रम रेडियो ते वुइ प्रसारित करत रहैं।पहिल अवधी कार्यक्रम ‘पंचायत घर’ वहे सुरू किहिन रहै।अवधी के अलावा अंगरेजी हिन्दी उर्दू सबै भासा उनका नीकीतना अउती रहैं।किसान औ जमीदार क्यार फर्क उनका मालुम रहै।राजा कि नौकरी छोड़ि चुके रहैं,आर्थिक दसा ठीक न रहै मुला गुलामी कि बयार मा जिउ कसमसात रहै तो सन 1941 मा अब वुइ रेडियो छोड़ि दिहिन।रामबिलास शर्मा उनकी रचनावली संपादित किहिन वहिमा लिखेन रहै कि ‘पढीस जी हिन्दी के पहिल वर्ग चेतस कबि आंय।’ निराला उनकी अवधी कबिता कि किताब ‘चकल्लस’ ( सन 1933) कि भूमिका लिखेनि रहै।सन 1939 मा उनका कहानी संग्रह “लामजहब" छपा रहै।किन्नर समाज पर वुनकी किहानी ‘चमेली जान' हिन्दी कि पहिल किन्नर कथा मानी जात हवै।दलित चेतना कि उनकी  किहानी “चमार भाई” पढै वाली हवै।

 पढ़ीस जी जब सब कैती ते ऊबि गए तो वुइ अपने गाँव म अपने बड़े भैया के नाव ते ‘दीनबन्धु किसान पाठसाला’ खोलिन। वहिमा लरिका बिटिया,बूढ़ जवान सबका पढावे लाग।याक दिन अपने खेते म हरु चलावत बेरिया नसी लागि तो टिटनेस हुइगा फिर बहुत दवा दरमत भय मुला लखनऊ के गोलागंज अस्पताल मा 12 जुलाई सन 1942 का अंतिम सांस लिहिन। जमीदारन के बारे म किसानन का कबिताई ते समझावत रहै-‘‘वुइ अउर  आंय /हम अउर आन।’’ 

याक औरी कबिता मा कहत हवैं -

“दुनिया के अन्नु देवैया हम /सुख सम्पति के भरवैया हम /भूखे नंगे अधमरे परे /रकतन के आंसू रोय रहे |” 

उनकी 122वीं जयन्ती पर उनकी सुधि का नमन।उनकी कबिताई म जो आत्म व्यंग्य कि चेतना है,नएके अवधियन का उनहूँ कि सुधि लेक चही। 

15. रामलाल  के पुरिखा

 अब तौ  ई पितरपच्छ के दिन आंय।धरम कि लाठी ते सबै घबड़ाय जात हैं।जो मनई अपने महतारी बाप क जियत म कुच्छो ख्याल न राखति हैं, वहू देखावै बदि ई दिनन म सराध जरूर करति हवैं। समाज म देखावा जरूरी आय।मसल कही जाति है-

"जियत न दीन्हेनि कउरा ,मरे उठावैं चउरा"

मास्टर रामलाल मंदिर के सामने ते घर की वार जात रहें ,पंडित क देखिन तो पैलगी किहिन।पंडित बतावै लाग कि सराध चालू हुइगे,येहि पंद्रह दिनन  म हमार सबके पुरिखा घरे आवति हवैं।अपने पुरिखन कि आतमा सरग  ते हिंया धरती पर लौटि के अपन घरु बखरी औ अपनी औलादिन कि तरक्की द्याखै बदि आय जात है। साल मा ई पंद्रह दिनन म  उनकी आवाजाही धरती पर बढ़ि जाति हवै, तो ई गरू दिनन  म उनकी पूजा करेक चही  औ जो कुछ वुइ अपनी जिन्दगी म खात - पियत, पहिरत  ओढ़त रहैं  वुइ  सब चीजन क्यार दान देयक चही।

रामलाल आसमान कि तरफ देखिन,अपने पुरिखन का परनाम किहिन , तिकै पूछेनि  - 

‘पंडित देउता! यू सब दान केहिकी तीर जाई ?’ 

वुइ बोले - ‘धुर ! यकदमै बौखल हौ ,दान दच्छिना तो हमरेन तीर आयी ,अतना नहीं समझत हौ ? 

रामलाल बोले  - ‘ जो मनई तुमका दान न दै पावै वहिके पुरिखन का संतुष्टी कस मिली ?’  

वुइ कहेनि - ‘वुनका संतुष्टी कहाँ ,उनके पुरिखा बस ऐसी वैसी भटकत रहिहैं।ई धरम कर्म म मास्टरी न चली।’ 

रामलाल फिर पूछेनि  ‘वुनकी संतुष्टी क्यार औरु कौनो उपाय बताओ,अब वुनकी पसंद क्यार खाना कपड़ा कहाँ खोजिके लाय पैबा ? ..यू सब हमते न सधी।’ 

‘ कौनिव बात नहीं यू न सपरै तो उनके नाव ते संकलप कराय दीन  जाई।वुनके पन्दरह दिन की खुराक औ दुई जोड़ी कपड़न के पैसा  हिसाब जोड़ के लैके हमरे ठीहे पर  माने मंदिर म आय जायेव।हम तुमरे पुरिखन का संतुष्ट करवाय देइब।रामलाल सोचिन यू तो अउर महंग परी। तनी चौकन्ने भे फिर पूछेनि  ‘ए पंडित महाराज ! का तुमका हमार पुरिखा देखात हवैं ?’

पंडित कहेनि - अरे मास्टर!,तुम बहुत हुज्जत करत हौ!.. अब हम तो मंदिरे म रहित हवै, हमका तीनो तिलोक देखात हवै।तमाम ई गाँव जवार के पुरिखन कि आत्मा येहि दिनन म मंदिर मंदिर भटकत है।अब  जनसंख्या जस जस बढ़िगै तो आतमा कि तादात बढ़ी है।घंटा भरि तुमरे पुरिखन का हेरे म लाग जाई,वहिकी हमार दच्छिना अउर जोड़ लिहेव।अब तुम पैसन क्यार इन्तिजाम कैके काल्हि मिलौ।अबै हमरे तीर टेम नहीं है।रामलाल कहेनि बस याक बात और बताय देव पंडित दादा, “जो कोऊ सराध न कइ पावै तो का होई  ?”

‘ उंह ...तो पुरिखा खफा हुइ जैहै ,सराप देहैं ..वुनका भूखा पियासा रखिहौ तो का खुस होइहैं ?. अरे गैया, कौआ,औ कूकुर सबका जेवावैक परी।"अतना कहिके पंडित महाराज मंदिर के भीतर चले गे।संझा हुइ चुकी रहै पंडित कि बात गुनति भये रामलाल  घर का लौटि आये।

उनका जने कैसे निराला की सुधि आयी। कबौ कबौ पुरान पढ़ाई कामे आय जाति है।मनहिम दोहरावे लाग-"दूबर होत नहीं कबहूँ,पकवान के बिप्र मसान के कूकुर।"

पाखंडी पंडित क्यार  यू सब पंवारा सुनि तो लिहिन लेकिन उनकी बातन पर  यकीन न भा।सोचत रहे कि - का हमार पुरिखा, गैया, कौआ औ कूकुर आंय? बस घर का आयके खाय पी कै सोय गये।भिनसारे आँखि खुलि गै,वहि दिन सपने म उनका दादा औ अजिया दुनहू जने देखान।सपने मा रामलाल लपक के वुनके पांय छुएनि ,पुरिखा  पोता क्यार  मुंह सोहरायेनि फिर कहेनि - ‘ललुआ,तुम चिंता न कीन्हेव हम तुमते बहुत संतुष्ट हन,पुरिखा कबौ अपनी औलादिन क सराप देत हवैं ? पंडितवा कि बातन म न आयेव।..तुमार मन करै तो ई जो कोरोना काल के सताए मजूर औ बेसहारा मनई हवैं वुनका खाना  खवाय दिहेव। कितौ वुनका कुछ पैसा ते मदति कइ  दिहेव, बस  हमार जिउ जुड़ाय जाई।हम तुमते बहुत खुस हन। तुम कुच्छौ न करिहो तब्बौ हम खुस रहब।हमार चिंता जिन करा , चिंता करौ चम्पा के बियाहे की ,हम दुनहू जने वहिमा  सामिल होइबै।’

रामलाल कि नींद उड़ाय गै,आखीं मलिन, धरती के पांय लागिन औ अपने कामे ते निकर लिहिन।अब पुरिखन क्यार आसिरबाद मिलिगा रहै तो अब वुनका नई राह देखाय लागि रहै।तड़के घर ते बाहर जात देखिके रामलाल कि दुलहिन पूछेसि  -  ‘कहाँ सवारी जाय रही ?...सराध का इन्तिजाम न करिहो ?’

‘तनी पथरकटा तके जाबै,तुम पूरी तरकारी और खीर तैयार करौ ..हम नेउता दैके आइत हवै।’

‘केहिका नेउता देहौ ?’

‘अरे,अबै भिनसारे बाबा औ दाई दुनहू सपने म आये रहे ,वुनका यहै हुकुम आय कि अबकी सराध म  गरीब मजूरन का खाना खवाई, जो दान देयक होय तो इन मजूरन का दान दीन  जाय।..तो अब हम वुनकी इच्छा पूरी न करब?पथरकटा के मजूरन ते जादा गरीब दुखिया ई कोरोना काल म और हम्मै कहाँ मिलिहैं? ’भूखेन क खाना मिली तो हमार पुरिखा खुस हुईहैं।

अबै तमाम हमरे अवधियन  का नई राह नहीं देखात हवै।मुला धीरे धीरे नएके लरिका बिटियन के मन मा ज्ञान बिज्ञान कि जोत जलब सुरू भै हवै।धरम करम वहै नीक आय जेहिते गरीब मनई क भला होय।




16.


अवधी डायरी 

 “जय गजबदन बिनायक”

#मिसिर भारतेंदु  

अनंत चौदस का गनेस भगवान कि पूजा क्यार आख़िरी दिन होत हवै| चतुर्थी ते चौदस तके दस दिन गनेस भगवान हियें रहत हवैं | आज बिदाई क दिन आय अब अगले साल फिर अइहैं |सब जने आज जो कुछ मांगेक  होय, मांग लेव |अब फिर एक साल बाद अइहैं | ई दस दिन ते सबके घर मा बैठ आंय,मुला कोरोना क परभाव तिनको कम न भा | देउता वहेकि मदति करिहैं जो अपने मुँह पर मुसिक्का माने मास्क कसे रही | जो मनई खटराग म गाफिल हुइहै, लापरवाही करिहै तो गणपति बप्पा वाहिका कस  बचाय पैहैं ? तुलसीबाबा रामचरितमानस लिखति बेरिया सबते पाहिले गनेस भगवान का ध्यान कीन्हेन रहै| उनका पहिल सोरठा द्याखा जाय-

जो सुमिरत सिधि होय,गन नायक करिवर बदन |

करहु अनुग्रह सोय ,बुद्धि रासि सुभ गुण सदन ||(बालकाण्ड -1 ) 

माने सब देउतन के नायक ,गजबदन  भगवान गनेस ते बिनती  अहै कि वुइ किरपा बनाए राखें |वुइ बुद्धि की महारासि , सुभ गुनन के खजाना  हवैं |जिनकी सुधि करते खन सब काम सिद्ध हुइ  जात हवैं | तुलसीदास उनका अवधी म सुमिरन किहिन तो रामचरितमानस उनका अमर ग्रन्थ  बनिगा | मजे कि बात तो यह आय कि गनेस भगवान का अवधी बहुत पियारि लागत हवै| वुनकी आरती जब अवधी भासा म होत है , तो उनका मन खुस हुइ जात हवै | बप्पा अवधी के बड़े प्रेमी हवैं , लेकिन ई अवधिया नेतवा नहीं जानत , ई लीचड़ दुखिया तो अवधी भासौ कि महिमा नहीं जानति|कुच्छ बौड़म तो अवधी क बोली बतावत आंय , अब बेकूफन  का कस समझावा जाय कि बोली तो चिरियन औ जनावरन  कि होत हवै   |अब देखि लेव सब मन्दिरन  म गनेस भगवान का खुस करे बदि आजु ‘अनंत चौदस’ के  दिन  यहै अवधी भासा कि आरती गाई जाई-

जय गनेस जय गनेस जय गनेस देवा |माता जाकी पारबती पिता महादेवा || 

या अवधिये भासा तो आय | पुरनिहन का  तो पूरी आरती  यादि होई | नएके जवान जिनका न यादि होई वुइ मोबाइल ते काम चला लेहैं ,लेकिन गणपति भगवान सब जानत हवैं कि कौन असली भगत आय औ कौन नकली पाखंडी | कौन वोटन के बरे कूदत आय, कौन लड्डू ,मलाई खातिर लार चुवावत आय |उनकी भगति पर भगवान संदेह करैं चहै न करैं  लेकिन अस मनई अपने  काम काज पर याक दिन खुँदै संदेह करै लागत हवै|माने नकली भगति ते मन क्यार बिसुवास धीरे धीरे चुकै लागति हवै | भीतर कि ताकत कम होई तो मान  लेव कि बीमारी पकरिन  लेई |कोरोना जस बिपदा भगवानै बनाएँ हवैं , काहेते वुनकी मरजी के बिना ई संसार म कौनो काम नहीं होत | भीतर कि कमजोरी ते मनोबल जब ख़तम होई तो सब बीमारी पकरिन लेई,ऐसेहेम कोरोना होति हवै| 

अबकी कुछ मराठी भगत ‘ट्री गणेश’ बानाएनि रहै, वहिमा कच्ची माटी  के गनेस कि मूरत म पहिलेहे कुछ फल फूलन के बिया डार दीन  जात हवैं , ताकि  जब मूरत सेरवायी जाय तो वहि जगह फल - फूल क बिरवा जामि आवै | यह बहुतै नीक तरकीब आय |पूजा के साथै पर्यावरण कि सुरक्षा अपने आपै हुइ जात हवै| ई नए तरह के ‘ट्री गणेश’ अपने घरके गमले म सेरवाय लीन  जात हवैं दास पांच दिनन मा गनेस भगवान नए बिरवा के रूप म हरियाय आवत हवैं | न मनइन कि  भीड़ बढावेक, न नद्दी ताल म कचरा भरेक | नदी येहि बिध गनेस पूजा ते बहुतै खुस रही ,मनइन कि भीड़ न जुटी तो मान लेव कि कोरोना नेरे न आयी | बस भैया,गनेस भगवान सबकी रच्छा  करैं | गजबदन बिनायक ,गणपति बप्पा कि जय |

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17. भाखा बहता नीर

#मिसिर भारतेन्दु

हमरी लरिकई म गावन म अपनी महतारी क सब बुआ कहत रहैं। बाप कि बहिनी क बुआ कि बजाय  फूफू कहा जात रहै।अब तो मम्मी क्यार जमाना आय गा।बखत कि बलिहारी  द्याखो कस ज़माना आय गा कि महतारी बीमार हवै,बिटेवा नाची नाची घूमत आय।अवधी भाखा ते पैदा भै या हिन्दी वहिकी बिटिया आय,वहिकी तरक्की ते हमहू खुस हन।लेकिन अब हिंदी कि नाच गौनई खातिर सरकार पन्दरह दिन क्यार जसन करति हवै।बड़े दाढ़ी मूछ वाले कबि ,चमकुई कबियत्री ,चटक मनई, सुघरी महेरिया सब हिन्दीवाले हिंदी के सरकारी हफ्ता मा मौज करत हवैं।सरकार के बड़े बाबू माने बड़े वाले अफसर ई पन्दरह दिनन म एक दुइ आदेस हिन्दी म टाइप करवाय के नोटिस वाले पटल पर लगवाय देत  हवैं।बड़े बड़े हिन्दी के प्रोफेसरान सरकारी पखवारा म भासन  बदि  बोलाए जात हवैं,कुछ चमचा टाइप मसखरा कबि येहि बेरिया हिन्दी हिन्दी चिल्लाय लागत हवैं।तीन चारि  कोने क्यार मुंहू बनाय के विदुआन लेखक हिन्दी के भविष्य कि चिंता करत हवैं।कौनव बढ़िया  हिन्दी क्यार मुहाबिरा कितौ कहकुति  रटि के आवत हैं ,सब सरकारी बाबू चौकीदार,अफसर  वाह वाह कहिके तारी कूटत हवैं। सरकारी पैसा येही तना कायदे ते बाँट लीन  जात हवै।

दुसरी तरफ हिन्दी कि बुआ माने अवधी,औ वहिकी बहिनी  ब्रज,बुन्देली, सबियों बीमार परी हवैं ,वुनका कोऊ हाल पूछे वाला नहीं।जब सौ साल पहिले हिन्दी पैदा भै रही तब ई  सब लोकभासा बहिनी मिलिके वाहिका पालेनि पोसिन रहै ।बिटिया कि सल्तनत खुब फैलि गवै।अब हिंदी क्यार बजार बनिगा, नमालूम केतने हिंदी ते रोजगार बढिगे, यू सब बहुत खुसी कि बात आय।सनीमा,अखबार, बिज्ञापन,हिंदी के चैनल,पूरी दुनिया म हिंदी क्यार डंका बजाए हवैं। नेट पर लाखन मनई लरिका बिटिया सब हिंदी म लिखत पढ़त हवैं तो देखि के जिउ जुड़ाय जाति हवै। हिन्दी राष्ट्रीय राजभासा के पद पर अपन हक जमावत  बहुत आगे पहुँचिगै, अवधी सबियों अपन साहित्य शब्द संपदा वाहिका सौंपत चली गय। हिन्दी कहिस- अमीर खुसरो,मुला दाऊद ,कुतबन,मंझन ,जगनिक, कबीर,गोरखनाथ,जायसी,तुलसीदास सब हमार कबि आंय।अवधी बिना कुछ कहे बिटिया हिन्दी क सबियों अपन सब्द संपदा कि थाथी सौंप दिहिस। येही तना हिन्दी दुसरी लोकभासा ते तमाम कबि और उनकी सबियों  सब्द संपदा खैंच लिहिस।अब वा हिन्दी राजभासा तो बनिगै, लेकिन बिदेसी मैडम अंगरेजी के आगे जतनी तरक्की वहिकी होएक चाही वह  न भै।अब हिन्दी के पाखंडी प्रोफ़ेसर येहि बिच्चा मा बिद्यार्थिन  का बतावै लाग कि अवधी भासा न आय वह तो बोली आय। ई कलजुगहे लोकभासा क बोली बतावै लाग , इनकी अक्किल कटिगै है इनका बिबेक मर चुका हवै ।बाबा तुलसीदास कहिन रहै -कीरति भनिति भूति भलि सोई।सुरसरि सम सब कह हित होई।लेकिन ई बिदुआन अपने स्वारथ म अन्धराय गए हवैं।

अब तो अंग्रेजी कि गुलामी म नएके लरिकवा बिटेवा नागरी लिपि त्यागि दिहिन हवै।पुरान सब्द संपदा सबियों खियाय गै। अब ई बड़के प्रोफेसर हिंदी वाले पत्रकार सब हिंदी म अंग्रेजी सब्दन कि घुसपैठ ते चिंतित हुइके अपन बयान जारी कै रहे हवैं। कुछ  "हिंदी बचाओ"नारा लगाय रहे हवैं।लेकिन ई मन कि गुलामी न छोड़ि पाए।सबन के लरिका बिटिया अंग्रेजी माध्यम ते पढ़त हवैं।

अबै जादा देर नहीं भै, अबहिउ जो अवधी बृज बुंदेली जैसी लोकभासा कि सब्द संपदा बचाय लीन जाय तो हिंदी म ताकत आय जाई। अंग्रेजी सब्दन कि गुलामी ते निजात मिली।लेकिन लोकभासा कि तरक्की होय माने इनके लिखइया पढ़इया तनी सरकारी राहत पाय जाँय तो वहिते हिंदी कि जड़ मजबूत हुइ जाई।बुआ मौसी जैसी लोकभासा जो तनी रुगरुगाय जाँय तो हिंदी दुनिया कि नम्बर वन भासा बनि जाई।अबहीं तो हिंदी कि बुआ बेसहारा औ बीमारै परी हवैं।गाँव जवार के नएके लरिका बिटिया जो अवधी कि सेवा करै लागैं तो बहुत नीक सुरुआत होई। हिंदी अब अतना आगे बढिगै है कि वहिका  रोमन लिपि ते खतरा तो हवै, लेकिन अवधी ते नहीं। भाखा बहता नीर कहा गवा है, वहिका रोकि पावै कि ताकत कोऊ के पास नहिन।


18. अवधी के इतिहासकार

अवधी के रामचंद्र सुकुल माने डॉ श्यामसुन्दर मिश्र मधुप जी सुधि आय गय |आधुनिक अवधी कि तमाम जानकारी अकट्ठा करै वाले मधुप जी सीतापुर के आर.एम.पी.डिगरी कालेज मा रीडर औ हिन्दी बिभाग के अध्यक्ष रहैं। सन 1980 म हम उनका पहिली दफा दीख रहै | तब हम उनके कालेज ते पीएचडी खातिर रजिस्ट्रेसन कराए रहन | हम लखनऊ ते गए रहन तो उनका स्टाफ रूम देखेन |भाव अस कि हमका संस्कृत बिभाग के  डॉ.देवनारायण सास्त्री जी ते मिलेक रहै|सास्त्री जी टाई सूट  म मिलत रहैं |उनका चीन्हित रहै |तो एक कमीच औ उटंग धोती पहिरे ई हमका मिले हम जाना कि कौनौ चपरासी होई | शास्त्री जी क्यार इंतिजार करेक रहै तो उनहे ते देर लौ कालेज के बारे म  बतियात रहेन| फिर जब शास्त्री जी आए तो वुइ परिचय करायेनि |कहेनि - ई मधुप जी हिन्दी विभाग के प्रवक्ता आंय | सीतापुर मा हमार आभिभावक अस हैं |

हम बहुत सर्मिन्दा भएन ,तबते  उनकी सहजता के कायल हुइगेन रहै |अपन गलती महसूस कैके चलत बेरिया उनके पांय छुएन|तो वुइ पीठि हाँथ धरिके असीसिन |  उनका जनम 5 अक्टूबर सन 1922 क शरद पुन्नमासी के दिन भा रहै।नब्बे साल कि लंबी उमिर पाएनि 2012 म उनका देहांत भवा ।अब वुइ ई दुनिया म नहीं हैं।मुला अवधी खातिर कीन गा उनका काम दूर ते  झलकत अहै।वुइ अवधी कि कबिताई तो करबै किहिन लेकिन  सबते बड़ा काम अवधी के सैकरन साहित्यकारन का यक्कै साथ जोरे रहे।उनकी लिखी करीब पचीस किताबै उनकी मेहनति औ अवधी कि आलोचना कि राह बनौती आगे आगे देखाती हैं।सीतापुर के आसपास के उनके हजारन बिद्यार्थी उनकी सहजता औ अवधी सेवा के गवाह बने हैं।वुइ लखनऊ वि.वि. ते अवधी साहित्य म पहिल पीएचडी रहैं।चौगिरदा जवार म उनका बड़ा सन्मान रहै।उनका जब देखेन तो कुरता धोती म देखेन या फिर कुर्ता औ फतुही औ उटंग धोती पहिने मिले,सर्दिन मा भीतर बंडी कितौ ऊपर बंद गले क कोट पहिरत रहैं।दुई तीन दफा उनके रोटी गोदाम वाले ठीहे पर  जायेक मौक़ा मिला।सुद्ध किसान सहज मनई देखात रहैं।तुलसीदास के नाव ते कौनिव संस्था बनाए रहैं।जब कहूं अखबार या पत्रिका म हमार कोई अवधी कि रचना छपै तो वुइ तुरतै चिट्ठी लिखि के तारीफ करैं। 

सन 1986 म हम नौकरी के सिलसिले ते दिल्ली आय गएन तो मुलाकात कम हुइ गइ | चिट्ठी पत्री होत रही |जब हमरे घर पर फोन लागि गा तो वुइ अक्सर फोन ते बतकही करत रहैं ।साल मा एक दफा अवधी कबियन का अकट्ठा करे बदे बड़ा आयोजन कीन  करत रहैं।याक दफा हमहू उनके आयोजन मा सामिल भएन रहै।वहि आयोजन म दादा विकल गोंडवी,लवकुश दीक्षित,सत्यधर सुकुल ,दिनेश दादा, डॉ.गणेशदत्त सारस्वत ,डॉ.अरुण त्रिवेदी, सब सामिल रहैं। ई पुरानेन का हम चीन्हित रहै इनके अलावा और तमाम आसपास केसीतापुरिहा,बाराबंकी,सुल्तानपुर,फैजाबाद  के कबि जुटे रहें।संझा ते लैके पूरा कार्यक्रम राति भर चला।सबका खाना पानी,पहुड़े  बैठेक सब व्यवस्था वुइ खुदै द्याखत रहै।

उनका लरिका नेता रहै औ रोटी गोदाम म  स्कूल चलावत रहै |वहै दुमंजिला स्कूल क्यार भवन लिखैया पढ़ैयन खातिर विश्राम गृह जस रहै।दुइ चार साहित्यकार हुआं हमेसा परे रहत रहैं।ऊपर कि मंजिल मधुप जी के तीर रहै |दादा लवकुश जी ते हुआ  वहै आख़िरी लम्बी मुलाक़ात भै रहै , हुवैं दादा सत्यधर सुकुल ते मुलाकात भै रहै।तबहें वुइ मनेउरा (प्.वंशीधर शुक्ल जन्म स्थली),लखीमपुर आवेक न्यौता दिहिन  रहै।

 मधुप जी के रोटी गोदाम वाले भवन मा तबै उनकी तीर कोई आठ दस हजार  किताबन का निजी पुस्तकालय रहै। सब किताबन क्यार रखरखाव वुइ खुदै करत रहैं।ऊपर कि मंजिल पर कमरन  मा तखत परे रहैं।चौतरफा अलमारी बनी रहैं तिन पर लिखा रहै कि ई अलमारी म कौनी किताबे धरी हैं।वुइ सही माने म अवधी  के  संत रहैं।अपन किताबन क संग्रह हमका देखाइन जैसे कोई किसान खुस होइकै अपन फसल देखावत है |कहेनि- भैया!,आप सबकी अवधी कि किताबैं हियाँ धरी हैं | अब यहै हमारि संपदा आय | हम तो बाबूराम सुकुल के साथै दिल्ली ते गए रहन, न जाने काहे हमरे प्रति उनकी ख़ास प्रीति रहै।बिदाई कि बेरिया हम पांय छुवेन  तो एकु लिफाफा हमारी जेब म खोंस दिहिन।हम कहा- दादा! हम कमाइत है अब येहिकी  कौनो जरूरत नहीं।

 बहुत कहेव पर वुइ न  माने कहेनि-यू केरावा आय बसि,तुमका कुछ देय का हमार अधिकार आय।हम फिर आगे कुछ न कहेन |

वहि आयोजन के दुइ सत्र रहे।पाहिले सत्र म वहि कार्यक्रम क्यार उद्घाटन निवर्तमान मंत्री भगवती सिंह किहिन रहै। मधुप जी का लरिकवा साकेत राजनीति म घुसि गा रहै। बसपा के टिकट।ते चुनाव लड़ा लेकिन जीत न पावा।भगवती सिंह  बहुत देर तक आयोजन म रुके रहे।का जानी मत्री जी बोलचाल म हमका कुछ  वीआईपी समझि लिहिन,दिल्ली वालेन के साथ ई तना के भरम हुइ जात हवै।भोरहरे हमका अपने घरे लखनऊ जायेक रहै तो मंत्री जी अपनी गाड़ी ते हमहुक लखनऊ लै आये।रस्ता कि बतकही म पता लाग कि वुइ हमारे गाँव जवार के आंय औ हमरे दादा का नाव ते चीन्हत रहैं।यू जानि के और मन खुस भा।

मधुप जी का उत्तर प्रदेश सरकार ते उनका 2004 म साहित्य भूषण सम्मान मिला रहै। वुइ जमाने म लिखैया पढैया मनई कि नजर मा सरकारी साहित्यिक सम्मान कि इज्जत रहै। अब हालात बदल गए हैं।पढीस ,बंशीधर सुकुल,विश्वनाथ पाठक पर तो वुइ आलोचनात्मक किताबे लिखिन रहै। सत्यधर जी के साथ मिलिके बंसीधर जी की रचनावली क्यार संपादन किहिन रहै।यहिके साथे अवधी क श्रीगांधी चरितमानस,आधुनिक अवधी के कवि,घास के घरौदे -उनकी ख़ास किताबैं मानी जाती हैं।लेकिन आख़िरी उनकी बड़ी किताब बहुतै जरूरी आय वह है- अवधी साहित्य का इतिहास ।मधुप जी अपनी जिन्दगी के आख़िरी टेम तक किताबन कि दुनिया म खोये रहे।साहित्य अकादमी पुरस्कार के बरे उनका नाव चला रहै लेकिन उनकी बजाय विश्वनाथ पाठक क मिला।अवधी साहित्य का उनका लिखा इतिहास आज पढ़ैया लिखैयन बदे अवधी साहित्य का समझे खातिर नई राह खोल देति है।यह साढ़े पांच सौ पेज कि बड़े साइज वाली मोटिकी किताब हवै।ख़ास बात यह कि यहि किताब म  अवधी कि जो तिनकौ सेवा किहिस वाहिका वुइ बहुतै आदर ते उल्लेख किहिन हवै।उनकी जयन्ती के दिन आज उनकी सुधि का नमन।


19.दिया चिरैया

अवधी डायरी

#मिसिर भारतेन्दु


बिटिया दिया तना हर घर का उजियार करती हैं। वहे चिरैया तना संस्कृति कि रच्छा करती हवैं।जी घर मा बिटिया नहीं होतीं हुआँ बरक्कति नाई होत।पढ़ीस जी बिटौनी सीर्षक कबिता म बिटियन के बरे लिखेनि रहै- 

बप्पा के तप की बेदी,

अम्मा की दिया चिरैया। 

पढ़ी लिखी बिटिया समझदार महतारी बनिके नयके लरिकन के भविष्य क संवरती हैं।पढ़ी लिखी माता,घर कै भाग्यबिधाता आय।

याक बिटिया पढ़ि लिखि कै पूरे परिवार क ज्ञान विज्ञान कि रोसनी ते चमकाय देति हवै।नीकि पढ़ी लिखी समझदार बिटिया मैके ससुरे दुनहू जगह आदर पावति है।लेकिन मनई अबहिउ बिटियन क पढ़ावै के बरे सजग नहीं हवै।अबहिउ लरिका औ बिटिया म भेद कीन  जात अहै।

हमार मर्दवादी समाज तो बिटियन कि पूजा करै म बहुत आगे रहा हवै।अब ई नेवरता चलि रहे हैं तो सब घरन म कन्याकुमारी पूजी जैहैं।सब घरन म उनका जेंवावैक कम्पटीसन होई। पंडित,और सबै धर्मधुरंधर देबी गीत गावत मिलिहैं।हफ्ता भरेक लिए उनका देबी बनाय दीन  जाई।उनका दुर्गा रूप साल म दुइ दफा नेवरतन म सब सभ्य मनइन क यादि आवत है।सब चौतरफा कन्याकुमारिन की भगति होय लागत हवै।मुला उनकी सुरक्षा और तरक्की खातिर जस इन्तिजाम होएक चाही वस नहीं बन पाए।


लेकिन यहौ गैरतलब हवै कि साइतै अस कौनो दिन होय जी दिन कहूँ बहू,बिटियन के साथ बदसलूकी औ बलात्कार कि खबर सुनैक न मिलै। बीच बीच म मेहरुअन ,बिटियन पर अत्याचारन के  उनका मारैके समाचार आवा करति हैं। हमार समाज की तनका  होति जाय रहा है।जिनका पूजत हवैं उनहिक बेज्जत करत हैं।कबौ धरम के नाम पर कबौ जात बिरादरी के नाम पर तो कबहूँ दहेज औ नकली मुहब्बत के धोखे म।जादातर मौत बिटियन मेहरुअन के हिस्से म आवति है। तेज़ाब उनहिक के मुंह पर फैका जात हवै। अँधेरे उजेरे म जालाई वहे जाती हैं।इकैसवीं सदी के बीस साल बीत गये, हमरे समाज कि बिटियन मेहररुन कि तकदीर न बदल पाई। आंकड़ा बतावति हवैं कि हमरे हिंदुस्तान म रोज करीब 87 मेहरारुन औ बिटियन के साथ छेड़खानी औ बलात्कार कि घटनाएं होती हवैं।यहिमा उत्तर भारत के हिंदी प्रदेसन म ई तना कि घटना सबते जादा होती हैं।मालूम होत हवै कि हमार समाजै मानसिक रूप ते बीमार हुइगा हवै।राजस्थान के बादि अपन उत्तरप्रदेस येहि मामले म दूसरे नम्बर पर हवै।बड़े बड़े नेता,सिच्छाविद,बड़के अधिकारी,महिला आयोग सब बिल्कुल बेकार साबित होइगे।महिला नेता जिनका आगे आवैक चही वहू सब चुप्पी साधे बलात्कारिन के साथ खड़ी देखाती हवैं। सब पार्टी पार्टी खेलै लागत अहैं।जब कहूं - अगले जनम मोहें बिटिया न कीजो - गाना सुनाति है तो करेजु मुंह का आवै लागति हवै।अपने समाज पर यानी खुदै पर थूकै कि इच्छा होय लागत हवै।

खबरिया चैनल अपने हिसाब ते भड़काऊ खबर देखावत अहैं।कानून तो बलात्कारिन के आगे लाचार हवै।कानून कि देबी अपनी आँखी मूंदे रहती हैं।सनीमा वाले और ई तन के सीन बनावत हवैं कि वहिते समाज म गंदगी पैदा हुइ रही हवै।उनका समाज कि तरक्की ते कौनो मतलब नहीं है।मोबाइल यूट्यूब सब गन्दगी औ नंगपन ते पटे परे हवैं।नीक मनई समाज म डेरभूत बनिके रहत हवैं, बदमास नेतागीरी म घुसिकै कारनामा करति हवैं।सबका जुटियाय के अपन गांव ,मोहल्ला साफ करेक परी। लेकिन अब जो कुछ ई बिटेवा डागदर,इंजीनियर,वकील,जज ,मंत्री  बन रही हवैं।हमका लागत अहै कि अब ई रुके वाली नहीं हैं,बस इनकी पढ़ाई लिखाई न रुके पावै।जहालत कि कारिख धीरे धीरे साफ होई,हम सबका इनके साथ खड़े होएक चही।इनके साथ नौजवान न खड़े हुइहैं तो याक दिन  समाज ते काली औ दुर्गा खुदै निकरिहैं तबहे ई मर्दवादी महिसासुर टाइप राच्छसन क इलाज होई।बिटिया सच्चे माने म अपने बप्पा के तप की बेदी औ अपनी अम्मा की दिया चिरैया बनि पावैं तो समाज क बहुत भला होई।सबते पहिले तो बिटियन  के महतारी बाप औ भाई समझदारी ते काम करैं।कोसिस करैं कि अपनी बिटिया क्यार नाव ऐसे कौनेव स्कूल म लिखावें जीमा लड़का लड़की साथै पढ़त होंय।भाई बहिन सब याकै स्कूल म जांय तो भेदभाव कम होई।वुइ कमजोर नहीं हैं ,खेल  कूद औ पढ़ाई,नौकरी सब जगह  सब तना ते वुइ आगे देखाती हैं।बस लड़िकन कि तना उन क्यार मौका उनका देव- तब्बै दुर्गा मैया खुस हुइहै।

नमस्तस्यै नमो नमः।

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20.

अवधी डायरी

दसहरा:रावण महाकाव्य

# मिसिर भारतेन्दु

का बताई ददुआ,हर साल रावण बध क्यार स्वांगु होत हवै,मुला यू रावन कबौ मारि न मिला।मनई सब एड़ी चोटी कि अपन कूबत झोंकि दिहिस मुला यू मन मा बैठ अहंकारी रवनवा मारि न मिला।अब हर साल येहिका घेरि के मारे कि नौटंकी कीन  जात हवै,मुला यू दुगनी ताकतते जी उठत अहै। कबिताई के पुरिखा सब कबियन के परबाबा आदिकबि बाल्मीकि अपनी रामायण मा बतायेन रहै कि यू बहुतै बलगर रहै।येहिके तीर वहि जमाने म माने त्रेता जुग मा सतघ्नी तोपै रहैं।सतघ्नी माने जेहिके एक्के वार ते सौ मनई मारे जात रहैं। उड़नखटोला तनका विमान तो रहिबे कीन।सब देउतन क हरायेस रहै। वहु कुबेर ते सोने कि लंका छीनेसि रहै। पुरिखा बतावत हवैं कि वहेक पास दस खोपड़ी कि बुद्धि रहै तबहें वहिका दससीस कहा जात रहै।यू जान लेव कि वहु दसो दिसा म यक्कै साथ देखि लेत रहै।आधुनिक ज्ञान बिज्ञान तकनीकि ते जादा तरक्की वहिके लंका राज म हुइगै रहै। भगवान भोले नाथ क्यार भगत रहै,शिवतांडव लिखिस रहै।बहुतै मायावी रहै लेकिन हमार भगवान राम वाहिका एकतीस बाण याके साथ छोडिके मारेनि रहै।येहि कामे म भिभीसन उनका साथ दिहिन रहै।भिभीसन जो अपने भैया ते दगा न करते तो साइत राम वाहिका मारि न पौतीं।भिभीसन  का भगवान लंका क राजु दै आये रहैं।

      हमार ककुआ कहति रहैं कि बच्चा ,भिभीसन  तन के मनई हर जमाने म राज कराति अहैं।वह जौन कहकुति हवै - घर का भेदी लंका ढहावै- भिभीसन  क अपने भाई क्यार दुसमन तबहें माना जात हवै।रावण सुमाली क्यार नाती,बिस्रावा और कैकसी क्यार सबते प्रतापी बेटवा रहै।वहिके परताप ते देउता कांपति रहैं।वहिका भगवान राम भिभीसन  कि मदत ते मारेनि रहै।बानर सेना उनके साथ रही येहि लिए राम क पूजा जात अहै कि मनई सत्य औ न्याय पर चलै, अहंकारी रावण न बन जाय।दसहरा माने दस अहंकारी खुराफाती खोपड़ी वाले राजा  के बिनास क्यार दिनु आय।लेकिन मजे कि बात यह आय कि हर साल रावण क्यार कद वैभव बढ़तै जात हवै औ  राम कि धनुही वहिते कमजोर देखाय लागत अहै।यह बहुतै चिंता कि बात आय।हमरे समाज म  भोग बिलास कि आदति तो असमान पर पहुंचि  गवै।अब तरक्की क्यार मतलब देखावा औ झूठ मूठ क्यार परदरसन रहिगा हवै। मनई अपन कार, घर,कपड़ा औ न जानी का का देखावै म लाग हवै।

राम अपनी सादगी औ त्याग ते सबका मन अपनी तरफ खैंचत अहैं।लालच उनके मन मा नहीं हवै।वरना जीती भई सोने कि लंका काहे छोड़ि देतीं ? तनी सोच लेव कि दसहरा रावण वध  कि खुसी म मनावा जात है कि रावण के गम मा ? वैसे बिदुआन मनई कहति हैं कि रावण वोतना खराब न रहै जेतना वहिका बतावा जाति हवै।लंका म तो आजौ रावण कि पूजा होत हवै।हुवन रावण क्यार भव्य मंदिर बना है।

हमरे महमूदाबाद अवध सीतापुर के एक कबि हरदयालु सिंह जी तो रावण पर महाकाब्य लिखेन रहै।उनका जन्म सन 1897 म भवा रहै।वुइ वैश्य परिवार के रहैं।संस्कीरत के बड़े बिदुआन औ सिच्छक रहैं ।उनके लिखे दुइ ख़ास महाकाव्यन कि जानकारी मिलत हवै- 1.दैत्यवंश महाकाव्य 2.रावण महाकाव्य।येहिके अलावा वुइ तमाम संस्कीरत के नाटकन क्यार अनुवाद किहिन रहै ।तबै उनका उनकी कबिताई खातिर काशी नागरी प्रचारणी सभा ते देव सम्मान और रत्नाकर सम्मान मिला रहै। रावण महाकाव्य म सत्रह सर्ग हवैं।पूरा महाकाव्य अवधी भाखा म लिखा है।उनकी कबिताई जेतनी नीकि है वहिते जादा उनका विषय चर्चित भवा ।यहै जान लेव कि उनके लिखे के बाद आज तके दूसर कौनो कबि हिन्दी अवधी म रावण पर ग्रन्थ लिखै कि हिम्मत  न जुटाय पायेसि।बदकिस्मती द्याखो कि उनकी मौत सांप काटे ते भै रहै तो पढ़ैया लिखैया पोंगा पंडित सब तन परचार किहिन कि दैत्यवंश और रावणमहाकाव्य लिखै क्यार यहै फल  उनका मिला।अब का बतावा जाय कुछ हमार पाखंडी अवधिया येही तन के बौखल अहैं।ई सब मूरख अबहिउ व्यवहार बुद्धि के समुहे पाखण्ड कि लाठी भांजै लागत हवैं।अब तो चेत जाओ अवधियों,सादगी क्यार संदेसु गांठी म बाँधि लेव।हरदयालु सिंह जी रावण महाकाव्य के अंतिम पद मा अपन परिचय दिहिन हवै।उनका कबित्त औ उनकी  भासा देखी जाय-

सीतापुर मंडल अमीर अहमद खां के /राज में प्रसिद्ध महमूदाबाद ग्राम है ।

वैश्य वंश भूषण अदूखन सबै ही भांति /मातादीन साह को सुअन अभिराम है।

कवि हरिनाथ तहां मुदित निवास करैं /नन्द के कुमार जू कौ करत प्रनाम है।

गिरिजा गिरीस की चरन  रज पाइबे की /जाके हिय मांहि अभिलाख निसि याम है।

जय सियाराम।

 

21.सबके दिन बहुरैं

  अबहीं  भैया किसन चौधरी मिले तो बतावै लाग कि काल्हि करवा चौथि क त्यौहार रहै तो उनकी दुकान कि बिक्री बहुत बढ़िया भै।

हम कहा नीक है भैया ,मुला यू बताओ- का तुम्हारि मेहेरुआ करवाचौथि क्यार उपवास करत हवै।वुइ कहेनि - नाहीं , हम तो निर्गुनिया आहिन।अपने सतनामी गुरू महाराज कि कंठी पहिरित हवै तो हम अपनी  दुलहिन क यू उपवास के झंझट ते आजाद कइ दिया। 

वाह भैया बहुत नीक काम कीन्हेव।

अब दुकानदारी खातिर जो बारदाना जनता क चही सो वहै दूकान म भरित हवै।या धरम कि बात आय जीका जस मन होय करै।जस गहकिन कि मांग होत हवै तस सामान कानपुर ते मंगवाय लेइत है। अरे ई सगुनियन  का धरम धंधा चले देव भैया।पाखंड न होई तो हमार दुकान कस चली ?

  हम कहा लेकिन किसन भैया जो कबीर साहेब कहिन रहै -

 करैं एकादसी संजम सोई,करवा चौथि गदहरी होई। 

कहै जो करवा चौथ कहानी ,तासु गदहरी निश्चय जानी।  -कबीर 

कबीर साहेब मेहेरियन ते कहति आंय कि जो बहुत नियम संजम ते करवा चौथि औ एकादसी क्यार उपवास करती हवैं उनका  अगले जन्म म गदहिया क जन्म मिलत हवै। 

किसन भैया कहेनि -अगले जन्म म का होई का न होई यू तो अबलौं कोऊ जान न पावा मुला अतना साफ़ हुइगा है कि बरत  उपवास औ पाप पुन्नि के  किस्सा सबियों पंडितन के बनाए आंय। नीक मीठ खाय के लोभी पंडित अपने खातिर मंदिर बनवावत रहे औ वहिमा भगवान कि सेवा के बहाने खुदे बिराजमान रहे।सूफ़ी संत फ़कीर निर्गुनिया महात्मा ई तन के ढकोसला पर यकीन न करत रहै। तुम ठीक कहत हौ मुला आजु के जमाने म ठीक बात कौनो न सुनी हमार गुरू महाराज सिच्छा दिहिन रहै कि अपने क सुधारो।

बलिहारी ई निर्गुनिया संतन की जो  पाखण्ड क्यार बिरोध किहिन ।गरीब,दलित औ मेहेरियन कि तरक्की बदि सब जगह संत कबि पहिलेहे ते ठाढ़ देखाति हवैं।ई दुनहू चौपाई कबीर औ गरीबदास के नाव ते मिलती हवैं।माने कबीर कबिताई म बरत उपवास क्यार खंडन किहिन रहै -

अन्ने बाहर जे नर होवै , तीनि लोक में अपुनो खोवै।

वुइ समाज क सच्ची राह देखावा चहत रहैं मुला ई मर्दवादी बैपारी पाखण्ड क अपन धंधा बनाय लिहिन।मर्दवादी बैपारी  कौनो एक मनई न आय, यह तौ  याक तना कि सोच आय जो सबका गुलाम बनाए  हवै।वहे ई पुरोहितन कि घोडइया  चढ़े हैं।यू पितृसत्ता क्यार नसा आय ,जिहिके नसे म चूर मनई याक दुसरे कि देखा देखी म लोक रीति निभावत आय रहे हवैं। सही गलत  क्यार  बिबेक हैये नहीं। अगर येहिका मनई महेरिया के प्रेम का परब माना जाय तो कौनिव बुराई नहीं है।लेकिन यू बाजारू प्रेम नीक नाई हवै।

अब तो जेहिके तीर जेत्ता पैसा वहिके वत्ता देखावा।अब तो करवा चौथि क्यार बजार बहुत बढ़िगा है।अब मनई यहिका दाम्पत्य प्रेम ते जोडिके और नीकी तना खर्चा करे लाग है, फ़िल्मी तर्ज पर देवानी कुंआरी बिटेवा फैसन औ सौख म करवा चौथि रहै लागी हवैं।कुछ मेहेरिया सास के डेर  ते पति खातिर उपवास रहती हवैं।कुछ साड़ी कपड़ा जेवर मिलैकि आसा मा ,कुछ अहिवात बचावै बदि ,कुछ पुन्नि पावै बदि।अब तो देखीदेखा कुछ नौजवान लरिका पत्नी के प्रेम म उपवास क्यार स्वांग करै लाग हवैं। भैया ,जस घर मा सन्ति मिलै तस मनाओ करवा चौथि। महूरत बाजार सेट करत हवै।जीका संझा बेरिया  पूजा क्यार तितम्बा नीक लागत अहै वुइ खर्चा करत हवैं। पाएन  म महावर लगाए,सजी संवरी ,पहिरी ओढी महेरिया सबका नीकी लगती हैं,हमरी लरिकई म माटी के कितौ ताम्बे के करवा होत रहैं, वहिकी टोंटी म कांस कि पीली पीली सींकै खोंसी जाती रहें।तीके ऊपर माटी के दिया धरि के कामदेव के रूप म चनरमा कि आरती कीन  जात रहै। ई दिन चन्द्र देव बहुत नखरा कैके संझा क निकरत हैं। साबित्री औ सताना कि कथा होत रही।  पूजा के बादिही संझा क्यार खाना मिलत रहै।कढी ,फुलौरी,बरिया भात ,फरा औ चौरीठ वाले देसी घी केर ताजे लड्डू बहुत नीक लागत रहै।सहरन म अब तौ खाना लौ बाजार ते मंगावा जात अहै।

जय गौरी मैया! सबका अहिवात बचाए रहेव ,जस साबित्री औ सताना के  दिन बहुरे तस सबके दिन बहुरैं।


22. परसराम कि मूरत 


का कहा जाय भैया ,सब टेम टेम कि बात आय कबौ बिरवा पत्तन ते पूर ढका  रहत हवै कबौ वहिकी  सबियों पलई फुनगी कि डारै देखाय लगती हवैं।यू बदलाव तो धरती मैया क्यार नियाव आय।नियाव माने नियम, धरती क्यार नियम सबते ऊपर चलत अहै ,अपेल होत हवै।अपेल माने जो कबौ फेल न होय।मनई  स्वाचति हवै कि सबियों वहेकि करनी आय मुला करैया तो कौनो औरुइ आय। 

लेकिन नेता अपन भौकाल ताने अपन कानून चलावत अहैं।जाति बिरादरी वाले तमाम नेता अब आपस म लड़े भिड़े लाग हवैं।वुइ अपन नियम बनावा चहत हवैं। भारत औ चीन के बाडर पर जस खीचा तानी देखात हवै वही तना अब हमरे गाँवन म बकैती हुइ रही है।सब नयके करता धरता बने हवैं ।ऊ जौन मृगेश दादा कहत रहै -

तुम करौ कबितई बंद,

बुढउनू जुगु बदला।

तो हमका लागत आय कि सांचौ जुग  बदलि गवा हवै।मुला नयके लरिकन पर कस यकीन कीन  जाय ? का बताई ? हमरे गाँव के बड़कऊ दाढ़ी बार बढाय  के बकैती करे लाग।अपने कुनबे म उनते जादा उमिरवाले सुद्ध सीध मनई रहैं मुला पारसाल वुइ जबते लखनऊ ते लौटे तबते दाढ़ी बाढाये घूमत अहैं। उनके टोला परोस के  समझदार मनई पहिले तनी समझावे कि कोसिस किहिन मुला जब देखिन कि यू न मानी तो अपन मुंहू पीटि के चुपाय गे। यही बिच्चा म गाँव के मुरहंट उनका बड़कऊ दादा कहै लाग।वुइ अपनी अम्मा कि जोगई धरी अंगूठी औ चेन अपनेहे घर ते पार कैके याक पुरानि बुलट खरीद लिहिन।नाव भवा चोरी क्यार ,बिना चोरी के चोर बदनाम भवा। अम्मा सब जनती रहैं मुला घर मा रारि  न होय मोहल्ले म बात न फैलै यहिके मारे चुप्पी साधे रहीं।अब यहि माहौल म उनकी छाती छप्पन इंच कि हुइगै।  

अब का पूछैक जब वा बुलट धकधकाय तो सब जानि लेत रहै कि बड़कऊ आय रहे हैं।कमाई तो कौनो रहै न, जब कौनो पैसा वाला दुकनदार कितौ  बैपारी के घर क्यार लरिकवा तेल भरवाय दे तो बड़कऊ वाहिका बैठारि के फटफटिया ते घूमै लागत रहैं।चौराहे वाली पनवाड़ी कि दुकान तक दिन मा दुई तीन फेरा उनके जरूर लागति हवैं।हर दफा वुइ अपन कुर्ता कमीच जरूर बदलति हैं,जेब ते कंघी निकार के पनवाड़ी के सीसा म  मुंहू देखि के झबरे बारन पर कंघी कीन्हे बिगिर उनका मन नहीं भरत हवै, येहि बेरिया तो वुइ  खुद का सहंसाह समझत हवैं।धीरे धीरे अब उनका भौकाल बनिगा है बस समझ लेव  वुइ कौनेव सहंसाह ते कम न आंय।पान खाय खाय उनके दांत कत्थई हुइगे हवैं ,खैनी गुटका सिकरट दारू क्यार भपका उनके नेरे जायेते महसूस होत हवै।लेकिन सफलता द्याखो-अब बड़कऊ क याक पार्टी क्यार नवा झंडा मिलिगा हवै,पुरान ललकवा झंडा वुइ कतो लुकाय के धरि दिहिन।नीले रंग वाले येहि झंडा म का जानी का करामत हवै कि उनका अब नेतवन वाली बतकही क्यार सलीका आय गवा है।


लखनऊ ते लौटे के बाद ते अब बड़कऊ कहति हवैं कि यहे चौराहे पर भगवान परसराम कि मूरत लगवैबा। देखेव तुम पंच अबतिक हमार टिकट पक्का है।

घर कै देवाल गिर गै है।अब कूकुर बिलारि सब घर मा घुसे रहत हैं  येहि ते उनका कौनो मतलब नही है। इनके हिस्से कि खेती बटैहा जोते हैं।अब वुइ राजनीति म कूदि गये हैं, परसराम कि मूरत क लैके रार ठनी है ,बात यह आय कि दुसरे टोला के मनई परसराम कि मूरत क्यार बिरोध कइ  रहे हैं।याक दफे येहि मामिले पर भारत चीन बाडर जैस खैंचातानी  हुइ चुकी है।पुरनिहा कहत हवैं कि गाँव क्यार चौराहा तो सबका आय वहि जगह मूरत लगवाये ते बड़ी गाड़ी निकरैम दिक्कत होई। बड़कऊ कहत आंय  कि झंडा बदली तो जुग  बदली,पूरे गांव कि तरक्की होई।हमका देखात आय कि जुग बदलै कि कोसिस  म जिद्दिम जिद्दा जरूर होई।बस चिता यहै हवै कि कहूं गाँव के मनई आपस म लड़ि न मरैं।बिरादरी वाली राजनीति अफीम तना हमरे गांवन म  फैल रही है। ई तनके बड़के भैया खजूर तना बढ़ि रहे हवैं।ऊ जो कबीर साहेब कहिन रहै -बड़ा भया तो क्या जैसे पेड़ खजूर।पंथी को छाया नहीं फल लागै अति दूर।

भगवान परसराम कि मूरत के बहाने अब कौनो नवा दांव कुछ नेता खेलिहैं।मोहरा ई तन के बौखल बड़कऊ बनिहैं।मजे कि बात यह कि न ई भगवान परसराम क जानति हवैं न भगवान परसराम इनका कुछ भला करिहैं।जो कुछ भला होई तो राजनीति के बड़े दलालन क होई।अब कइयो पार्टी वाले परसराम कि मूरत लगवावै कि बतकही चलाय रहे हवैं। अबै जगह तय नहीं हुइ पाई है।बिचारे भगवान परसराम कबौ सोचिन न हुइहै कि वोटन खातिर कलजुग म उनकी मूरत चौराहे पर लगवावै कि घटिया राजनीति होई।हम देखेन है कि तमाम मूरत जो लगी हैं,उनकी सफाई कौनो नहीं करत।उनपर कौआ चिरैयै हगत मूतत हवैं।


23. दलिद्दुर जाय  

जब देवारी आवत है तो सब मनई अपन घर दुआरु चमकावत अहै।अपनि दुकनिया औजार काम धंधे कि सब जगह साफ सफाई के बाद जगह जमीन औजार तके सब जगावा जात अहै। येही दिन भगवान राम मैया सीता औ लछिमन के साथै लंका ते आये रहें।भगवान केसन नरकासुर का मारिन रहै।तबै घिउ के दिया बारे गे रहैं।जस वहि जमाने म अजोध्या सजाई गै रही तस बारंबार सजाई जात हवै।सबियों धरती क्यार अंधियार मिट जाय यह कोसिस हर दफा कीन जात अहै मुला यू अँधियार मिट कहाँ पावत अहै।

अँधियार तो अउर बढ़तै जाति हवै।अनैतिक घटिया आचरण औ लूट मन मा बसाए रहे ते सब तन अँधियार औ करिखै फैली।दिया बाती ते बाहेर रोसनी होई मनके भीतर के कोठार और जलमन कि करिखा वाली कोठरी उज्जल होंय तो सफाई होय।

मोबाइल पर हैपी दिवाली के संदेस भरिगे हैं।लछमिनि मैया कि तस्बीर  के  साथ सैकरन ऊल्लू औ गनेस भगवान कि तस्बीर के संग सैकरन मूस मोबाइल म घुसि आए हवैं।अब मनई कपड़ा मिठाई सब भेंट क्यार सामान ऑनलाइन अपने ब्यौहारिन के लगे पठय देत हवै।माने वस पुरान भैयाचार अब नहीं देखात।मान लेव कि या बाजार हम सबके भैयाचार कि घोडइया पर चढ़िगै हवै।रमई काका याक कबिता म लिखेनि रहै-खेतिहर मजूर के प्याट काटि जैसे कोऊ बैठे बनि कुबेर।

लोहू के दीपक बारि करै अपने घर मा जगमग उजेर।

अब का कीन जाय  ई तना क्यार बजारू ब्यौहार सब तन चलि परा हवै यहिते बचब बड़ा मुस्किल है, मुला पटाखा न दगाएव काहे ते यू तमाम बीमारिन कि जड़ आय।जिनका सांस कि बीमारी हवै उनकै तकलीफ बढि जात हवै।

अपने अवध क किसान बहुतै गरीब हवै।अब खेती किसानी औ उनकी खरीफ कि फसल पर कौनो नेता नहीं बतलात। आसौं महामारी म अवधिया किसान मंजूर बिचारे भुखमरी औ गरीबी ते बिलाय गे हवैं। असली  देवारी तो मनोहर काका  के दिया, मालिन चाची के फूल माला,हमरे गांव के जयकरन के देसी लडडू औ करामत चच्चा कि फुलझड़ी बिकाये  ते  सुभ होई। 

हरियाना पंजाब के बड़के किसान पैरा जलाय के धुआँ उड़ावत हैं तो दिल्ली क्यार दम घुटै लागत हवै। दिल्ली क्यार मनई अब धुंआखोर हुइगा हवै।हर तीसर चौथ मनई सांस क्यार मरीज बनिगा हवै।मुख्यमंत्री क तो पहिलेहे ते खांसी आवत है।हिंया पटाखा दगावै पर केजरीवाल साहेब एक लाख रुपया जुर्माना लगाय दिहिन है।पटाखा ब्याचे पर का जुर्माना कीन जाई यू अबै नहीं पता चला।

हमरी लरिकईं म देवारिन के टेम किसान अपन खेत जगावत रहै। देवारी के दिन ठूठी, झउरी खेत के चारिउ कोने पर एकट्ठा कैके उनका फूंका जात रहै। सब कोनेन पर दिया बारे जात रहैं ,औ गावा जात रहै-

खेत राजा जागत रहेव , चारिव कोन बराबर रहेव।

तबै हम अपने बाबा ते पूछा रहै यू काहे बदि कीन जात हवै, तो वुइ बताइन रहै यह हमारि प्राथना आय।खेत राजा जागत रहिहैं तो हमरे अन्न कि कमी न होई। जब सयान भयेन तो जान पायेन कि यह तौ बैदिक समाज ते चलि आई कृषि परंपरा आय। जागैव के मतलब एक्टिव या तयार रखना आय।

देवारी पांच दिन का परब आय,यहिमा धनतेरस,नरकचौदस,देवारी, गोधन,भैयादूज सब एक्कै साथ होति हैं। बस यहि देवारी म सबका लछमी मैया क आसीस मिलै, काम काज आगे बढ़ि पावै तो खुसी मिलै। हमरे सबके पेटेन म अन्नु  भरैया खेतिहर किसान मंजूर खुस होंय तो जानौ सब नीक आय। मेहेरुअन बिटियन कि इज्जति होय लागै तो जिउ जुड़ाय।

येहि दिन पाहिले जुआ खयाला जात रहै ,अबहिनौ कहूं कहूं जफड़ी जमी देखात हवै।हमार पुरिखा हमरी दाई बुआ देवारी कि रात रुपया पैसा जगौती रहैं।लछमी मैया कि अगवानी खातिर राति भर  घर के केंवाड़ा खुले राखे जात रहै।धुरेहरी के दिन भोरहे तके सूप बजाय के मेहेरुआ प्राथना करती  रहें- ईसुर आवै  दलिद्दुर जाय।जीका मतलब आय कि सम्पन्नता आवै औ दरिद्रता जाय।सबका देवारी सुभ होय।


24.खूसट बुढ़वा


हमरे ई अवधिया समाज  म खूसट बुढ़वा बहुतै उधियान रहत हवैं।गांव जवार म तमाम ऐब फैलावे के पीछे इनहेक हाँथ देखात हवै।हर एक गाँव म अस एक दुइ ,थके हारे परधान कितौ रिटायर लबार बुढ़वा मिल जात हवैं|  मर्दवादी,बिरादरी के भगत,धरम के ठेकेदार,लंपट नेतवन के अगुवाकारी सब ई तन के कामन म खूसटचंद आगे ठाढ़ मिलिहैं। हर मेल क झंडा औ टोपी इनके बक्सा म जोगए रहत हवै। नीली, लाल,हरियर,करिया सब तनकी टोपी लगाय के सब तन  की मीटिंग म  मौके पर पहुँचि जात हवैं। कउनो मतलब होय चहै न होय अपन धज बनाए सब कहूँ मिलिहैं। बिना पैलगी किहे असीसै लागत हवैं।बिटियन क पढ़ाई लिखाई कि बजाय जल्दी बियाहे कि मुफत कि राय द्याहैं।नौजवान देखिके उपदेस बघारै लागत हवैं।लरिका औ बिटिया क जो कहूँ बतलात देखि लें तो इनकी आँखी निकरि अउती हैं।जो कौनो लरिका इनकी आलोचना कइदे तो वहिपर पंचायत लगवाय देत हवैं। नयके लरिका बिटियन के हर कामे पर दीदा गड़ाए रहत हवैं।ई अपने जमाने कि सब झूठी सांची बतकही लोन मिर्चा लगायके बघारा करत हवैं।अपन बड़प्पन हाँकै के एक्को मौका नहीं छोड़त।ई बिरवन म ताड़ जस ऊंच देखात हवैं ।इनकी उमिर बढिगै मुला अक्किल कटिगै, इनके बिचार नौजवान लरिका बिटियन  के कामे नहीं आवत।

नए जमाने के लरिका बिटिया जो मानसिक पराजय,तिरस्कार,बेकारी औ नई तना कि कतनी मुसीबत झेल रहे हैं उनते ई खूसटचंदन क कौनो मतलब नहीं है।ई अपने जमाने के हिसाब ते बहुत हुसियारी ते चलत हवैं। मौका मिलतै भगवान राम क्यार आदर्स बूंकै लगिहैं, ब्यौहार म देखिहो तो अपनहे भाई भतीजे या पट्टीदार के खिलाफ तिनको बात होई तो थाना कचेहरी पहुंचे बिना दम न ल्याहैं।देबी देउता पूजै के पाखंड म सबते आगे मिलिहैं।

लेकिन इनके घर की बहुरिया औ बिटिया हमेसा सताई जाती हवैं। यू जान लेव कि वुइ अपनी मौत नहीं मरती हवैं।हमरे कैती गांवन म दहेज अबहिउ चलति हवै, कइयो लालची बुढ़वा तो अपनी पतोहुन क मरवाय के अपने लरिकन के दूसर बिहाव किहिन हवै। दुसरे बियाहे ते इनकी बिगरी अर्थ ब्यवस्था सुधर जात हवै।सब बहुरियन क नियाव कहाँ मिलि पावत अहै? कुछ सहि लेती हैं, कुछ कहि लेती हैं, औ कुछ लोक लाज के कारन ऐसे लबार बुढ़वन क माफ कै देती हैं।कुछ बिटेवा तो बिगिर कुछ कहे इज्जति बचावै बदि मरिके चली जाती हैं।जिनके बेटवा नहीं भये वुइ बहुरियन कि जान संकट म रहति हवै।  ऐसा मर्द दूसरे बियाहे कि तलवार अपनी दुलहिन के गर्दन पर धरे रहत है।

 नीक सदाचारी बुढ़वा जो गांव म देखात हैं वुइ चुप्पी मारे लुकान बैठ रहत हवैं।खुराफाती खूसटचंदन ते वुइ  मीलन दूर रहत हवै।कौनिव हारी- बेमारी, मांदगी, दुर्घटना,तकलीफ के टेम पर जब मदत या गवाही कि जरूरत होई तो कोऊ नेरे न आई।गांवन कि दसा ठीक नहीं है। हियां जात, बिरादरी,धरम,नसा, भ्रस्टाचार सब तनकी बीमारी फैल चुकी हवैं।पढ़े लिखे समझदार बुढ़वा चहैं तो गांवन क सुधार हुइ सकत हवै। बस नयके लरिकन कि समस्या समझी जाय,उनपर बिस्वास कीन जाय।

नए जमाने, माने कि मोबाइल जुग की सोच ते साइत कुछ तरक्की होय ।सरकार औ नेतवन के पीछे परिकै कुछ बिकास  तो कीनै जाय सकत है। जहाँ मनई जागरूक हवै हुआँ तरक्की झलकत हवै।मुला  जहाँ ई खूसट बुढ़वा ताड़ जस बड़प्पन लिहे अपन बेहूदी छतुरी ताने हवैं , हुआँ पिछड़ेपन की चिराइन्ध सबतन फैली हवै।इनका प्रगतिशील समाज ते कौनो मतलब नहीं है। याक जमाने म इनहैं बदि रमई काका लिखेनि रहै-

तुम बिन चुनाव बिन वाट परे

सब बिरछन के सरदार भयेव।

तुम बड़े भयेव तो ताड़ भयेव?

बिटियन बहुरियन कि तरक्की तो तबहें होई जब निक्कई बिटेवा औ मेहरून क आगे बढ़े क्यार मौका मिलै।ई झुकी कमर वाले रूढ़िवादी खूसटचंदन ते समाज क कौनो भला न होई।जहां नई सोच वाले  प्रधान बने हैं जहां सिच्छा कि बढ़िया व्यवस्था बनी हवै,हुआँ  अलग तरक्की देखात हवै। सच्चे मन ते सबका अपनावै ते सुधार होई।सोच बदली तो समाज बदली। सही बदलाव तो अपनी मातृभासा के ब्यौहार ते आयी।


25.स्याम पैंया परी

नदि नारे न जाव स्याम पैंया परी।

नदि नारे जो जाएव तो जइबे कियो

मंझधारै न जाएव स्याम पैंया परी।

मंझधारै जो जाएव तो जइबे कियो

वुइ पारे न जाएव स्याम पैंया परी।

वुइ पारे जो जाएव तो जइबे कियो

संग सवतिया न लाएव स्याम पैंया परी।।

गावन कि मेहरूअन कि गौनई म यू लोक गीत अबहिनौ गावा जात हवै।अवधी लोकगीतन कि दुनिया बहुतै अजब गजब हवै।औरतन कि गौनई जब कौनेव अंगने म होत हवै तो मनई दूर ते बैठिके सुनत हवै।सोहर बनरा,कजरी,होरी,चैती, सावन,निकउनी,देबी गीत,बियाह,गारी,जचगी, मर्सिया औ सब त्योहारन के तमाम लोक गीत गांवन गाए जात रहैं ।कुछ गीत मनई मेहरिया याकै साथ मिलिके गावत रहैं। कुछ खाली मेहरियन कि टोली याकै साथ एकट्ठा हुईकै गौती रहैं। 

अब वह बात नहीं रही।पहिले फिल्मन म ई सब लोकगीत  सामिल भये,अब जबते गांवन म कलजुगहा टीवी मोबाइल पहुँचि गा हवै तो उनकी अंगने वाली मुलाकात औ गौनई बिलाय गय है।तकनीक आवत है तो नैसर्गिक चीजै छीजै लगती हवैं।हमरी लरिकईं म जब गौनई क्यार बोलौआ आवत रहै तो हम सब बहुत खुस होइत रहै।काहेत जब गौनई खतम होत रहै तो बतासफेनी खायेक मिलती रहैं। तिनका हम पंच खेलि खेलि खाइत रहै।कौनो वहिका पहिया तना लुढ़कावत रहै, तो कौनो वहिमा दूध कितौ पानी भरिके पियत रहै। तब बतासफेनी पर दूध  कि मोटि केरि साढ़ी धरि के देर तके लरिका चाटत रहैं। आजु तो सहरुआ लरिका मोटकई  साढ़ी औ बतासफेनी जनतै नहीं।सफेद दूध जैसी चमकती बतासफेनी, सक्कर के खेलौना, गट्टा लरिकन कि लड़ाई क्यार कारन बनति रहै।अब न वैस गौनई रहिगै न बतासफेनी वाले दिन रहे ।

मुला लोकगीत बहुत मार्मिक होत हवैं, कुछ तो अस होत हैं कि समझो करेजुइ निकार लेत हवैं। बियाहे की गारी बड़े ते बड़े रुतबे वाले मर्दन के भौकाल कि हवा निकार देती रहैं।

सब तमाम  फिल्मन वाले हमार लोकगीत चोराय के बेंच लिहिन।अब नयकी बिटिया बहुरिया फिलमी धुन पर गावै लागी हवैं।सब लुटि जाये के बादिव अबहीं लोकगीतन कि आत्मा जस की तस हवै।

किसानी बिगरी है,बिरादरी कि घटिया राजनीति दिमाग खराब कै दिहिस है, मुला अबहीं हमार जड़ नहीं कटी हवै।ई गीतन म हमार जलमन कि सभ्यता लउकत हवै। 

अब स्याम पैंया परी , यहै गीत देखि लेव तो औरतन क सबते जादा चिंता पति के दुसरी औरत के चक्कर कि रही हवै। पति कि सलामती खातिर गांव कि नायिका कहत हवै की नद्दी नाला के तीर न जाएव। जाना जरूरी होय तो नद्दी या नाला  के वुइ पार न जाएव। नाला माने बरसाती छोटी नदी या झील।आखिरी मांग पति देउता ते बस यहै हवै कि वुइ पार जाएव तो कौनिव बात नहीं लेकिन नद्दी पार ते हमार सौति न लै आएव।माने मर्द जात दुसरकी मेहरारु के फेर म सदियन ते लगा रहा है।गौर करे की बात यह कि मेहरुआ यू सब स्याम से गोपीभाव के बहाने अपने मंसवा क सुनाय के कहती रहैं।ई तन के लोकगीतन की आत्मा हमरे गांव जवार कि भासा म सदियन ते जिंदा हवै।

जुग बदला है मुला अबै गाँव जवार म औरतन कि जिंदगी नहीं बदली।आजौ तमाम दुखिया औरतें अपने पति कि बेवफाई के कारन अधमरी परी हैं।




26.नानक नाम जहाज

कातिक पुन्नमासी का दिन बहुतै  सुभ माना जाति हवै,यही दिन गंगा पूजा होत हवै|सबजने गंगा मैया कि नीके मन ते पूजा किहेव, दिया जलायेव ,लेकिन  उनकी प्रदूषण वाली बीमारी कि बात आज न किहेव  |काहे ते यहिमा करोड़न रूपया  खर्च हुइ चुका हवै,सब नेता माने अपन भगत आयं तो सब खाय पी चुके गंगा साफ़ नहीं  भईं|  तो सगुनिया भगतन का या बेमौके वाली बतकही बिलकुल न  सोहाई |  हमका आज गुरु नानकदेव कि सुधि आय रही हवै तो उनकी चर्चा सुनी जाय | 

 सिक्ख धरम  के पहिल  गुरु नानकदेव यही दिन सन 1469 म ननकाना साहब जो अब पाकिस्तान क्यार सहर बनिगा है हुँवा जन्मे रहै | नानक साहेब सनातन धरम के सुधार औ निर्गुनिया भगति के बिस्तार म अपन सबियों  जिन्दगी लगाय दिहिन |वुइ कबीर साहब के भगत रहै ,कबीर ते उनकी मुलाक़ात होत रही | उनकी बानी माने कबीर कि कबिताई  नानक  गुरुग्रंथ साहेब  म सहेज के धरि लिहिन रहै | यू जो दोहा गुरुग्रंथ साहेब म दीन  गवा है वहू  पर  कबीर साहेब कि कबिताई क्यार प्रभाव हवै ,देखा जाय- 

अव्वल अल्लाह नूर उपाया/ कुदरत के सब बन्दे | 

एक नूर ते सब जग उपज्या कौन भले को मंदे  | माने सब एकै प्रकृति कि संतान आंय , एक्कै नूर ते पैदा भये हैं ,न कोऊ बड़ा न कोऊ छोट |  गोरखनाथ,कबीर,रैदास,सेन,नानक सब सिद्ध  संत कबिताई किहिन रहै |  ई सब तो निर्गुनिया भगति के मार्ग क्यार उपदेस दिहिन रहै | सगुनिया भगतन का  तुलसीदासौ  बहुत  कहि समुझायेनि -अगुनहिं सगुनहिं नहिं कछु भेदा/उभय हरहिं भव संसय खेदा | मुला ई पाखंडी न माने | अब तौ औरुइ दसा  बिगरि गैहै| अब तो धर्म के नाव ते धंधा चलि रहा हवै,कहति अहैं कि यहै असली हिन्दुआई आय |  

नानक साहेब कातिक पुन्नमासी माने उजेरिया राति वाले दिन पैदा भे रहें | उनके जन्म के दिन का  हिन्दुस्तानी सगुनिया औ निर्गुनिया  सिक्ख सबै  प्रकाश पर्व कहति हवैं | उजेरिया का जन्म भवा तो चरितौ उज्जल भवा  | उनका  ज्ञानमार्ग से मुक्ति देवावै क्यार जहाज माना जाति हवै |माने नानक साहेब क ध्यान करौ तो सन्मार्ग मिल जाई | सही बात तो यहो  आय कि कौनेव गुरूद्वारे म जाओ तो हुआ कि साफाई औ सेवा भाव देखिके जिउ जुड़ाय  जाति  हवैं | न कौनो चढ़ावा, न कोई फूल माला, न कौनो साज  सिंगार | सबका एक्कै साथ लंगर म भोजन ,न कोऊ बड़ा न कोऊ छोट | जो दान देयक होय चुप्पे बक्सा म डार देव |गुरुग्रंथ साहेब के  चारि फेरा लगाओ औ बिहाव हुइगा |लंगर खाओ घरका आय जाओ |अपने गाँव म सांझा चूल्हा जलाओ सब जने एक्कै साथ बैठके  खाओ |   धरम  तो यहै सिखावत अहै | पाखण्ड ते दूर असली जिन्दगी क्यार रास्ता तो यहे संत देखाइन रहै | सनातन धरम कि रच्छा बदि सिस्य तैयार कीन  गे रहै, बादि मा वुइ सिस्य गुरुमुखी भासा अपनाय  लिहिन वह  पंजाबी भासा बनि गै| वुइ सनातन धरम खातिर तलवार उठाइन| लेकिन सनातनी पाखण्ड ते बाज न आये तो सिख अपन पंथ अलग कइ लिहिन| आगे चलिके  वुइ अपन धरम सिख बतावै लगे | 

  अब जो भवा  सो भवा,आज पुन्नमासी कि अंजोरिया क मजा लेव | राति का  चारिव कैती रोसनी भरि जाई|  रातिया म चनरमा केरि उजेरिया सबतन बगरि जात है तो बहुतै नीक लागत अहै | अब  सहरन के  रहवैया ई उजेरिया क्यार आनंदु न जानि पैहैं | पुरान कबि उजेरिया पर बहुत कबिता लिखिन हवैं | का संस्कीरत का अंगरेजी का हिन्दी का उर्दू ,पंजाबी  सब भासा म चनरमा कि सोलह कला वाली चांदनी पर कबिताई कीन  गै है | अंजोरिया कि चर्चा अवधियौ किहिन है |  अंजोरिया कि चर्चा होते खन, हमका अपने लखनऊ के दूधनाथ शर्मा श्रीष जी की यादि आय जाति हवै| वुइ सौ बरस कि लम्बी उमिर पाय के दुई साल पाहिले ई दुनिया ते बिदा भये | वुइ अवधी हिन्दी दुनहू भासा म कविताई करत रहैं  | मुला अंजोरिया  रात पर लिखा उनका अवधी गीत हमका रहि रहि  यादि आवत हवै|  चांदनी राति म गाँव कस देखात हवै देखा जाय   उनका गीत  हमका कबहूँ भूलत नहीं -

बड़ा नीक लागे अंजोरिया म गाँव | धीरे धीरे उतरी के चली है अंजोरिया 

अस नीक लागै जैसे सजल सुगोरिया /चली आवै धीरे धीरे धइ धइ   पाँव | 

गंगामैया कि  पूजा होई ,लाखन दिया जलाए जैहैं | गुरु नानक साहेब के सबद गाए जैहैं |मुरहंट लरिकवा पटाखा फोरिहैं , मुला भैया अंजोरिया म गाँव के हाल देखिहो तबहे असली ज्ञान मिली| सबका प्रकास परब सुभ होय | 


 

27.लोटन कबूतर


कबूतर अपनी कबुतरी क खुस करे बदि आखिरी दांव फैंकत हवै औ धरती पर ल्वाटै लागत हवै।बिचारी कबुतरी वहिकी नौटंकी म फंस जात है माने  कबूतरी फौरन वहिका कहा मानै बदि राजी हुइ जाति हवै। कबूतर कइयो तन के होत हवैं मुला लोटन पर तो गाना लिखे गे हैं -

चढ़ि गयो ऊपर रे 

अटरिया पे लोटन कबूतर हो।

येहि तना के नक्सेबाज  भुईलोटन कबूतर हमरे अवध म खुब मिलत हवैं।पहिले के जमाने म कबूतर चिट्ठी लावै औ लै जाय बदि इस्तेमाल कीन जात रहैं। मुगलकाल ते हमरे अवध म कबूतरबाजी क बड़ा चलन रहै।कबूतर लड़ाए जात रहैं। कबूतरबाजी नवाबी सौख रहै। कबूतरन के झुंड म याक हुसियार  परकटी कबूतरी होत रहै वह पूरे झुंड क नचावत रहै।कबूतरबाज वहेके सहारे पूरे झुंड पर अपन कब्जा किहे रहत हवैं।कबूतर आसमान म उड़त हवैं लेकिन उनकी डोर नीचे उनके मास्टर तीर दबी रहत हवै।वह परकटी कबुतरी आसमान ते सब कबूतरन क नीचे खैंचि लावत हवै।

यहै कुछ दसा हमरे समाज की हुइगै है। मनई सोचत आय कि वहै उड़त अहै मुला असलियत म तो वहिका उड़ावै वाला पूंजीपति मास्टर वहिकी उड़ान नियंत्रित किहे रहत अहै।ई ब्यापारी कबौ नेता के भेस म मिलत अहै।कबौ नेतवा खुदै बैपारी बने देखात हवैं। जब जीकी ताल लागि जाय वहु मास्टर बन जाई औ दूसरे क लोटन कबूतर बनाय लेई।

लोटन कबूतर अपनी कबूतरी क लोटिके देखावत रहै।ई बैपारी औ नेता हुसियार मनइन क लोटन कबूतर बनाए हैं।तमाम आईएएस अफसर औ बड़ेवाले  हुसियार पत्रकार औ कुछ वकील जज सबियों लोटन कबूतर बने देखात हवैं।इनहू का लोट लगावै म मजा आवत है।

बस इनका नेता जी का इसारा मिल जाय तो आसमान म भरभराय के उड़े कि कोसिस करै लागत अहै।कुछ कबूतर उड़े कि कोसिस म फड़फड़ा के गिर परत हवैं।उनका किनारे धकिया दीन जात है। कुछ का सहीद बनाय दीन जात हवै।एक के नाकाम होते दस चमचई खातिर तैयार मिल जात हवैं।यह लोटन कबूतरन कि दुनिया बहुत गज़ब कि हवै।

कबूतरा याक आदिवासी बिरादरी आय। बुंदेलखंड के जंगलन म यह जनजाति मिलत हवै। अंग्रेजी राज म उड़ीसा के डाक बिभाग म चिट्ठी पत्री लै जाय खातिर कबूतरन कि तैनाती कीन गै रहै।सैकरन साल ते सरकार बहादुर इनका इस्तेमाल अपने फायदे के लिए कै रहे हवैं।

कुछ दूसरी तना के कबूतरबाज हवैं जी लवजिहाद क्यार नेता बने हवैं।अबै कुछ दिन पहिले योगी जी बहुत नीक कानून बनाय दिहिन है।कुछ नकली नाम ते बिटेवन क फँसाय के बिहाव करत रहैं तिके बिटेवा क्यार धरम बदले बदि जोर लगावत रहैं। ई तन के कबूतरन क अब सज़ा मिली।नकली प्रेमी कबूतरन के बरे मुसीबत हुइगै।अब ई बिध के लोटन कबूतर फौरन धरे जइहैं। मुला पूरे देस म बिटेवन कि खरीद औ बेस्यावृत्ति क्यार धंधा खतम होय तो समाज पबित्र होय। धरम क्यार बेजा इस्तेमाल तो हुइ रहा हवै।कानून क बेजा इस्तेमाल न होय तबहें ठीक होई, नहीं तो बिचारे सच्चे इश्किया प्रेमी सब पकरि पकरि  लव जिहादी बनाय दीन जइहैं। 

बात यहौ मानै वाली हवै कि, सब खेलु तकदीर क आय। सब लोटन कबूतरन क अटरिया कहाँ मिल पावत हवै।कोई गुलेल के निसाने ते मार दीन जात हवै।कोऊ दाना डारि के जाल म फंसवा जात हवै। कतनेन क बिलारी झपटि लेती हैं।


28.चेतो महाराज 

किसान ते बड़ा कोऊ दानी नहीं हुइ सकत।ऊ अपनी मेहनति कि सबियों कमाई मनइन पर लुटावा करत हवै।रमई काका याक कबिता लिखेनि रहै दानी किसान,वहिमा किसान कि महिमा क्यार बखान किहिन रहै।सांचौ दुनिया म अस दूसर मनई कहाँ मिली जो भूखे रहिके दुसरेन क्यार पेटु भरै कि व्यवस्था करै।किसान हमरी भारतीय श्रमसंस्कृति क्यार राजा रहै।वहै धरती मैया क्यार असली पूतु आय।वहै सब परिजन औ परजन खातिर अन्नु उगावति रहै। वहु सत्ताधीश राजा क कर देत रहै।जमीदार औ सामंतन के बखार भरत रहै।आजौ वहिकी दसा दाता जस बनी हवै।काका कहति हैं-

लै गए परजा पवन कुछु 

प्वात मा हुइगा गवन कुछु

सेस गा ब्योहर बखरिन

तुम रहेव भूखे परानी 

धन्नि धन्नि किसान दानी।

अब किसान की फसल पर सबकी नजर हवै, वहिकी दुर्दसा पर कोऊ बिचार नहीं कीन चाहत।किसान हैरान हवैं।दुनिया भरेके पेटभरैया अन्नदाता अपनी भूख औ बदहाली कि लड़ाई लड़ रहे हवैं। तमाम किसान आत्महत्या कइ लिहिन लेकिन सामाधान न मिला।ई जो किसानन क लूटै वाले नेता हैं सबके महल बने हैं।लेकिन इनके महलन कि ईंटै किसानन कि हड्डी ते बनी हैं। किसान के बारे म राष्ट्रकबि बंसीधर शुक्ल कहति हैं- ईंट किसानन के हाणन की

लगा खून का गारा।

पाथर अस जियरा किसान का चमक आँख का तारा।

 माने किसानन क बहुविध शोषण कैके ई सामंतवादी नेता अपन कोठी बनवाइन  हवै।

अबहूँ सरकार उनकी बात नहीं सुना चाहत कुछ बिपच्छी नेता उनके साथ देखात हवैं।लेकिन वहू बस अपन राजनीति चमकावै बदि उनके साथ खड़े देखाई देत हवैं।

दिल्ली के चौतरफा किसान जमे हैं।नेता उनकी आवाज नहीं सुनि पाय रहे।ई कोहरा औ कोरोना काल के संकट म वुइ खुले आसमान के तरे अपन तम्बू बैनर  लिहे डटे हवैं।अब तो पखवाड़ा होय वाला आय।कइयो दौर कि बतकही हुइगै मुला कुच्छो फायदा न भा।ई असली धरतीपुत्रन के दुख दर्द ते नेतवन क कउनो मतलब नहीं है।

लागत ते कम दाम पर अपन फसल कैसे बेची जाय ? बैपारी कहति आय कि खराब फसल के अच्छे दाम को दै देई? गरीब छोटकवा किसान  हमेसा मारा जात हवै।

सरकार के हिसाब ते येहि आंदोलन के नेता आढ़तिया आहीं।विपच्छ ई आंदोलन क हवा औ ईंधन देति हवै।लेकिन सरकार के साथ अब तक भई मीटिंगन म कौनो हल न निकरा।

जब सरकार जनता क तमाम गारंटी देत रही है, तो किसान क न्यूनतम खरीद क्यार मूल्य काहे न तय कीन जाय? जो तय कीन गवा है वहिके मिलैकि गारंटी काहे न दीन जाय?माने सरकार सबका खाना दे कि गारंटी वाला कानून बना दिहिस, मुला किसान कि फसल क निश्चित दाम मिलै कि गारंटी नहीं है।

जनसंख्या बढ़ी तो मनई के हिसाब ते औसत खेत घटि गवा।महंगाई आसमान छुवै लागि।सरकार किसान ते फसल खरीदत हवै तो वहिका वाज़िब दाम मिलहेक चही।सरकार देसी परदेसी बड़के बैपारिन क  किसानन के बीच म काहे कुदाय रही हवै, यहौ साफ नहीं भा। जब किसान अपने छोटके आढ़तिया के संग खुस है तो बड़के बैपारिन कि का जरूरत है?छोटके आढ़तिया उनके बीच के मनई आहीं।उनका सोसन जरूर करति हवैं मुला हारी बेमारी उनकी मदति वहे करत हवैं।

हमतो यू जानित हवै कि दुनिया भरेके मनइन के पेटु भरैया  किसान पर अत्याचार बंद होय।किसानन के हित क्यार कानून बनावा जाय।

अगर जो बिपच्छी नेता इनका ढाल बनाए बैठ हवैं तो उनका पर्दाफ़ाश कीन जाय।चहै जो होय यह दसा ठीक नहीं है।कोरोना के हिसाब ते यह समय आंदोलन क न आय।सर्दी बढिगै है,सूरज देउता आसमान ते गायब हैं।ऐसे मौसम म यू धरना परदर्सन ठीक नहीं है।लेकिन किसान मजबूर है वहिका भला कोऊ नहीं चहत।

सरकार क चही कि जल्दी ते इनकी समस्या क्यार हल निकारै।चुनाव अइहैं चुनाव जैहैं,सरकार गिरी, फिर दूसर सरकार बनी  मुला किसानन क्यार हौसला न टूटै ।वहिकी मेहनत क वाज़िब दाम वहिका जरूर मिलैक चही।ऊ जहां चहै वही मंडी म अपन फसल ब्याचै । फसल क दाम तय होय वहिके हिसाब ते खरीद होय मौके पर तुरंत पैसे क्यार भुगतान होय।ई तन की मांग अगर किसान करत हवैं तो कौन गुनाह करत हैं। यह बात तो बेजा नहीं है।उनके घर बार नहीं है का?उनके लरिका बिटिया नहीं हैं का?उनके लरिका समाज म कैसे आगे बढिहैं?ई किसान के जीवन स्तर ते जुड़े सवाल आँय।खाली फसल के दाम क मामिला न आय।च्यातो महाराज,जागौ सरकार।


29.बीस निकारिस खीस


अब यू साल 2020 बूढ़ाय गा है।जादातर मनई ई साल तबाही देखिन हैं।तमाम घरन म मौत क्यार सन्नाटा फैला रहा।दिल्ली तो साम्प्रदायिक दंगा क्यार केंद्र बनिगा रहै।  नागरिकता कानून संशोधन  के  चक्कर म  सबतन बहुत बवाल भा। फिर कोरोना कि मुसीबत म जेल औ नजरबंदी जस टेम कटा।दुनिया के  लाखन मनई मरिगे मुला कोरोना न मरा।अबै दवाई नहीं मिली, जो मिली है वहिका कौनो ठेकान नहीं।गारंटी तो हैये नहीं कि सुई लगवाए के बाद मनई कोरोना ते न मरी।सब मुसिक्का माने जाबा कसे घूमत हवैं।सबकी खीस निकरि गय,सब मुँह लुकुवाए घूमति हवैं।ई जो हीरो हिरोईन लपट चपट करत रहैं सब मस्ती भुलाय गय।अब तो एक्कै गाना रहिगा हवै-

दुइ गज दूरी,है बहुत जरुरी।

ई साल जतने भूकम्प आए वतने  पहिले न आए रहैं।बेमौसम कि बरखा खुब भय । ई साल दिल्ली म खुब हिन्दू मुसलमान म भिड़ंति भवै। दिल्ली के दंगे म सड़के बंद रहीं कर्फ्यू रहा, अस बवाल सन चौरासी के बाद अबकी फिर द्याखै क मिला। कइयो जगह धरना प्रदर्सन होत रहे। धरम के नाम पर जनता लड़ी पुलिसौ वाले चोट खाइन। तमाम मुकदमा अबहिनो चल रहे हवैं। दुख की बात यह आय कि जिनका घर बार जलि गवा मनई मरिगे,वुइ आजौ बुतान लक्कड़ तना झरसि रहे हवैं।उनका कौनो राहत न मिली ,शाहीन बाग मसहूर भवा।दंगे म तो ज्यदातर कमजोर  दुखिया गरीब मनई  चपेट म आये हैं।

वहु दंगा बवाल तनी सेरान तो कोरोना फाटि परा।कोऊ कहेसि चीन ते आवा तो कोई कहेसि कोरोना ट्रंप महाराज के साथ आए हजारन मनई  लाए। कोऊ कहेसि तब्लीग़ी कोरोना फैलाय दिहिन।कहाँ ते आवा कैसे आवा जानि न मिला, लेकिन कोरोना पूरे साल ते सबकी जिंदगी पर कब्जा कीन्हे हवै। मालुम होत हवै कि यू अजर अमर हुइगा है,रक्तबीज तना बढ़तै जाति हवै,न मरै न माचा छोड़ै।यू  दुनिया भरेक रहन सहन बदल दिहिस हवै।अमरीका रूस चीन सब बड़े बड़े देस यहिकी चपेट म आये।माने समझ  लेव  कि यू पूरा  सालुइ मनहूस रहा।तालाबंदी म लाखन मंजूरन कामगरन कि  नौकरी छूटि गय।गरीब मंजूर भुखमरी म घर का पैदर गए कुछ पहुंचे, कुछ राहै म बिलाय गए।रेल सड़क हवाई जहाज सब बंद, अस तो पहिले कबौ न भा रहै।अर्थव्यवस्था रसातल क पहुँचि गय। तमाम मनई बेघर हुइगा।कुछ आत्महत्या कइ लिहिन।मुला सुशांत सिंह की आत्महत्या कि खबर बहुत बिकानि।कुछ चैनल वाले तो ई खबर ते बनिगे।यही के चक्कर म  कुछ  नए नेता बनिगे।बिहार के चुनाव म सुशांत कि आत्महत्या बहुत कामे आई रहै।मुला सोनू सूद कि किहानी बहुतेन क बहुत  राहत दिहिस। वहिकी सेवा ते जिउ खुस हुइगा।

पाखंडी बाबा, पंडित, जोतिसी भोलेनाथ सास्त्री बहुत कारोबार किहिन।तमाम भविष्यवाणी बेचिन, बिहाव आन लाइन भये।पढ़ाई  औ इंतिहान सब आन लाइन,कइयो बाबा अपन दुकानदारी चमकाय लिहिन।तमाम डॉक्टर औ स्वास्थ्य कर्मचारी मरे।तालाबंदी के चक्कर म घरकी मेहेरियन क तिनको आराम न मिला खाना औ चाय बनावत बनावत हाँथ झरसि गए।

संख घंटा कुच्छो काम न आवा।देउता खुदा देबी ईसू  सब ताले म बन्द रहे।कोरोना रक्तबीज तना मरीजन कि   पैदावार बढ़ावत रहा।कोरोना ते मरे वालेन के घर के तमाम मनई लहास क हाँथ नहीं लगाइन। माने मनई  अतना डेरान तो कबौ न रहै कि अपने महतारी बाप कि मिट्टी क अंतिम बिदा न दे। 

  यहौ खास बात रही कि धोखाधड़ी वाले वीडियो औ फर्जी खबरन के नाम रहा यू साल ।फर्जी नाव ते नौकरी करै वाले गिरोह पकरे गे। उनकी जांच जारी हवै मुला कोई गिरफ्तारी नहीं भय।अमरीका के नक्से क़दम पर  भागतै भागत चीन ते तना तनी बढ़िगै ।पाकिस्तान क तो हमार छोटके  नेता छकाए हैं।

कोरोना काल म  केजरीवाल दिल्ली म अपन जलवा कायम किये रहे। मोदी कि दाढ़ी के साथै चौतरफा  बीजेपी क्यार भौकाल बढ़ा है।तमाम बदमास बैठाने आय गये हैं।विकास दुबे जैस दबंग ऊपर पहुंचाये जाय रहे हैं। जोगी चट्टान तना कोरोना ते मुकाबला करै बदि डटे हवैं।भोपाल म कांग्रेसी सरकार खड़भड़ाय गै,शिवराज मामा  कि किस्मत ज्योतिरादित्य चमकाय दिहिन,गहलौत गिरतै गिरत संभर गे हवैं। बीजेपी के सहारे नीतीश संभरि गए मुला अब ममता दीदी के गढ़ पर सबकी नजर हवै।अब राहुल सोनिया कि कांग्रेस अपने करमन ते झुराय रही है। कोरोना म अमरीका कि तो खीस निकरि गय। बिचरऊ ट्रंप तो अपन कुर्सी गंवाय दिहिन। 

अब तनी कुछ सांती मिलै कि उम्मीद रहै तो किसान धरना प्रदर्सन करै लाग।जोगी औ मोदी सब मिलिके किसानन क समझाय रहे हवैं मुला ढीठ किसान औ उनके नेता मानै क तयार नहीं। उनका विपच्छी नेता हवा दै रहे हवैं।महिना पार हुइगा मुला दिल्ली के  सिंघु बॉर्डर, टिकरी बार्डर औ गाजीपुर बार्डर  पर किसान डटे हैं।

अब यू मनहूस साल जाय तो नवा साल आवै।भविष्य बांचै बदि भोलेनाथ सास्त्री अपन तोता और टेरो कार्ड लिहे  दुकान सजाए हवैं। कहति हैं ई साल म दुइ सिफर रहैं यही मारे सब तरक्की सिफर हुइगै।

हम कहा बीस साल पहिले तो तीन सिफर याकै साथ रहैं।तब तो सहस्राब्दी बदली रहै।वुइ हमका बेलभांवत रहे,कहिन वहिमा यहिमा बड़ा अंतर है।हम कहा अपने तीर धरौ अपन अंतर मंतर।दवाई मिलै तो मनई क बिस्वास होय।

लेकिन अंग्रेजन खियाँ फिर ते लाकडाउन लागि गवा हवै।सुना है कोरोना रूप बदलिके आवा है। हुसियार मनई बतावत हवैं कि हर सौ साल बादि कौनिव महामारी जरूर आवति है।धरती अपन संतुलन अपनी तना बनावति हवै।सब जन मिलिके दुआ करो कि यू मनहूस साल कटै ।कुछ नीक खबर सुनाय तो जिउ जुड़ाय।

हाँ ई साल अयोध्या कि याक खबर इतिहास बनाय दिहिस कि ई कोरोना काल म मंदिर मस्जिद वाला झंझट खतम हुइगा।मोदी जयसियाराम क नारा दिहिन औ नीव पूजन किहिन।सगुनिया भगत बहुतै खुस हैं।अयोध्या के संत महंत मगन हवैं। नए साल म गरीब मनई क कुछ राहत मिलै, बेरोजगार जवान नौकरी पाय जाँय तो सबते नीक काम होई।

लेकिन अब नए साल म अर्थव्यवस्था म सुधार होय।जिनकी नौकरी छूटि गय उनका काम मिलै। ई जानलेवा बीमारी कि मुकम्मल दवाई मिलै।किसानन क अपनी फसल क्यार वाजिब दाम मिलै।सब तन आवा जाही सुरू होय इस्कूल खुलें,ब्यापार बढ़िहै तबहें सबका नवा साल सुभ होई।अपन भोलेनाथ सास्त्री नए साल ते बहुतै उम्मीद जगावत हवैं।उनकी बात सुनै के अलावा हम अउर का करी? वुइ जो सपन देखावत हवैं हमहूँ देखित अहै।

जय सियाराम भैया!,नवा साल सबका मुबारक होय।


30. चमचा खाता खीर


दुनिया ते साँचु नहीं ख़तम भवा है मुला अपने समाज म  सांची बात कहवैया बहुत कम बचे हवैं।जमाना चमचई क्यार आय।ठकुर सोहाती कहा करौ सब खुस रहिहैं। सदुल्ला कि चर्चा शाहजहां के वजीर  के तौर पर कीन जात अहै । माना जात अहै कि  सादुल्ला कि निगरानी म आगरा केर   ताजमहल औ दिल्ली कि जामामस्जिद बनी रहै । उनका सही राय दे के लिए जाना जात रहै ।  सादुल्ला का सही बात कहै बदि बहुत  मसहूरी मिली रहै।वुइ खोज बीनिके हर सांची बात बादशाह ते कहत रहैं। बात नीक होय चहै बुरी  वुइ साफ बेझिझके कहि देत रहैं। 

हालांकि पहिलेव राजा महाराजा के दरबारन  म खुसामदी बिदूसक होत रहैं। लेकिन जादातर मौके पर चौका लीपै वाले, मिठुआ बोली वाले  खुसामदी दरबारी  होत रहैं । सही बात कहै म तबहूँ जान केर खतरा रहै माने दरबारी वजीरन तक का आज जस अभिव्यक्ति कि आजादी न रहै । सादुल्ला जाने कैसे साँचु बोलै बदि मसहूर हुइगे रहैं ।येहिते यहौ पता लागत अहै कि वुइ जमाने म सही बात कहै वालेन क दरबारन म आदर मिलै चहै न मिलै, आम परजा म उनका बहुत सनमान होत रहै । खुसामद करै वाले कबि, शायर, कलाकार ,मिरासी,नक्काल नवाबन,बादसाहन  के खास दरबारी होत रहैं। उनका दरबार म खास दर्जा होत रहै, मुला असल म वहू खुसामदी माने जात  रहैं।वही जमाने म वजीर  सादुल्ला मसहूर भए।ई काम कि ईमानदारी के साथै सच्ची बात कहै के लिए जाने जात रहैं।इनके साँच बोलै कि मसहूरी अतनी भै कि इनके खातिर कहकुति बनिगै-

 ‘सच्ची बात सदुल्ला कहै,सबके मन ते उतरा रहै।’

माने जब कोऊ खरी खरी कही तो वो सबके मन ते उतरा रही,वहिका पसंद को करी? यह कहकुति अवधी समाज म आजौ गांव जवार के मनई दोहरावत अहै। अपने बलरामपुर मा तो सादुल्ला नगर बसि गवा, यू कहना मुस्किल आय कि ई वहे सादुल्ला रहैं  कि अउर कोऊ सादुल्ला रहैं।मुला  साफ बात कहै  वाले मनई क लैके यह मसल चलत अहै।हमका लागत आय  कि सादुल्ला जरूर  कबीरदास के चेला कितो सूफी फकीर रहे हुइहैं।अब कोऊ नहीं जानत मुला उनकी साफगोई मिसाल  बनी औ या  मसल चलि परी।सच्ची बात कहै वाले  मनई कौनेव जमाने म आदर न पावत रहैं।बस लरिकन क सीख देय बदि बड़े बूढ़ सांचु ब्वालै क्यार उपदेस दीन  करत अहैं।सब धरमन म साँचु की महिमा बताई गै है ।सकूलन म मास्टर सबका सिखावा करत अहैं। अपन लखनऊ वाले  दादा आदित्यप्रकाश अग्निहोत्री "सनकी" जी हास्य व्यंग्य कि बहुत नीक कबिताई करत रहैं। वुइ तो अब नही रहिगे मुला उनकी कबिताई यादि आवत अहै ।वुइ मंच पर  एक दोहा सुनावा करत रहैं-

चिमटे से होती भली,चमचे की तकदीर।

चिमटा जाता आग में, चमचा खाता खीर।

बतावत रहैं कि चिमटा चमचा दुनहू कि एक्के रासि हवै, मुला किस्मत चमचा कि बुलन्द है तो वू खीर खात अहै औ चिमटा आगी म जरा बरा करत अहै। सबका चमचई केर फ़ायदा वुइ हँसी हँसी म समझाय  देत रहैं ।हम सोचित हन कि वजीर सादुल्ला कि किस्मत जरूर चिमटा जस रही होई? 

लेकिन अब जनतंत्र के जमाने म चमचन कि बड़ी मौज हवै।एक दुइ  सांचु ब्वालै वाले दरबारी नेता मिल जांय तो वुनका चमचा  घेर लेत हवैं।लेकिन अब  सांचु बोलै वाले घटत जाय रहे हैं। जतने नेता बढ़े वतने उनकी चमचई करै वाले चेला बनिगे। खीर सबका नीक लागत अहै।अब तो ई सब चमचा कसम खाय के पानी पी पी झूठ ब्वाला करत हवैं।यू  चमचई केर चलन घर बाहेर पच्छ बिपच्छ सब कैती चलत हवै। सबियों गाँव समाज, सहर देस माने सब कैती - झूठय चमकत अहै। झूठय हमरे जमाने केर सदाचार बनिगा  हवै।

सब अपना क गांधीवादी बतावै पर जोर दिहे हैं संसद ते थाने तके सब कहूं गांधी कि तस्बीर टंगी है ,लेकिन गांधी जस ब्योहार करत कोऊ न देखाई देई ।नक्काल दगाबाज़ मनई सब हरिश्चंद बने घूमत हवैं।अब असली हरिश्चंद,सदुल्ला या गांधी  कहाँ ते लावा जाय, जिनकी बतकही सुनिके कबौ कबौ कान करुआय जात रहैं,जिउ निकरि आवत रहै, आँखी खुलि जाती रहैं। का कहा जाय, अब सब कैती ई चिकनी चुपरी काजू कतली जस मिठुआ बतकही ते जिउ उबियाय गवा हवै। जो कहूं कान करुआय जाय वाली सच्ची  बतकही सुनिव मिलत हवै, तो वहिका अपने अपने स्वार्थ के घिउ ते मनई  बघार लेत अहै।थानेदार, वकील,पत्रकार,मंदिर के पुजारी, महजिद के मौलाना , ढोंगी धंधेबाज बाबा, फ़कीर  सब जनता का लूट रहे हैं ।अस्पताल के डाकडर, इस्कूलन के मास्टर, अउर बड़े बड़े साहित्य भूषण,पदमभूषण, खरदूषण,कलावंत  सब सच्चाई के आचरण ते कोसन दूर देखात हवैं। अबकी तो नकली दवाई के कारोबारी मनई का दवाई के नाम पर जहर बेंचि दिहिन ।लेकिन सब ईमानदारी कि ओढ़नी ओढ़े भेस बनाए खड़े हवैं ।मनई  बारंबार धोखा खात अहै,औ फिर फिर बिसुवास कै लेत हवै।आज के जमाने म हरिश्चंद, सदुल्ला,गांधी जस मनइन कि बहुतै जरूरत रहै लेकिन वुइ होतीं तो जरूर जेल म परे होतीं, कितौ मार दीन गे होतीं ।अब सच्ची बात तो बिलाय गै है ।हमरे गांव जवार देस म सब कैती अब तो झूठै झलकति देखात आय,'झूठै लेना झूठै देना,झूठै भोजन झूठ चबेना' सबका नारा बनिगा अहै ।झूठ बोले रहौ खीर खाये रहौ।


31.

फगुई मुबारक होय 

# मिसिर भारतेंदु  

कोरोना काल चल रहा हवै,होरी क्यार सबियों मजा किरकिरा हुइगा है। बस टीवी पर नकली बजारू विज्ञापन मा मनई क हंसत देख लेव। लेकिन असल जिंदगी म मालुम होत है लाल हरा नीला  पियर सब रंग बदरंग हुईगे हैं। अपने अवध मा सब कैती भगुआ रंग झलकति हवै।कईयो महीना ते हरियर टोपी लगाए  किसान दिल्ली के बॉर्डर पर जमे बैठ हवैं।टिकैत अपन जिद्द मनवावे खातिर सरकार ते भिड़े हैं दिल्ली कि कैयो सड़क बंद हैं। हाथ हलावे वाले कांगरेसी औ दिल्ली की झाडू वाली सरकार किसानन कि मदति कै रही है ।अबही लालकिले पर खालिस्तानी पीला झंडा फहराय दिहिन रहै ।समाजवादी वाले अखिलेस भैया अक्सर लाल टोपी लगाए देखाई देत हैं,हालांकि उनकी साइकिल पंचर हुइगै है ।नीले रंग वाली मायावती बहेन  जी के हाथी बैठाने लाग गए हैं । सब अपने अपने रंग मा हैं मुला आम आदमी कि तकलीफ ते केहूक कोई मतलब नहीं है।

  पांच राज्यन मा चुनाव क्यार ग़दर चल रहा है,यही बीच  महाराष्ट्र सरकार पर भ्रष्टाचार क्यार बम फूटि गवा हवै।याक दूसरे पर  तूतू मैं मैं कि बोली के तीर दनादन चल रहे हैं।वहिके साथ यू नासपीटा कोरोना फिर ते लौटि आवा है, बीमारी कि ढोलकी सबका डेरवाए है । डाकदर बतावत हैं कि टीका लगवाये के बादिव कोरोना हुइ सकति है।फगुई कस मनाई जाए? मोबाइल पर गीत सुनिके कब लौ जिउ भरमावा जाय।हमका तो अवधी कवि बंसीधर सुकुल कि याक कबिता यादि आवत अहै-

"हमें या होरिउ  झुरसावै।

खेत बनिज ना गोरू गैया /ना घर दूध न पूत

मड़ई परी गाँव के बाहर /सब जन कहैं अछूत।”

यह कबिता सुकुल जी दलित मनई के परिवार कि बेदना पर लिखिन रहै मुला अबकी होरी म हमार पूरी दुनिया मानौ अछूत बनि गय है।कोरोना के कारन कोऊ गले मिले कि हिम्मत नहीं कइ रहा बस मोबाइल ते बधाई लेव देव ।अबकी सब ऑनलाइन फगुई मनैहैं।लोकगायिका  अपनी मालिनी जी टीवी पर गावत मिल जैहै तो होली क्यार कुछ पुरान रंगु  यादि आय जाई -

 अवध मा होली खेलें रघुबीरा 

केकरे हाँथ कनक पिचकारी केकरे हाथ मंजीरा 

राम के हाथे कनक पिचकारी लछिमन हाथे मंजीरा ।

  

हालांकि भांग ठंडाई के बिना ऑनलाइन फगुई बेमजा है ।बाजार  सून हैं, मिठाई कि दुकान ते गोझिया कि महक नहीं आवत । हमरे गाँव के मनोहर भैया अब दिल्ली म रहति हैं।उनका फोन ते  होली कि बधाई दिया तो बतावै लगे कि  दिल्ली मा याक दुकनिया म  नीकी नीकी गोझिया देखिन तो भीतर गए भाव पूछेनि  तो काउंटर वाला बातायेस 600/ रुपया  किलो है।वुइ  सोचिन  साइत सुने म कौनिव गलती होई सो दुबारा पूछेनि - वहु दुबारा 600/रुपया  किलो बतायेस तो मनोहर भैया  चक्कर खाय गये। फिर काउन्टर वाला लरिकवा कहेसि - “कैश काउन्टर से पर्ची बनवा लीजिए।” मनोहर भैया  अपन होस सम्भारे कैश काउन्टर तीर गए। जेब टोय कै दुइसौ क्यार नवा  नोट बढाय के पौवा भर गोझिया कि पर्ची बनवाइन। वहिते जो 50 रुपया बचे तो सोचिन अतने म अबीर हुई जैहै। कमाल कि बात द्याखो पौवा भरेम बस तीन गोझिया चढीं| वुइ  घर के चार सदस्य हैं तो सोचिन  याक याक गोझिया सबका मिल जाय, ई खातिर  फिर कैश काउन्टर तीर गए औ बाकी बचे पचास रुपया  कि याक और पर्ची बनवाइन।काउंटर वाला उनका देखिस औ न जानी कौनी तरंग मा मुसकाय लाग।उनका महसूस तो भवा कि ऊ उनकी  लाचारी पर हँसत आय मुला अब का कीन जाय ? सगरी दुनिया लाचार मनई पर हँसत है।

जेब खाली हुइगै तो घर की राह लिहिन।घर पहुंचतेहे भौजी पूछेनि-- ‘गुलाल लायेव, पान लायेव ?’

वुइ कहेनि - ‘बस गोझिया लायेन ..दुइ सौ रुपया वाला एक्कै  नोट रहै वो ख़तम हुइगा।’ भौजी  बर्राय लागीं कहेनि-‘दुइसौ रुपया मा चारि गोझिया। माथे पर गुलाल न मला जाई का ? हम पान धरिके पूजा करित है तो का वहौ न करी ? औ लरिका रंगु न खेलिहैं ?’

 मनोहर भैया बोले-‘अब जो तुमरी समझि मा आवै सो करौ।बाकी चहौ  तो रोसैयाँ ते हरदी निकार लेव वहेक गुलाल तना मलि लीन जाई।तरकारी खातिर जो चुकंदर लाये रहन वहिते एक चुकंदर निकार लेव औ वाहिका छील के बाल्टी भर पानी म भिजय लेव तो लरिकन खातिर  बढ़िया रंगु तैयार हुई जाई ,अउर का कीन जाय? अतनी मंहगाई म कैसि फगुई, का होली मिलन?अब अगली दफा हम होरी अपने गाँव म मनैबे।हम दिन रात मेहनत कैके कामात हैं ,सबियों  मंहगाई डाइन खाए जात है।’ 

भौजी पूछेनि- ‘कौनि गारंटी हवै कि कोरोना साल भरेम ख़तम हुइ जैहै ?’ 

‘ गारंटी कि बात सही कहेव, गारंटी तो कौनिव नहीं।देखि लेव एमएसपी कि  गारंटी तो किसानौ मांग रहे हैं। तुम गारंटी के चक्कर म न पड़व।बस यकीन करौ।सरकारी टीका  पर यकीन करौ।सरकार पर यकीन करौ।सुई सबके लग जाय बस फिर अगली दफा होली म नाच गाना कीन  जाई।’ मनोहर भैया ‘फगुई  मुबारक होय’ कहिके फोन काट दिहिन।


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32. किसान कबि : वंशीधर शुक्ल


 अवधी म लिखइया पढ़इया तो बहुत भये लेकिन पंडित बंसीधर जी का अवधी कबि सम्राट कहा जात हवै।वुइ अवधी भासा औ किसानन  कि उन्नति खातिर बहुत संघर्ष किहिन रहै। वुइ जनजन के हिरदय म अपनी कबिताई के कारन आजौ बसे हैं | उनकी रचनावली पढ़े से पता चलत हवै कि अवधी समाज खातिर उनका संघर्ष बहुत बड़ा हवै। अंग्रेजन के अलावा सामंतवादी राजा औ जमीदारन ते उनका सीधा मुकाबला रहै।उनकी सैकड़न कबिता उनके संघर्ष कि गवाही देती हवैं।अंग्रेजी राज के खिलाफ अवधी म प्रतिबंधित साहित्य लिखे बदि वुइ जेल गए। सन 1935 म वुयि “किसान की अरजी” मा किसानन की बदहाली केर बखान किहिन रहै फिर वह अरजी बापू जी के लखनऊ आगमन पर उनका भेंट कीन  गै रहै | वहि ‘किसान की अरजी’ कबिता के समापन म वुइ लिखिन रहै- “हमरे मन मा अस आवय उनही  के आगे रोइबा

सब लरिका वारे मिलिकै हम हुवें मूडु दइ मरबा |” कबि किसान की बदहाली ते बहुत दुखी होत है तो गांधी बाबा के सामने अपन जान देय खातिर तैयार हुइ  जात है |आजो किसान आन्दोलन चल रहा है गरीब दुखिया किसान कि हालत अबै सुधरी नहीं है |आजादी के बाद दुइ दफा विधायक बने लेकिन जब किसानन कि समस्या हल न करवाय पाए तो निरास हुइके राजनीति ते संन्यास लै लिहिन | ईमानदारी के कारन  उनके घर की देवालै भसकि गईं |लरिका सरकारी मास्टर न होते तो भुखमरी कि नौबत आय जातै |

 किसान कि जिन्दगी म बसंत केर सपनु देखे वाले बंसीधर जी बसंतपंचमी के दिन सन 1904 म मनेउरा, लखीमपुर खीरी  मा पैदा भे रहैं। इलाके के किसानन कि जिनगी उनकी कबिताई म साफ झलकत हवै।गांधीजी का उनके जीवन पर बहुत असर रहै।बचपने ते सुराजी बनिगे रहैं। सुराजी साहित्य लिखि के खुद छपवाय के कानपुर के मेले म वुइ कबिता कि किताबे बेचै जात रहैं। खूनी पर्चा,किसान की अरजी ,राम मड़ैया, राजा की कोठी ,जैसी कबिता वुइ वही दिनन म लिख चुके रहैं। सन 1949 म उनकी 'बेदखली' कहानी बहुत चर्चित भै रहै।कबिता  के साथ उनका गद्य बहुतै प्रसिद्ध भवा। खास बात यह कि वंशीधर जी अपने समाज के  किसान, मंजूर ,दलित शोषित जनता के हक की बात करत चलत हवैं। गरीब दलित मनई की ब्यथा पर लिखी " अछूत की होरी" केर  अंश देखा जाय- “हमै या होरिउ झरसावय /खेत बनिज ना गोरू गैया ना घर दूध न पूत/ मड़ई परी गाँव के बाहेर सब जन कहैं अछूत |” यह कबिता सन 1936 म लिखी गै रहै |तब दलित चेतना आज के जस न रहै |


‘राजा की कोठी’ केर  एक अंश द्याखो-- “ईंट किसानन के हाणन की लगा खून का गारा /पाथर अस जियरा किसान का चमक आँख का तारा |” माने राजा, सामंत सबकी कोठी किसानन कि हड्डी ते बनी हवै, वहिकी रौनक औ चमक दमक किसानन के शोषण ते बनी है | ‘राम मड़ैया’ उनकी किसान जीवन की बहुत मार्मिक कबिता आय वहिका पढ़े ते किसानी केर नैसर्गिक आभा अखिन म उतरि आवत हवै।

जन जागरण कि तमाम कबिताई "उठ जाग मुसाफिर भोर भई", ‘किसान की दुनिया ’ “किसान की रोटी”  जैसी तमाम उनकी कबिता अबहिनौ हम सबका बहुत प्रेरणा देती हैं।'किसान की रोटी' केर अंश द्याखो-यक किसान की रोटी /जेहिमा परिगै तुक्का बोटी /भैया लागे हैं हजारों ठगहार |यह कबिता बिरहा की तर्ज पर लिखी गई रहै | सन 1950 म आजादी कि समीक्षा करति भये वुइ लिखिन रहै -वहि कबिता केर  सुर देखा जाय - “थाना स्वतंत्र,पुलिसउ स्वतंत्र अरजी दावा नलिसउ स्वतंत्र /परतंत्र भये ईमानदार /हुइगा स्वतंत्र भारत हमार |” बंसीधर जी आजादी के सुराजी कबि अहैं ,गरीब किसान खेतिहर  मंजूर के साथी कबि अहैं |वुइ अन्यायी ब्यवस्था ते ईमानदार  लड़ाई  करे वाले जनकबि  अहैं | उनकी कबिताई  का नमन |


33.कबिताई की लीक

 अवधी के कबि अपने मन की करत रहैं।अपने समय के राजा महाराजा केर बिरोध जतावै खातिर कबिताई करत रहैं।वुइ अपनी जनता औ समाज के मनई का जगावै खातिर कबिता लिखत रहैं।गोरखबानी पढ़ो तो पता लागी- "दम्म को गहिबा, उन्मन रहिबा। " माने गोरखबाबा क अपन आजादी सबते ज्यादा पियारि हवै। कबीर ते मिलो तो असली कबिताई कि धारा पहिचान मिली,उनका पढ़िहो तो चीन्ह पैहौ - "कबिरा खड़ा बाजार में,मांगे सबकी खैर।ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर।" 

माने अवधी कबिताई कि सुरुआत राजसत्ता के मनमाने फ़रमान के विरोध म जरूर कहूँ सुरू भइ होई। लोक जीवन औ किसानी के समाज म सामन्त औ राजतंत्र केर प्रतिरोध अवधी क मूल स्वर बनिगा।कबीर तो अपने राजा राम कि सरकार चलावत मिलत हवैं।उनके राम तो अपन अलगै हैं, वुइ अयोध्या वाले न आहीं।अवधी सैकड़न बरस पुरान भासा आय, यहिमा कइयो लिपि औ कइयो बोली समाय चुकी हवैं।आज जो नागरी लिपि कही जात हवै वा खरोष्ठी ते निकरी हवै।कबीर कहिन - "संस्कीरत है कूप जल भाखा बहता नीर।" कूप जल तबै सभ्य मनई पियत रहैं।आम मनई नदी नाले या झरना क्यार जल पियत रहै।कुआं राजा महाराजा कितो बड़े सामंत के दरवाजे पर होत रहै। संस्कीरत केर बिरोध माने ब्राह्मणवाद केर बिरोध भवा।अवधी ब्रज बुंदेली के  संत कबि अपन लीक बनावत चलत हवैं।बादशाह के दरबार म जाऐक बात आयी तो भाखा के कवि कुम्भनदास किहिन- "मोको कहा सीकरी सों काम।आवत जात पनहिया टूटी बिसरि गयो हरि नाम।"

जब रायप्रवीण क दरबार म बुलावा भेजा गवा तो बुंदेली कबियत्री रायप्रवीण अकबर बादशाह के पास संदेस भेजिन रहै-

" बिनती रायप्रवीण की, सुनिए परम सुजान। जूठी पातर भखत हैं, बायस बारी स्वान।"

जायसी केर पद्मावत तो स्त्री के पच्छ म लड़ाई आय।

तुलसीदास तो पूरी कबिताईअत्याचारी सत्ता क उजाड़ फैंके बदि किहिन रहै। 

उनके रामचरितमानस केर बिरोध तो सब संस्कीरत वाले किहिन मुला तुलसी बाबा अकेले सबका पराजित किहिन।वुइ तो हनुमान के भगत रहैं।वुइ रामराज कि महत्ता बतावत चलत अहैं।दीन दुखी मनई के सबते नेरे तुलसीदास खड़े मिलत हवैं। माने अवधी के कबि दरबारी बनिके नहीं रहे।अपने समय के राजा के गुणकीर्तन म उनका मन नहीं रमा।यहै कारन भवा की अवधी गांव दिहात के करोड़न किसान मंजूर कि भासा बनिगै।लोकगीतन कि परंपरा अवधी ते तमाम दुसरी भासा म गय।वह अवधी आज लोकभासा हवै।वहिका ताना बाना अबहिउ तना हवै। हमरे आज के समाज म सदियन ते बोली समझी जात हवै।करोड़न किसान मंजूर, मनई मेहरिया आजौ अवधी म बतियात हवैं।अवधिया अपने म  मस्त रहत हवैं मुला चमचई उनके सुभाव म कबौ न रही।जहाँ गए खुद्दारी ते नौकरी किहिन।गिरमिटिया बनिकै बिदेस गए तो हुआ सब कहूँ अपनी खुद्दारी ते समझौता न कीन्हेनि। आधुनिक अवधी के पढ़ीस, वंशीधर सुकुल,रमईकाका,विश्वनाथ पाठक, जैस तमाम कबि सत्ता कि बखिया उधेड़त दीख परत हवैं।ई सब अपने समाज के मनई के साथ आजौ डटे हवैं।यहै अवधी कबिता कि लीक आय।आजौ जो चमचई कि भासा अपनावा चाहत हैं उनकी कबिता बिलाय जात अहै।


34. बाबू जी माने अमृतलाल नागर 


 भांग ठंढाई अउर पान के सौखीन बाबू जी लखनऊ कि सान रहैं | किस्सागो अस कि बतकही म खाना पीना भुलाय जाय |लखनऊ म रहन तो उनका बहुत नेरे ते देखेन चौक कि संकरी गल्ली म उनकी बहुत बड़ी कोठी रहै |हम जब उनते मिलेन तब उनकी पत्नी केर निधन हुइगा रहै |उनके भरे गले अउर  आखिन मा आंसू देखि के हम सब जन बहुत दुखी भएन रहै |तब वुइ अपनी पत्नी का यादि कैके कहेनि रहै - “अब हमारे लेखन से प्रतिभा चली गयी” | कैयो दफे उनते मुलाक़ात भई बतकही कीन| उनके मन मा कौनिव कुंठा न रहै | बाबू जी कबहूँ दोस्त जस बतकही करे लागें तो कबहूँ गंभीर लेखक चिन्तक जस बतलाय लागैं | अपनी बतकही म निराला,यशपाल,रामविलास शर्मा औ पढ़ीस जी का बहुत यादि करत रहैं |

16 अगस्त 1916 म उनका जन्म आगरा म  भवा रहै अउर सन 1990 म उनका निधन भवा | लेकिन अवधी लोक जीवन के चरित्र उनकी उपन्यास म हमेसा नीकी ताना झलकत हवैं | मानस का हंस,नाच्यो बहुत गोपाल,खंजन नयन, बूँद और समुद्र ,करवटें औ ये कोठेवालियां जैसी उनकी उपन्यासें हम सबकी यादि म सदा के लिए रचि बसि गयी हैं |  हम सब लखनऊ के पढ़ैया लिखैया उनका बाबू जी कहित रहै | चालीस के दशक मा वुइ ‘चकल्लस’ अखबार निकारिन रहै | ‘चकल्लस’ शीर्षक ते  पढीस जी केर कबिता संग्रह सन 1931 म निकर चुका रहै | बाबू जी रामविलास शर्मा जी के सुझाव के हिसाब ते अपने अखबार केर नाव “चकल्लस” धरिन  रहै |पढीस जी ते इजाजत लैके यह फैसला कीं गवा रहै | चकल्लस अखबार मा बादि मा पढीस की कैयो रचना छपीं | उनकी किन्नर कथा- “चमेली जान’ बाबू जी चकल्लस (साप्ताहिक) के 19वें अंक  जून सन  1939 म छपी रहै | यह किहानी हिन्दी साहित्य म किन्नर जीवन कि पहल किहानी मानी जात हवै |

बाबू जी के घर जो कोऊ गवा होई वहु उनकी दरियादिली अउर किस्सागोई क नीके समझि पाई | पहिली दफा सन 1985 म उनके घर जायेक मौक़ा मिला | वहिके बाद कैयो दफा उनके घर गएन हर दफा  उनका सनेह आसिरबाद मिला | कैयो दफे अमीनाबाद के कंचना रेस्टोरेंट म उनकी बतकही सुनेक मिलत रहै |  वही दिनन म उनका एक साक्षात्कार कीन  रहै |जो मधुमती पत्रिका म छपा रहै |

जब वीपी सिंह मुख्यमंत्री रहैं तब हिन्दी सेवी पंडित श्रीनारायण  चतुर्वेदी भैयाजी का “भारत भारती” सम्मान घोषित कीन  गा रहै| तब एक लाख रुपया सम्मान कि रासि रहै | भैया जी वीपी सिंह की उर्दू  भासा नीति से नाराज रहैं तो वुइ ई पुरस्कार क मना कै दिहिन | उनका बयान छपा- “ मुख्यमंत्री जी मैंने अपने जीवन में एक लाख रुपये एक साथ कभी नही देखे हैं | मैंने ऐसा कोई साहित्यिक कार्य भी  नहीं किया है कि मुझे इतना बड़ा भारत भारती जैसा पुरस्कार दिया जाय |मुझे लगता है मेरा मुंह बंद करने के लिए मेरे नाम का चयन किया गया है  इसलिए मैं विनम्रता पूर्वक इसे वापस कर रहा हूँ |” भैया जी के ई बयान के बादि हिन्दी संस्थान के सब कर्मचारी और साहित्यकारन म हड़बड़ी  मचिगै| अब तमाम मीटिंग और सलाह के बादि फैसला लीन  गवा कि अब यू सम्मान बाबू जी का दीन  जाय | बाबू जी के घर जायेके शिवमंगल सिंह सुमन जी उनते जब सबका फैसला अउर  प्रस्ताव बतायिन तो बाबू जी कहिन - “जब भैया जी पुरस्कार वापस कर चुके हैं तो हम कैसे ले लें ? ये हमसे न होगा  |” सबकी चिंता यहै रहै कि “भारत भारती” जैसे सम्मान क राजनीति केर  सिकार न बनावा जाय | सुमन जी बहुत बिनती किहिन , कहेनि - “आप हिन्दी संस्थान को अपयश से उबार लीजिए| कहीं ये सम्मान और परंपरा समाप्त न हो जाए ?” उनके साथ लखनऊ के तमाम साहित्यकार रहैं | आखिर कार बाबू जी मान  गए | उनका पाहिले साहित्य अकादमी मिला रहै फिर  अउर पद्म भूषण जैस कैयो सम्मान मिले | हमका तो बाबू जी के पानदान ते दुइ,  तीन दफा  पान खायेक  मिला तो हमहू सोचित है कि हमार जीवन सफल हुइगा | 


35.केन नदी के कबि 


बांदा वाले प्रगतिशील कबि केदारनाथ अग्रवाल जी हिन्दी अवधी दुनहू भासा म कबिताई किहिन रहै।वुनकी हिन्दी कबिता म उनके किसान औ गाँव जवार केर चेहरा चमकति हवै।

उनका जनम 1 अपरैल सन 1911 म बांदा जिला  के कमासिन गाँवम  भवा रहै, नब्बे साल कि उमिर पूर कै के उनका निधन सन 2000 म भवा।पेशे ते वुइ वकील रहैं ,लेकिन उनकी कबिताई म उनके  गाँव जवार और किसान केरि चिंता साफ देखात हवै।अपने गांव जवार कि भाखा पसु पंछी नद्दी सबका पता वुइ बतावत चलत हवैं।

गाँव से कक्षा तीन के बाद रायबरेली पढ़ै चले गए फिर हुवां  ते कटनी गए अउर सातवीं कक्षा जबलपुर ते पास किहिन रहै, फिर इलाहाबाद ते बीए पास किहिन अउर कानपुर ते वकालत पास किहिन।माने अवधी अउर बघेली  भाखा उनकी चेतना म नीके समाय  गै रहै वहेकि ताकत  उनकी कबिताई मा नई चमक पैदा करति हवै।आधुनिक जमाने के कुछ  बिदुआन लोकभासा क जनपदीय भासा कहब सुरू किहिन हवै, तो ई हिसाब ते वुनकी कबिताई म  बांदा जनपद की भासा वाली चमक साफ़  झलकति हवै।आपातकाल म इंदिरा जी की नसबंदी सहित तमाम नीतिन के बिरोध म लिखी वुनकी अवधी कबिता बहुत चली रहै-

“जे भारत का अमरीका का पाही देस बनाइन है 

अमरीका की बनियागीरी हमारे ठांव बोलाइन है 

डालर के हाथें म सौपिन हमका बेंचि बहाइन है।

हम तो उनका वोट न देबै / जे हमका बधियाइन है।”  केदार बाबू जयप्रकास नारायण के आन्दोलन म इंदिरा गांधी केरी नीतिन के बिरोध म डटिके खड़े भे रहैं जब बामपंथी इंदिरा के आपातकाल केर समर्थन किहिन रहै।तब वुइ यह कबिता लिखिन रहै।मनई कि हिम्मत औ संघर्ष केर सुर उनकी तमाम हिन्दी  कबिताई मा देखात हवै-“जिसने सोने को खोदा,/लोहा मोड़ा है/जो रवि के रथ का घोड़ा है/वह जन मारे नहीं मरेगा।” 

अपने गाँव जवार की धूर माटी असल म गोरी नायिका जस उनका देखात हवै। वहिके बारेम  वुइ कहत हवैं -

“लिपट गयी जो धूल पांव से/वह गोरी है इसी गांव की

जिसे उठाया नहीं किसी ने/ इस कुठांव से।”

कबि अपने परोस कि केन नद्दी के सुख दुःख ते बतियात हवैं। यही लिए केदार बाबू का केन नदी केर कबि कहा जात अहै। उनकी केन नद्दी ते मुलाक़ात केर सुंदर  चित्र देखा जाय  -

“आज नदी बिलकुल उदास थी/सोई थी अपने पानी में,/उसके दर्पण पर-बादल का वस्त्र पड़ा था/मैंने उसको नहीं जगाया,दबे पांव घर वापस आया।” अब के कबि जब अपने घर मा लरिका होत है तो वहिकी सान  म कबिताई कीन  करत हवैं, या नेतेवन कि चमचई खातिर कबिता करै लागत हवैं । लेकिन केदार बाबू  गाँव के लोहार के घर मा जब लरिका पैदा भवा तो लिखिन रहै - “हाथी-सा बलवान, जहाजी हाथों वाला और हुआ/सूरज-सा इंसान, तरेरी आँखों वाला और हुआ/एक हथौड़े वाला घर में और हुआ। उनकी कबिताई म जो या अपने गाँव जवार कि खुसबू महकत हवै वहिके कारन उनका बहुत मान  सम्मान मिला । बसन्ती हवा,नीली चिड़िया ,मांझी गीत तो बहुतै परसिद्ध भे रहैं । अब बामपंथी वुनकी कबिताई केर मनमानी ब्याख्या करे लाग हैं,लेकिन उनकी नीली गरबीली चिरैया केर पता वुइ सब नहीं जानत अहैं - 

“वह चिड़िया जो-चोंच मार कर/दूध-भरे जुंडी के दाने/रुचि से, रस से खा लेती है/वह छोटी संतोषी चिड़िया

/नीले पंखों वाली मैं हूँ/मुझे अन्‍न से बहुत प्‍यार है।”

जो कबि चने के खेत मा लहिला का मुरैठा बांधे किसान की नाय देखि रहा होय वहि कबि की कबिताई केर अंदाजा लगाना आसान न हवै, देखा जाय-

“एक बीते के बराबर /यह हरा ठिंगना चना/बाँधे मुरैठा शीश पर छोटे गुलाबी फूल का सज कर खडा है।

पास ही मिलकर उगी है/बीच में अलसी हठीली/देह की पतली, कमर की है लचीली।” हठीली अलसी कि पातर कमर और गुलाबी मुरैठा बांधे लहिला के प्रेम कि  बिबेचना अवधी गाँव जवार कि भासा समझे बिना को कै पाई ? उनका केन नद्दी केर कबि कहा जाय ,जन कबि कहा जाय चाहै प्रगतिशील कबि कहा जाय लेकिन अवधी भाखा के रस और गांव  जवार कि चेतना उनकी कबिताई समझे बदि  जरूरी हवै। जब आम के बिरवा ते सीकल माने सीप टपकत है तो गाँव के लरिका  मनई मेहेरुआ  सबकी  खुसी कस चुइ चुइ  जात हवै ई कबिता म देखा जाय-“टप्प से चू पड़ी है खुशी/सीकल की तरह रसियाई/आओ हम चूसें।” अवधी भासा के रस ते भीजी अरघ वाली उनकी कबिताई हिंदी वाले भइयन का लोक भासा के पच्छ ते देखै क चही। अपने लोक की बोली बानी ते जुड़े के कारन वुइ बड़े भये।उनकी करीब पचीस कबिता कि किताबें छपी हैं। उनकी एक सौ दसवीं जयन्ती पर केदार बाबू की सुधि का नमन।

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36. भैया धुतू धुतू 

बाबू अद्याप्रसाद उन्मत्त अवधी के बड़े  परसिद्ध कबि रहैं ।पहिले अवधी कि कबिता कबिसम्मेलन के बहाने सुनी सराही जात रहै ।निम्बिया तरे छपरा  तरे कितौ बाग़ खरिहान मा  किसानन के बीच मा गाई जात रहै । चौमास होय चाहै चैत  बैसाख जब किसान का फुरसत होत रहै यही तना कबिताई,नौटंकी,भागवत,आल्हा वगैरह के गायन मा टेम कटत रहै ।गाँव के अंगूठाटेक मनई अवधी कि  सब कबिताई  समुझत रहैं बीच बीच मा अपने  मन माफिक  सुझावौ देत  रहैं। हिन्दी अखबारन या पत्रिका मा अवधी कि कबिता न छापी जात रहै, अवधी केर तो कौनो अखबार निकरै नहीं । उन्मत्त जी केर जन्म 13 जुलाई सन 1935 मा  प्रतापगढ़  मा भवा रहै । उनका निधन सन 2006 म भवा रहै ।वुइ अवधी कि बड़ी सेवा कीन्हेनि रहै ।'माटी और महतारी'उनकी कबिताई केर संग्रह बहुत पाहिले छपा रहै। अवधी भासा ते उनका प्रेम बचपने ते रहै ।वुइ जब धुतू धुतू सुनावत रहैं तो मालुम होत रहै कि सांचौ परिवर्तन कि तुरही बाजि रही है कहूँ पुरान भीत गिर रही है औ नई भीत उठत अहै।बिचारन  ते कांगरेसी और प्रगतिशील चेतना के कबि रहैं, लेकिन अपनी माटी औ भासा का महतारी मानत रहैं ।अब तौ तमाम हिन्दी वाले  अवधिया अवधी के नाम ते सनकहा बैल तना बिचुकत अहैं ।

सन 1988 से 1993 के बीच  मा जब वुइ दिल्ली के यमुनाबिहार मा रहत रहैं  तब उनते दुइ दफा मुलाक़ात भय रहै । वहि दिनन मा  त्रिलोचन शास्त्री ,उन्मत्त जी, आकाशवाणी के हमार  दोस्त भाई सोमदत्त शर्मा सब यमुनाबिहार म रहत रहैं । हम भजनपुरा म रहित रहन , यही के पास सादतपुर मा बाबा नागार्जुन,विष्णुचंद शर्मा,चित्रकार कबि  हरिपाल त्यागी , कहानीकार महेश दर्पण  अलाव के संपादक रामकुमार कृषक सहित और कैयो साहित्यकारन के निवास हवैं ।याक दिन त्रिलोचन जी ते अवधी कबिताई पर बात होत रही तो वुइ कहेनि- 'आप उनमत्त जी से मिलिए ,वो अवधी के अच्छे कवि हैं ।' तब अक्सर सबते घरेलू गोष्ठिन म कितौ सरकारी साहित्यिक समरोहन मा मुलाक़ात हुइ जात रहै । वही दिनन मा उन्मत्त जी ते निकटता बनी रहै। “धुतू धुतू” जस उनकी  बहुत ख़ास प्रसिद्द कबिता उनके मुंह ते तबहीं सुना रहै ।बहुत नीके सुर मा वुइ गावति रहैं सब अर्थ खुलति जात रहै ।तब वुइ यमुनाबिहार मा अकेले रहत रहैं कांग्रेस पार्टी के कौनेव अखबार केर संपादन देखत रहैं । “धुतू धुतू” उनकी  सिग्नेचर कबिता कही जाय सकत हवै।एक अंश देखा जाय-

नकली समाजबाद खोखली आजादी पपवा प परदा महतिमा कि खादी 

केकरे रकतवा से बेदिया गै लीपी 

ओकरे असनवा पे बैठिगे  फसादी 

मारि के धकेल द्या न सोझे उतरै

नई भीत उठथ  पुरान भीत गिरै

हो भैया धुतू धुतू ।

उन्मत्त जी अवधी लोकधुन औ लोकछंद के साथे  आधुनिक अवधी कि  प्रगतिशील चेतना के कबि रहैं ।बड़प्पन यू कि हमारी तुकबन्दी वाली कबिता सुनिके वहिकी बहुत सराहना किहन ,बोले भैया लिखत रहेव । उनते  बतकही करत बेरिया  मालुम होत रहै कि कौनेव मिठुआ  आंबे के बिरवा तरे जुड़ाय रहे  हन । गावन म अभाव, सामाजिक दुःख तकलीफ अउर गैरबराबरी  कि तमाम तस्बीरै तो उनकी कबिताई म झलकती हवैं  गाँव कि बिरहिन बरखा कि राति मा अपने पति का यादि कै रही है, अउर बदरा ते बतलाय रही है । बिरहिनी कहत अहै- रे कजरारे बदरा तू अतनी जोर ते बरस कि हमरे पिया का घर की यादि आय जाय ।आगे वा कहत बा कि हिंया हूम के बरस ,हूम क मतलब करेजे म हूक  पैदा करे वाली आवाज के साथ बरस । तनी देखा जाय उन्मत्त जी की कबिताई- 

‘राह निहारत सगरी रतिया तिल तिल के सरकी , ऐसन बरस बिदेसी कंता का सुधि आवै घर की ।

हिंया हूम के बरस कजरारे बदरा 

तनी झूम के बरस कजरारे बदरा।’ उन्मत्त जी की कबिताई केर भावपच्छ बहुतै सबल अउर मार्मिक हवै।दुनिया कि कौनो महतारी अपने बचवा कि भूख नहीं देख सकत । महतारी पर लिखी उनकी कबिताई केर भाव देखि के जिउ जुड़ाय जात अहै -

‘भूख देखेव तो बावन करमवा किहेव ,माई पूरा तु आपन धरमवा किहेव 

मोरे डेकरे गयिउ तू अघाय मैया ,अहै को मोरे तोहरे सिवाय मैया ।’ पेट भरे पर जब लरिका डकरत हवै, तो उन्मत्त जी कहति हैं कि वहिकी डकार सुनिके महतारी केर पेट आपुइ  भरि जात हवै।सांचौ महतारी के अलावा लरिका के लिए पूरी  दुनिया मा अउर दूसर को अपन होत है ? महतारी क अपनी औलाद ते ज्यादा कुछू पियार नाई होत।वुइ सांचौ अपनी माटी अवधरानी केर करजु चुकाय गये ।अब हम अवधियन का अवधी मैया कि सेवा करेक होई ।

यहौ खुसी कि बात आय कि अयोध्या के आसपास  पढीस,बंसीधर सुकुल,मृगेश,विश्वनाथ पाठक  अउर उनमत्त जी की कैयो कबिता बीए. के बिद्यार्थिन क पढाई जाती हवैं ।सुना हवै अपने जनपद प्रतापगढ़ मा वुइ कविकुल नाम कि संस्था बानाएन रहै ।जो कबि पढाये जात हैं उनकी कबिताई पर बतकही होय लागत हवै, जो पाठ्यक्रम मा नहीं लागि पावत हैं वुइ हाली ते बिलाय जात अहैं । कबि तो कीरति के बिरवा होत हैं इनकी सुधि का ज़िंदा राखेते बहुत सीख मिलत अहै ।रीतिकाल के कबि साइत मतिराम कहिन रहै- 'कीरति के बिरवा कबि हैं इनको कबहूँ कुम्हिलान न दीजै ।' उन्मत्त जी की यादि आवत है तो उनकी धुतू धुतू वाली कबिता दिमाग म गनगनाय के नाचै लागत हवै, काने म तुरही कि धुनि बाजै लागत अहै।उनकी सुधि का नमन ।

  

37. नवा साल सुभ होय 



 चैत शुक्ल पक्ष कि परेवा ते अपने देस समाज का नवा साल माने संवत 2078  सुरू भवा है।कहूं गुडीपड़वा तो कहूं बैसाखी क परब मनावा जात अहै।यही के साथ चैत के नेवरता सुरू हुइगे हैं,फागुन बीति गवा मुला अबहीं टेसू, चंपा,गुलाब,गेंदा के फूल अपनी खुसबू ते सबका जिउ भरमाए हवैं। दसहरी, लँगड़ा औ सफेदा के बिरवान पर नन्हकई अम्बिया  झलकै लागी हैं।बगियन म पतझर के पात बिछि गए  हवैं।आम, महुआ औ चम्पा  कि डार पर ममाखी औ  भौरन के सितार बजि रहे हैं, वहि पर पपीहा औ कोयली कि गौनई सबका मन अपनी तरफ खैंच लेत अहै।प्रकृति म जो बदलाव होत हैं वहिके कारन मनई कि जिनगी म बदलाव आवत रहत अहै।चैत महीना कि बड़ी महिमा हवै।

संस्कीरत  कि कबिताई औ  साहित्य चर्चा मा चैत कि रातिया केर बड़ा मनोहारी वर्णन कीन गवा हवै। कालिदास तो “ऋतुसंहार” म चैत पर बहुत नीक कबिताई लिखिन रहै। शारंगधर के एक सलोक - “ निश्शेषत च्युत चन्दन…. ता एव चैत्रक्षपा......चेत: समुत्कंठते |.” के बिना तो साहित्य शास्त्र कि पढाई अधूरी रहि  जात है |.बाद मा कबीरदास जैस कैयो संत कबि अवधी भासा मा निर्गुनिया ढंग ते चैत महीना पर गीत लिखिन रहै -

 “पिया से मिलन हम जाइब हो रामा, अतलस लहंगा कुसुम रंग सारी पहिर-पहिर गुन गाइब हो रामा।”- कबीर।   बारहमासा वाले तमाम लोक कबि चैत पर ढेरन गीत लिखिन हवै।अवध मा चैती गीत गावै कि बहुत लम्बी परम्परा हवै।शास्त्रीय गायिका गिरिजा देबी जी के चैती गीत बहुतै गजब होत रहैं।

 नई फसल के साथै किसान के घरे खुसहाली आयी है वहिकी घरैतिन औ लरिका बच्चा सबै खुस देखात हवैं ।जब किसनऊ खुस होत हवैं तो अपन सब तथा- कथा भागवत, गीत गौनई, कीर्तन,  नौटंकी वगैरह म  लुटाय देत हवैं।बाकी जो बचत हवै वाहिका महाजन कितौ बैंक वाले उठाय लै जात अहैं।चैत के किसान की सही दसा तो “अज्ञेय” जी एक छोट कि कबिता म  लिखिन रहै- बह चुकी बहकी हवाएँ चैत की /कट गईं पूलें हमारे खेत की/कोठरी में लौ बढ़ा कर दीप की/गिन रहा होगा महाजन सेंत की।”  

 सुना रहै कबौ अवधी के महाकबि बिस्वनाथ पाठक के लिखे  “सर्वमंगला” महाकाव्य केर पाठ फैजाबाद  मा होत रहै।वुइ दुर्गासप्तशती पर केन्द्रित अवधी मा  महाकाव्य लिखिन  रहै।तनी बानगी देखी जाय- देबीमैया राजा सुरथ का कस  असीस दैके अंतर्धान हुइ गयीं -

"लोभ न दोख न मोह रहे औ ,रहे न मन मा धोखा 

मुक्तिलता का तब दुर्लभ फल तुहुका देब अनोखा 

यातना कहिके फुनि बिराट  मा भईं बिलीन भवानी

पुलकित राजा के न दृगन ते रुका आसुं का पानी।"  विश्वनाथ पाठक जी चार जुलाई सन 1931 मा फैजाबाद मा पैदा भे रहैं औ तीन नवम्बर सन 2014 मा उनका निधन भवा रहै। संसकीरत के शिक्षक रहे, सन 2010 म उनकी अवधी  कबिताई पर साहित्य अकादमी नई दिल्ली  केर पहिल "अवधी भासा सम्मान" मिला रहै।अवधी म दूसर उनकी लिखी “घर कै कथा” मा  गाँव जवार के दुःख दर्द कि कबिताई मिलत अहै।वुइ संस्कृत औ प्राकृत के विदुआन तो रहबै कीन, आधुनिक अवधी भासा केर गौरव माने जात अहैं। “सर्वमंगला” के कारन आजौ वुइ अवधी समाज  के घर घर मा पढ़े सुने चीन्हे  जात हवैं।

देबी पूजा के साथै नेवरतन  मा घर घर बिटेवन के पांय धोय धोय उनका जेंवावा जाई। दुसरी तरफ हमरेहे समाज के घिनहे मनई लड़की बिटिया बहुरियन  पर  घात लगाए बैठ देखात हवैं ।बिटियन का महतारी के पेटे मा मार डारै वाले मनई अबहीं हमरे अवधी समाज  मा ख़तम नहीं भे हवैं। बड़ी तकलीफ कि बात आय कि  हमार देस अबै बाबा अम्बेडकर  के बनाए संविधान वाला समतामूलक समाज नहीं बनि पावा है।नारे बाजी खुब होई मुला हिंया पाखंडी आदमी के भीतर खतरनाक जनावर मिलत अहै।

कोरोना का खतरा बढ़िगा हवै,चुनाव के घमासान मा किसान आंदोलन कि आगि बुझिगै है।

 यहि परेवा का आरोग्य प्रतिपदा कहा जात अहै, तो सब जने स्वस्थ रहैं नीरोगी होंय यहै मन की हुलास अहै।हाल फिलहाल बस सब जने कोरोना केर टीका लगवाय लेव | नवा साल सुभ होय।अउर का कही बाकी सबु चुनाव कि धमाचौकड़ी म बिलाय बुताय गवा।



38.

महाबली कोरोना 


अबहीं तो कोरोना बढ़ि रहा है। मौत नाचि रही हवै।नेवरता,कुंभ औ रमदान के दिन चल रहे हैं तो का धरम करम  से कोरोना भाग जाई ? कोरोना  इंसानी दुसमन आय।वहिके तीर भेस बदले कि अबूझ ताकत हवै। वहिका काबू म करे कि  कोसिस सब पादरी, मुल्ला,पंडित औ सब धरम  वाले अपने हिसाब ते कइ रहे हैं। दुनिया के सबते हुसियार बिग्यानी जुटे हैं मुला कोरोना केर बाल बांका न भवा।दुनिया भरेम लाखन  मनई मर चुके हवैं ,करोड़न बीमार हवैं। सरकार बहादुर कन्फूज हवैं, उनका  राह नहीं सुझाय रही ।अपने प्रदेश म तो योगी औ अखिलेश भैया दुनहू कोरोना कि गिरफ्त म हवैं। गंगामैया केर आसिरबाद लिहे के बादिव तमाम संत कोरोना के शिकंजे मा फंसि गये।कौनव अखाड़े के मंडलेश्वर अउर याकै विधायक के उम्मीदवार कोरोना कि गिरफ्त म आयगे।

 कैयो बड़कये अपसर औ मंत्री मर चुके हैं ।यू समझ लेव कि कौनिव दवा औ दुआ काम नहीं आय रही हवै।जान  लेव कि महाबली कोरोना क ईद या होली के नाम पर मनई का दुसरे मनई से मिलना जुलना कतई पसंद न हवै।ई पांच राज्यन के चुनाव म सब जन खुब रैली किहिन, हरिद्वार मा कुंभमेला लगा करोड़न मनई गंगा नहायेसि तो मनई कि आजादी देखि के कोरोना नाना रूप धरै लाग।कोरोना रक्तबीज क वंशज आही।जतना  वैक्सीन लग रही हवै वहिते जादा कोरोना क भौकाल बढ़ा है। सब हुसियार बिग्यानी कोरोनवा क गांसे  कि जतन मा लगे हवैं मुला कोरोनवा रोज  नए रूप म परगट होत अहै।वहिके हजारन  रूप, रंग, ढंग देखे जाय चुके हवैं। जो मुंह छेंके रही माने मुसिक्का लगाए रही,दूरी बनाए रही वहै बची ।भैया सौ बात कि बात, कि अपने घर मा जो करेक होय करो।बाहर न निकरेव।जो बुद्धि ते काम न लेई वहिका मरना तय है,दिनकर जी ई निर्बुद्धिन नेतन के लिए लिखिन रहै -"जब नाश मनुज पर छाता है, पहिले विवेक मर जाता है।" ई पाखंडी नेता  बहुरुपिया  कोरोना ते कैसे लड़िहैं?

काल्हि फोन ते बड़का भगतिन चाची बताइन - “ नेवरता म मैया क ध्यान धरेव ,नवमी क भगवान राम कि पूजा किहेव,सब कोरोना क संकट कटि जाई।बस बिगिर मास्क बाहेर न जाएव।मोलहे का पुलिसवाले लैगे, मारपीट के जेल भेज दिहिन।”

हम कहा -”ठीक आय चाची हम ध्यान रखिबे।मुला तुम बताओ कि टीका लगवायेव कि नहीं ?” चाची कहेनि- “अबहिन नम्बर नही लगा,भैया!अबतो रामै रच्छा करिहैं। रामनवमी के मौके पर सरजू किनारे कोरोना का करी ? सुनो - रामलला ठीक दुपहरी म पैदा भे रहैं तब न जादा सर्दी रहै, न जादा गर्मी रहै - “मध्यदिवस अति सीत न घामा।” न जादा दुःख रहै न जादा सुख रहै।" चाची अउर तमाम राम नाम कि महिमा बतावै लागीं कहेनि -“राम नाम मणि दीप धरि जीह देहेरी द्वार /तुलसी भीतर बाहरेव जो चाहेसि उजियार।” हम कहा चाची- “मूरख हृदय न चेत जो गुरु मिलें बिरंचि सम।” वुइ कुछ अउर उपदेस देतीं,हम झट्ट दे भगतिन चाची क पैलगी कीन,अउर उनते जिउ छोड़ावा।का कही,अब चुनावी नौटंकी म दुर्गामैया औ  रामलला सब नारा बनि गए हैं। 

 बंबई, दिल्ली के  मंजूर गाँव भागै लाग हैं उनकी आँखी टेसू  तना फूलि के लाल हुइ आयी हैं, औ महुआ जस  आंस चुवत हवैं।मौत देखिके  दुनिया बेबस हवै।समसान औ कब्रिस्तान म जगह नही बची।मरे वाले का अंतिम दरसन कोऊ नहीं करत। घर के मनई लहास क छुआ नही चहत। टीका लगवाओ,यहि समय का बस आपातकाल समझो, बचिके रहौ, छिपि के रहौ। जमराज कोरोना माली के भेस म आवत अहै, वहिते को  बची- “माली आवत देखि के कलियाँ करीं पुकार /फूले फूले चुन लए काल्हि हमारी बार”-रहीम।राम रहमान कोऊ कामे न आयी।घर मा लुके रहौ,महाबली कोरोना जो कमजोर मनई क पकर लेई तो कोई बरत,पूजा,नमाज, दवाई,डाकदर कामे न आयी।येहि लिए लापरवाही न किहेव,बचिके रहेव।





39.  बुढ़वा मंगल


 जेठ महीना क आख़िरी  मंगलवार बुढ़वा मंगल कहा जात अहैं। काहे ते यही दिन हनुमान जी बूढ़े वानर का रूप धरिके भीम केर अहंकार चूर चूर किहिन रहै।बड़के नेतवन केर अहंकार चूर होय तो बड़ी बात बनै।चैती पुन्न्मासी के दिन इनकी जयंती मनाई जात अहै। जेठ माने बड़ा तो वही हिसाब ते ई महीना के मंगल बड़े कहे जात अहै।मुला बड़कऊ पंडित बताएनि कि जेठ महिना के आखिरी मंगल केर महातम अलगै होत अहै। बजरंगबली कब पैदा भये कहाँ भये पता नहीं लेकिन ई गूगल गुरू बतावत हवैं कि कहूं झारखंड के जंगल म हजारन  साल पाहिले पैदा भये रहैं ।हमरी लोक परम्परा म हनुमान कालजयी देउता माने गे हैं । लेकिन वुइ न सुर रहैं, न असुर रहैं, न मनई आंय न गन्धर्व,वुइ तो बानर आहीं ।आज के मनइन के हिसाब ते  न उनकी कौनिव जाति है न  बिरादरी ।इतिहास के हिसाब ते वुइ आदिवासी कहे जाय सकत हवैं ,आदिवासी मतलब आदिकाल ते रहै वाले।तुलसी बाबा तो उनही  कि  भगति ते बिस्वकबि बने ।तुलसीदास जहां जहां गए तहां  बजरंगबली कि मठिया बनाएनि । वुइ हनुमान जी की भगति कैके मर्यादा पुरुसोत्तम श्रीराम तक पहुंचे रहैं । तुलसी बाबा लिखिन रहै- राम दुआरे तुम रखवारे, होत न आज्ञा बिनु पैसारे ।

माने राम जी  ते मिलने से पहले हनुमान जी ते आज्ञा लेव । ई तो लोक देवता आंय इनके दरबार म सवर्ण अवर्ण, मेहेरुआ मंसवा लरिका बूढ़ सबका परवेश मिलत अहै। वुइ संकर सुवन औ केसरी नन्दन कहे गए, पवन पुत्र कहे गे हैं लेकिन इनके पिता तो बानर राज केसरी रहैं ।उनकी माता अंजना आहीं। ई श्रीराम, श्रीकृष्ण और गौतम बुद्ध कि तना महलन के  राजकुमार न रहैं, बड़े  दरबार वाले  ऊंचे कुल मा नहीं जन्मे ।लेकिन ई अपने तपबल योगबल ते लोक जीवन के कालजयी देवता बने रहैं ।भोलेनाथ के गण तो रहबै कीन ,यही लिए जहाँ जहां शिवाला मिलत अहै, तहां तहां हनुमान जी की मठिया मिल जात हवै।लेकिन अब वुनके नाम ते उलटा सीध  सहरन मा  भव्य मंदिर बनाए गए हैं,ई धरम कि  धंधेबाजी वाले बड़के मंदिर उनका पसंद ना हैं ।लोक देवता तो सादगी पसंद करत हवैं । ई तो  रामसेतु बनाएन रहै, अबहिनो जब इंजीनियर पुल बनावै जात हवैं तो हनुमान जी का ध्यान जरूर  करत अहै। नीव पूजन म इनहे क ध्यान कीन जात अहै।कुस्ती वाले पहलवान अखाड़ा कि माटी देहीं पर मलिके इनहे का ध्यावत अहैं।कहा जात है कि लोक देउता  हर टेम जागत रहत अहैं।

 बड़कऊ पंडित आगे बतायेन  ई त्रेता युग मा रामभगत जस  मिलत अहैं, तो द्वापर  मा भीम कि परीक्षा लेत हवैं अर्जुन के रथ की ध्वजा पर विराजमान देखाई देत अहैं।ई रुद्रावतार कहे गये महायोगी,महाबली तो रहबै कीन ।ई कठोर पैसरम के देवता कहे जात आहीं । वाल्मीकि, व्यास ,कालिदास,कंबन,भवभूति ,तुलसीदास सब उनकी बड़ाई  किहिन रहै।करोड़न  मनई आजौ  दिन कि सुरुआत  हनुमान चालीसा ते करत हवै ।


 बड़कऊ पंडित बतायेनि -  अंजना माता पढाई बदि गुरुदेव बृहस्पति के पास इनका लइ गयीं, तो वुइ मना कइ  दिहिन बोले-हम तो देउतन क पढ़ाइत  हवै।हमरे तीर टेम नहीं है।अंजना माता बहुत मिन्नत किहिन  वुइ तब्बो  न माने आखिर म  गुरुदेव सुझाव दिहिन -'तुम सुर्ज ते मिलौ साइत  वुइ तुम्हरे लरिका क पढ़ाय  दे।' अंजना माता सुर्ज के लगे गयीं कहिन- भगवान अब  हमरे लरिका का तुमहे  पढाओ ।देवगुरु तो मना कइ दिहिन ।' वुइ कहिन- हमरे तीर बिलकुल टेम  नहीं , हम तो दिन रात  चलतै रहित है।हम रुक जैबा तो धरती रुकि जाई । हमार तो नामै दिनमान परिगा हवै, तो कैसे पढ़ाई ? मुला एक तरीका है जो  तुमरे  लरिका  ते सधै तो हमरे साथ हमरी वार मुंह कैके असमान  मा चलै, तो पढ़ाई जरूर पूरी हुइ जैहै । अंजना माता जब लौ कुछ कहतीं,हनुमान तैयार हुइगे । पढ़ाई तो सामने देख के होई तो हनुमान सुर्ज देउता  के सामने  मुंहु  कैके  उलटे पायन पीठि कैती  चलै लाग, सुर्ज देउता उनका ज्ञान दिहिन ।येहि पढाई कि उलटी यात्रा औ तपस्या म सुर्ज कि गर्मी ते  उनका मुंहु औ बदन लाल हुइगा। सुर्ज देउता उनकी  लगन ते बहुत खुस भये ।तब वुइ  बिद्यावान गुनी अति चातुर बने। ई जो किस्सा बनाये गे हैं कि बचपने म हनुमान  सुर्ज भगवान क फल समझिके खाय दौरे रहैं  वह बात ठीक नहीं ।काहे ते ई तन की बेवकूफी कौनो प्रतिभावान प्राणी कस करी ? 

आगे बड़कऊ बोले-  इनका नए गोंहू कि गुड़धनिया पसंद हवै काहे ते गन्ना औ गोंहू कि फसल किसान के घर की आय ।गुड़धनिया कि महक पूरे गाँव क महकाय  देत अहै । वहिकी खुसबू ते जिउ गनगनाय जात अहै ।इनका बर्फी, पेड़ा ओतना पसंद ना है । ई  नियम संयम  औ बल पराक्रम के देवता आंय। तुलसी बाबा बतायेनि कि  अपने पराक्रम ते वुइ श्रीराम जी का अपन कर्जदार बनाय लिहिन रहै- “सुन सुत  तोंहि उरिन मैं नाहीं ।” हमरे गांव के निरहू पर बजरंगबली कि सवारी आवत रहै।वहिते सब घबरात रहैं।जब सवारी आवै तो वू  गलत काम करैया मनइन का लाठिन फोर देत रहै।फिर खुदै बेहोस हुईकै गिर परत रहै। वहिकी मार पीट का कौनो बुरा न मानत रहै।गांव के मनई निरहू क गुड़धनिया कितो लड्डू  बतासा खवाय के पानी पियावत रहैं।तब्बै निरहू चेतन्न होत रहैं ।सबतन बजरंग बली कि जय जयकार होत रहै ।उनकी कृपा सब पर बरसै।



40. जय जिनेन्द्र 


चैत महीना म उजेरिया पाख कि बड़ी महिमा है | नवमी क अपन  रामलला  पैदा भे रहें औ  तेरस के दिन ईसापूर्व चौथी सदी म स्वामी महावीर कुण्डलपुर,वैशाली  म पैदा भे रहें |ई पिता सिद्धार्थ औ माता त्रिशाला कि तीसरी संतान रहैं |इनका जनम  गौतम बुद्ध ते पाहिले  भवा रहै  |इनका असली नाम वर्धमान रहै | इनहू राजकुमार  रहैं  | यहू संसार के दुःख तकलीफ देख के अपन सुख कि जिनगी छोड़ के संन्यास  लीन्हेनि  रहै |ई जब अपने समाज के दीन  दुखी मनइन ते मिले तो इनका आम मनई कि  जिनगी की हकीकत समझ आयी | जैन धरम  के आखिरी तीर्थंकर इनहेक माना जात अहै |अट्ठाईस साल कि उमर म महावीर जी के  महतारी बाप  केर निधन हुइगा रहै । बड़े भैया  नंदिवर्धन के कहे पर ई दुइ बरस तके  घर पर रहे,फिर  तीस बरस की उमिर म वर्धमान   श्रामणी दीक्षा लिहिन औ  'समण' बनि  गए। अपरिग्रह कि अस धुन सवार भय  कि उनके  सरीर पर याक  लँगोटी तक  न बची | उनका सबियों  बखत  ध्यानै  म लगा रहै । हाथे  म भोजन कइ  लेत रहैं , आम गृहस्थ मनइन से कबो कोई चीज न माँगिन । यही त्याग औ  साधना ते वुइ  पूरा  आत्मज्ञान  हासिल किहिन रहै । ई नास्तिक रहैं ,वेद क न मानत रहैं,मूरत पूजा न मानत रहैं |

 

      जैन धरम म इनके चेला आगे चलिके दिगम्बर श्वेताम्बर दुइ पंथ बनाय लिहिन |दुनहू के  अलग मंदिर बनिगे |कैवल्य माने मोक्ष पाए के बाद महावीर भगवान जो सिच्छा दिहिन रहै वह  बहुत महत्त्व कि रहै | पांच बातें बतायेन  रहै - अहिंसा,सत्य,अस्तेय ,ब्रम्हचर्य,अपरिग्रह | अहिंसा माने मार काट बंद लड़ाई झगड़ा सब ख़त्म होय |  नास्तिक, संत, निर्गुनिया सब  अहिंसा पर  जोर दिहिन रहै लेकिन आदमी अपन तिनुक स्वार्थ लिहे बैठ रहत हवै| अब तो रोजुइ हिंसा युद्ध म  बदलै लागि हवै| बड़े नेतवन केर अहंकार अउर  नासमझी ते न मालुम कतने युद्ध हुइ चुके हैं जिनमा  मरे वाले दुखिया गरीब मनई होत हवैं |इनका  दूसर सिद्धांत सत्य माने मनई साँचु बोलै,औ  ब्योहार सच्चा होय |झूठ फरेब  औ धोखाधड़ी न करै| तीसर सिद्धांत रहै अस्तेय माने चोरी न करै|चोरी चकारी तो सब धरमन मा गलतै बताई गवै है | ऊपर ते चाहै जेतना चमक दमक देखावे मुला  चोरी चकारी  ते मनई केर मन मलीन हुई जात हवै|अपने हक़ केर खाय वाले सदा सुखी रहत हवैं | चौथा सिद्धांत आय ब्रम्हचर्य माने संयम से रहना |जैनी साधू  वैदिक कर्मकांड के बिरोधी रहैं  |उनका ब्रम्हचर्य क मतलब योग संयम स्त्री का त्याग समझा जाय | पांचवा सिद्धांत आय अपरिग्रह माने अपने लिए सामान क संग्रह न करना | सादा जिनगी बिताना | 

वुइ तो ई सब नीकी बातै बताय के चले गए लेकिन उनके चेला चापर सब भुलाय दिहिन |उनकी कही एक्को बात जो मनई मान  ले तो आजौ वाहिका कल्यान हुइ जइहै|हमका लागत हवै कि अपन साबरमती वाले  महतमा  गांधी इनहे महावीर कि सिच्छा  अपनाए रहैं | दक्षिण अफरीका ते लौटे के बाद वुइ तो यही नियम के हिसाब ते अपन  बची  जिनगी सेट किहिन रहै, तो दुनिया के बहुत  बड़े नेता बनिगे |अपने देस के तो बापू कहे जात अहै |


  जैन धरम म  सुर्ज उवै के बादिही कुछ खावा जात अहै  अउर सुर्ज अस्त होये के बाद कुच्छौ खाना पीना मना है | पुराने जमाने म जादातर  सब खेतिहर  मनई यहे हिसाब ते जिनगी जियत रहैं |अब बिजली आयेके बाद पछिली सदी ते बहुत बदलाव भये| सब  मनचाही  तरक्की किहिन देसवा आजाद भवा तो सब आजादी केर मजा लूटै लगे |मसीनै आयीं तो  मनई के हाथे ते काम छूटत चला गवा | जब हाथेम काम न होई तो भूखे पेट चोरी,हिंसा,संग्रह केर भाव आये जाई |

तमाम जैनी अब ई सब नियम भुलाय के पाखंडी बनिगे, कर्मकांड करे लाग |उनके मंदिर तो  पहिलेहे बनि गे रहैं | लेकिन अल्पसंख्यक वाला फ़ायदा जो कहूं  देखात हवै तो वाहिका लपकि लेत हवैं |  भगवान महावीर के जन्म दिन पर सरकारी छुट्टी होत  हवै | जो ई जैनी समाज के मनई अपन सिद्धांत ठीक से अपनाय  लेतीं  तो हमरे समाज  के लिए  यह आदर्स ब्यवस्था हुइ  जातै |

 भगवान वर्धमान महावीर क यादि करेक मतलब आय कि उनकी सीख पर चला जाय,लेकिन यू बहुत कठिन काम आय | बाकी  उनकी शोभायात्रा निकारी जाई, मूरत तरह तरह के जल और सुगधित तेल से नहवाई जाई , मंदिर सजाये जैहैं ,गरीबन क दान दीन  जाई | बस सबै कैती  नकली देखावा रहिगा हवै| देखावा बड़ी बीमारी आय,कोरोना वायरस कि तना सबकी  देही म घुसी हवै| अब ऊ कब्बौ न निकरी |जय जिनेन्द्र  |










41.चैती मेला 

 

 हमरी अवधी परम्परा म चैत पुन्नमासी क बहुत महातम अहै |येहिका चैती अंजोरिया अउर  चैती पूर्णिमा कहा जात अहै | फसल घर का आवत रहै तो गाँव जवार का मनई मेहेरुआ बहुत खुस होता रहै| जब खुसहाली होत हवै तो भजन कीर्तन सब यादि आवत अहै |अबहिनो गांवन  म  सत्यनारायण कि कथा होय या फिर  सर्वमंगला मैया के गीत, रामकथा   के गीत, बिहाव के गीत अउर राधा किसन के प्रेमगीत, माने महारास के गीत गाये जात अहै | खेती किसानी के गीत - अपन जाति बिरादरी के तरह तरह के गीत सब गावन कि चौपाल मा गाये जात रहैं |

बचपने मा बक्सीताल के पास कठवारा गाँव के नेरे चंदिका  मैया के दुआरे मेला लागत रहै | चंदिकन क मेला देखै की बहुत होड़ होत रहै। चंदिका  माता के मंदिर पर चैती पुन्न्मासी तक यू  मेला लागत रहै। चंदिका  माता केर स्थान जादातर नद्दी के किनारे होत हवै|सरजू,गंगा,गोमती जैसी सदानीरा नद्दी के किनारे देबी केर मंदिर होत रहै तो लरिकन के मूड़न  छेदन सब संस्कार देबी के जिम्मे होत रहै |मनई घर ते हेलुवा ,पंजीरी,घुघुरी, पूरी तरकारी परसाद बनाय के लै जात रहै अउर लरिकन के मूड़न छेदन के बादि देबी क आसीस लेत रहै आज के हिसाब ते समझो तो  पिकनिक मनवात रहै | दुनिया भरेके दुकानदार औ बिसाती मेला म अपन दुकान लगावत रहैं। चैती तो मनई महेरिया के प्रेम केर परब माना जात अहै | किसनऊ खुस तो महेरिया लरिकन  का मन चाहा सामान यही मेला ते देवाय देत रहैं | महेरिया अपने मन का सामान खरीद लेती रहैं | चैत अंजोरिया केर बहुत महिमा अहै |अवधी, ब्रज, भोजपुरी सब लोकभासा म चैता चैती के लोक गीत भरे परे हैं | चैती गीत केर आनन्द लीन  जाय --

चाँदनी चितवा चुरावे हो रामा, चैत के रतिया

मधु ऋतु मधुर-मधुर रस घोलै, मधुर पवन अलसावे हो रामा, चैत के रतिया।” चैत कि रातिया बहुतै मादक मानी जात अहै |अवधी समाज ते जुड़े कबि चैत महिना  केर महातम जानत रहैं  | त्रिलोचन शास्त्री तो “चैती” नाम ते कबिता कि किताबै  लिखिन रहै |  “चैत की चंदनिया” सीर्सक ते नए कबि अरुण कुमार निगम केर संकलन आवा हवै- सरसों सी,सुन्दर सी,/चैत की चंदनिया| मनभाये बैरी सी,अमुआ की कैरी सी|

42. जनता हारी 

मिसिर भारतेन्दु

" जीते फिर दलाल बैपारी/या सरकार बनी हत्यारी/यहर वहर सब  जनता हारी।" सरजू किनारे समसान तीर अघोरी बाबा सांस ले खातिर  पीपर तरे मिले।हम पूछा बाबा ई जो चुनाव भये हैं उनके बारे मे का कहना है ?वुइ बोले- "भैया सबतन जनता अपन जिनगी हारि गय।" हम पूछा- 'हर दिन हजारन मौतन क जिम्मेदार को हवै?' वुइ बोले- ' अउर को होई,या सरकारै हत्यारी हवै।' आगे बोले- “तुमरे हर सवाल केर जवाब देब, पहिले  तनी गिनिके आव कि केतनी चिता जलि रही हैं केतनी लहास जलाई जाय के इंतिजार म धरी हवैं । फिर कबरिस्तान वार चलेव सब तन लहासन के अम्बार लगे हवैं उनका गिन पायेव तो गिनेव ।या सरकार हत्यारी आय ।जब घटिया नेता चुनाव  जीत जाति हैं तो जनता हारि जात अहै। अब  जनतंत्र कि गठरिया म खुसबू कम चिराइंध जादा भरी देखात अहै । अब अधमरी  जनता तो गायब हुइ रही है,बस दलाल औ बैपारी देखात अहैं ।कुछ किसान नेता अबहिनौ खफा हवैं । 

सरकार बहादुर चुनाव जीते के गुर सीख गए हवैं । मेहरुअन क गैस के सिलेंडर ,सौचालय,नौजवानन क  सस्ता कर्ज, गरीबन क  मुफत आनाज ,मुफ्त क पानी, बिजली बिल पर छूट ,किसानन क कर्ज माफी ई कुछ जरूरी तरकीब आंय जिनते नाकारा सरकार चुनाव जीत जात अहै । इनके साथ जो कहूं श्रीराम क नारा जुड़ि जाय, चंडी पाठ या फिर याअली .. हुइ जाय तो फिर का कहना। असल म जनता तो कबो जीतत नहीं जीतत तो यही तन के मुद्दा हैं। कबो बिरादरी ,कबो धरम , के नाम ते मुफ्त बांटा जाय वाला पैसा  सब सब रिसवत आय । ई सब मुफ्त बांटा जाय वाला पैसा आवत तो हमरेहे  सबके टैक्स से है ।नेतवन के तोंद चिकनात जात अहैं,उनकी दाढ़ी बढ़ि आयी ।केहू के बैंक म पैसा भरा जात अहै ।कोऊ नोट गिनै कि मसीन लैके  वसूली करत हवै। ई सब नेता टैक्स दे वाले मध्यवर्ग कि घोड़इया चढ़े हवैं।लेकिन अब तो पीठी पर सवार  नेता औ अधिकारी मनई कि सांस बंद कइ दिहिन।डॉक्टर छटपटाय रहे हवैं ,मरीज मर रहे हैं।नेतवन पर हत्यारी  सवार हवै | कुछ दलाल दवाई कि कालाबजारी म लगे हवैं। आम मनई पर दबाव अस कि मानौ व्यवस्था सबकी घोड़इया पर चढ़ी आय  लेकिन जब  निरबंसिया राजा ते पाला परत हवै तो परजा बिलबिलाय जात अहै।अब मौत के अलावा,वहिके तीर कौनो विकल्प नहीं बचा।चुनावी गिद्ध चुनाव जीति जांय तब्बो जनता हार जाई।वुइ हार जांय तब्बो कुछ नवा इतिहास न बनिहै। इतिहास तो यहै बनिगा हवै की अबकी चुनाव के बीच म सबते जादा मनइन कि मौत भई  है। कोरोना अतना दबाये है कि अब साँस अटकि गय हवै।

पांच राज्यन के चुनाव अउर अपने उत्तर प्रदेश म परधानी केर चुनाव  ई भीषण आपदा के टेम पर भये । चुनाव आयोग के अधिकारी जब चुनाव कि सूचना जारी किहेनि रहै तब महाबली कोरोना चुपान बैठ रहै लेकिन जस जस चुनाव क  घमासान बढ़ा तमाम बदफरूसी होय लाग तस तस महाबली कोरोना कि ताकत बढ़त चली गय । ई नेतवा समझत रहें कि वहे सबते बड़े बहादुर आयं , मुला महाबली कोरोना बताय दिहिन कि वुनके तीर सबते बड़ी ताकत हवै।कैयो विधायक औ परधानी के उम्मीदवार तो महाबली के चंगुल म आय गए औ अपन जान गंवाय दिहिन । सैकरन चुनाव करावे वाले सरकारी कर्मचारी  दुखिया मरि खपि गए ।न मालुम केतने साहित्यकार, कलाकार ,लेखक बिदा हुइ गए,उनका सबका  श्रद्धांजली न दै मिली  । केहू क आक्सीजन न मिली तो केहू क बेड न नसीब  भवा । सब सहरन म लहासन के ढेर लागि गए । गांवन कि खबर बतावै वाला कोऊ नहीं बचा ।  बिहार कि तना अपने उत्तरप्रदेस म परधानी के चुनाव तो आगे बढाए जाय सकत रहें । लेकिन जब सरकार पर हत्यारी सवार होत हवै तो वाहिका कुच्छौ सुझात नहीं । दिल्ली, बंबई औ लखनऊ केर तो बहुतै बुरा हाल भवा। मनई कीट पतींगा तना छटपटाय के  टपाटप मर रहा है ।अस दुरदिन भगवान केहुक न देखावै ।अब सब नेता चुनावी समर ते लौटे हैं,चाहै जेत्ता लॉकडाउन लगाओ, मुला कोरोना सबियों लड़ाई जीत चुका है ।चुनाव म चाहै जो  जीत जाय ।जनता तो हारि गय ।यू सब कहिके अघोरी बाबा बेदम हुइकै गिर परे।हमहू उनका नमन कीन मास्क ठीक ते कसा औ घर की राह लीन।

43.  सोनार बांग्ला के कवि 

“विपदा से मेरी रक्षा करना/मेरी यह प्रार्थना नहीं,/विपदा से मैं डरूँ नहीं, इतना ही करना”-गीतांजलि।

पत्नी, लरिका, बड़े भाई जब सब आपदा म काल के गाल म चले गए तब बिस्वकबि प्रार्थना करत अहै कि- उनका  जिउ  निडर हुइ जाय ताकि बिपदा केर सामना कइ मिलै।कोऊ कबीन्द्र कहत अहै।कोऊ गुरुदेव कहत हवै।रबिन्द्रनाथ टैगोर कोलकाता के  ठाकुरबाड़ी म बड़े  परसिद्ध घराने मा सात मई 1861 क पैदा भे रहैं ।सुरुआती पढाई अंगरेजी इसकूल म भय। बादि म इंगलैंड वकालत पढै गए मुला बिना पढ़ाई पूरी किहे लौटि आये । हिंया अपने देस म संगीत औ नाटक मंडली बनायेन ।साहित्य संगीत औ सिच्छा के क्षेत्र  म उनका काम बहुतै सराहनीय रहै । उनकी महानता जानि के गांधी जी उनका सबते पहिले  गुरुदेव कहिन रहै ।गांधी जी जहां राष्ट्रवादी बिचार कि बात करत अहैं हुवे रबिन्द्र  जी इंसानियत क सबते ऊपर रखि के चलत हवैं। वुइ प्राकृतिक जीवन दरसन ते बहुत प्रभावित रहैं। सन 1913 म “गीतांजलि” पर उनका नोबल पुरस्कार मिला रहै ।गुलामी के दिनन म यह अपने देस के सम्मान कि बड़ी घटना रहै ।रबिन्द्र बाबू प्रकृति के मनोहारी वातावरण म सन 1921 म शान्तिनिकेतन म विश्वभारती  कि स्थापना किहिन रहै ।यू विश्वविद्यालय पढाई लिखाई बदि आजौ मसहूर हवै।हिन्दी के तमाम कबि उनकी कबिताई ते बहुत कुछ सीखिन  रहै ।वुइ  साहित्य संगीत औ चित्रकला के केंद्र बनि गे रहें ।उनकी बातन क गांधी,नेहरू के अलावा अंगरेजन पर  बहुत प्रभाव होत रहै ।असल म वुइ सोनार बांग्ला केर सपन देखत रहै। उनकी नकल म हिन्दी के कबि लेखक भारत क सोने कि चिरैया साबित करे लगे ।

अस्सी साल तीन महीना की उमिर पाय के  सात अगस्त 1941 म उनका  निधन हुइगा। लेकिन वुइ  जो अपने देस समाज क दै गये वहिका कोऊ मोल न आंकि पाई।तब कोलकाता  कि  रौनक कुछ अउर रही । बंगला समाज तबते कइयो दफा बंटा औ कइयो दफा बिथरा हवै।उनके  जमाने म तो अंग्रेज बहादुर कोलकाता क अपन राजधानी बनाए रहे।वुइ सब हुवैं ते कम्पनी राज चलावत रहैं। ऊ बखत बहुत नीक रहा होई।तुम तो अंग्रेजी,संस्कीरत,हिंदी सब भासा के विदुआन रहौ।बंगला तो तुमार मातृभासा रही।तुमार लिखी “गीतांजलि” तो दुनिया भरेम मसहूर हवै।वहिके अलावा तमाम किहानी,उपन्यास  बंगला औ अंगरेजी भासा म  लिखिन रहै ।सन 1913  म गीतांजलि पर उनका पहिला  नोबल पुरस्कार मिला रहै ।वहिके बाद ते उनके कारन हिन्दुस्तान केर डंका बाजत आय ।उनकी लिखी दुइ कबिता आज  दुइ देसन के राष्ट्रगान बनी हवै- पहिल तो “जन गण मन” अपने देस का राष्ट्रगान बनी  दूसर “आमार सोनार बांग्ला ” बंगलादेस क राष्ट्रगान बनी ।...तुमरी कबिताई क महातम पूरी दुनिया जानत  अहै। उनका "एकला चलो" गीत तो सबका राह देखावत हवै।जब कोऊ साथ न होय,कोऊ उपाय न होय तो अकेले चलौ।सोनार बांग्ला के असली कबि तो कबिन्द्र रबिन्द्र रहैं ।

कविता,संगीत,नाटक औ जीवन कीमती अनुभव ते बढ़ी  तुमार दाढ़ी तुमरे ऊपर बहुतै नीकि लागत रहै । तुमार तस्बीर देख के आजौ जिउ जुड़ाय जात अहै, मन मा  सांति समाय  जात अहै ।तुम तो वहि जमाने म शांतिपूर्वक ,शान्तिनिकेतन म विश्वभारती  बनवाये रहौ । लेकिन अब हमरे गाँव के परधान अपन दाढ़ी बढाए घूमत हवैं ,उनके लगुआ भगुआ  परचार किहे हैं कि उनकी  दाढ़ी बढाए ते गाँव कि तरक्की होई । कुछ चंट चमचई चतुर कहत अहैं कि प्रधान जी गुरुदेव रबिन्द्रनाथ टैगोर  मालूम होत हवैं । हम दुनहू  कि तस्बीर यक्कै तीर धइ के देखेन  तो हमका कुछ अउर  देखाई  दीन ।अब का कही दाढ़ी बढाए ते रबिन्द्रनाथ टैगोर जस समझदारी थोरे आय जाई ।गुरुदेव कि एक सौ साठवीं जयन्ती पर उनकी सुधि का परनाम।

44.नमो बुद्धाय

भगवान गौतमबुद्ध पूरी दुनिया म अपने ज्ञान कि उजेरिया  फैलाइन रहैं ।कहा जात अहै कि ओनका  जन्म दुई हजार  पांच सौ तिरेसठ साल पहले बैसाख पुन्नमासी क कपिलवस्तु म भवा रहै।राजकुमार  सिद्धार्थ लरिकईं ते अहिंसा के समर्थक रहैं । जब देवदत्त हंस केर शिकार किहिस तो वुइ बाग़ ते हंस क उठाय लाये, देहीं ते  तीर निकारिन औ सेवा किहिन। देवदत्त जब कहेसि हमार हंस हमका देव हम सिकार कीन  है,  तो सिद्धार्थ कहेनि हम येहिका बचाये हन, हम न देबै ।राजा के सामने बात गय तो राजा शुद्धोधन फैसला किहिन कि मारे वाले ते बचावै वाले केर हक जादा बड़ा होत हवै।सबका सांति केर उपदेस दे वाले भगवान बुद्ध क आजु पूरी दुनिया याद करत अहै।उनकी आखिन ते करुणा बरसत हवै।लेकिन पूरी दुनिया ते लड़ाई केर माहौल ख़तम होय तो कुछ बात बनै ।

उनके धरम म कौनिव ऊंच नीच वाली जाति कि किहानी नही जुड़ी हवै। येही लिए दुनिया के करोड़न  मनई उनके अनुयायी बनिगे। दुनिया भरेम करीबन पचास साठ  करोड़ ते जादा  मनई बुद्ध भगवान के अनुयायी हवैं ।जापान,चीन,थाईलैंड,कम्बोडिया श्रीलंका जस बीस, बाईस  देश तो एस हवैं जिनमा बुद्धधर्म कि प्रमुखता हवै। हालांकि अब यहू  धरम  म पाखण्ड घुसि आवा है।हीनयान, महायान दुइ खेमा पहिलेहे बनिगे रहैं,मुला ई सनातनी पुरोहितवादी  जैस धरम  क धंधा  नहीं बनायिन।दुनिया म करीबन सौ सवाव सौ अस  देश हवैं जिनामा  बुद्ध के तमाम अनुयायी  रहत हवैं । बुद्ध धर्म के चक्रवर्ती सम्राट कहे जात अहैं, हिंया ते  निकर के पूरी दुनिया म सांति के साथ बौद्धमत  फैला । येहिका तलवार तोप के सहारे स्थापित नही कीन गवा ।बाबा साहेब डॉ.अम्बेडकर पुरोहितवादी  नेतवन ते बचे खातिर आखिर म बौद्ध धर्म अपनाय  लिहिन रहै ।

दुनिया के तमाम पिछड़े, दलित,हिन्दू,ईसाई,पारसी,मुसलमान भगवान बुद्ध कि शरण म गए।भगवान बुद्ध सबका अपनी सहज मुस्कान ते अपनी तरफ खैंच लेत अहैं,उनकी आखिन ते करुणा बरसत है, दुःख केर समाधान आपुइ सूझै लागत हवै।

भगवान बुद्ध नास्तिक रहैं मुला  सनातनी उनका  विष्णु केर अवतार कहिन रहै ।राजकुमार सिद्धार्थ  अपन राजमहल छोडि के  सब सुख त्याग दिहिन रहै ।बरसन कि कठिन तपस्या के बाद उनका बोधिवृक्ष के नीचे ज्ञान मिला।वुइ सबका सत्य प्रेम औ अहिंसा केर पाठ पढ़ाइन ।तमाम भिक्षु उनके अनुयायी बने ।घूम घूम के समाज क जागरूक किहिन। 'धम्मपद’ म वुइ कहिन रहै- ‘सब काम अपने मन से  सोंच बिचार के करो,मन ही सर्वश्रेष्ठ है,बाकी सब क्षणिक  सपना है।’ जौने जंगलं म वुइ घूमत रहैं वहिका अब बिहार कहा जात अहै ।वुइ मानत रहैं कि ई दुनिया म केवल चार सत्य हवैं- 1.दुःख ,2.दुःख केर कारण,3.वाहिका निवारण,4.निवारण केर  उपाय । माने उपाय खोजे ते दुःख दूर होई, पाखण्ड ते नहीं ।उनकी यह बिज्ञान जो समझ पावत हवै वहु उनकी  सरन म आय जात अहै ।

बुद्ध केर सब साहित्य तो पाली भासा म लिखा गा रहै ।महाकबि अश्वघोष संस्कीरत  म ‘बुद्धचरित महाकाव्य’ लिखिन रहै।वहिमा अट्ठाईस सर्ग हैं ।वाहिका तमाम बिदेसी भासा म अनुवाद भवा ।राहुल सांकृत्यायन जी तो चीन ते ढेरन  बौद्ध साहित्य लाये रहैं ।दुनिया कि सब भाषा म बुद्ध चरित गाथा मिलत हवै।अपन रायबरेली निवासी कालकाप्रसाद लामा जी सन 1915 म ‘बुद्धबिलास’ शीर्षक ते अवधी भासा म प्रबंधकाब्य लिखिन रहै । लेकिन वहु प्रकाशित न हुइ पावा ।अवधी के इतिहासकार श्यामसुन्दर मिश्र  'मधुप' लिखत अहै कि- ‘यह ग्रन्थ तिलोई के श्री त्रिभुवन प्रसाद त्रिपाठी के पास सुरक्षित है।येहिकी  अवधी बहुतै  सरल है- कपिलवस्तु वर्णन कि चौपाई देखी जाय -'रोहिन उत्तर तट सुभ पावन/कपिलवस्तु यक नगर सुहावन ।जंह से देखि परत बड़ि छोटी /हिम से ढंकी हिमालय चोटी।' ई के साथै मिल्कीपुर अयोध्या वाले दादा खुसीराम द्विवेदी दिव्य ‘श्रीगौतमबुद्ध चरित’ महाकाव्य लिखिन हवै।येहिमा अठारह सर्ग हैं यहौ अवधी म लिखा गवा है ।अवधी समाज म भगवान बुद्ध कि धमक हजारन साल ते आजौ तक बनी हवै। बोधिसत्व सबका कल्याण करैं ,नमो बुद्धाय । 

45. नीके दिन आइहैं 

एकै कुँवा पंच पनिहारी/एकै लेजु भरै नौ नारी/फटि गया कुँआ विनसि गई बारी/विलग गई पाँचों पनिहारी।-कबीर ।मतलब कि एक आतमा रूपी  कुएँ पर पांच पनिहारी(पञ्च तत्व) हैं । एक रस्सी ते  नौ इन्द्री रूपी नारी पानी  भरती  रही ।दसवीं  इंद्री रूपी  नारी साथ न रहै वहो साथ होतै  तो कुछ बात अउर होतै संतुलन बना रहतै । कुँआ फटि गवा  औ बारी माने खेत बिलाय  गवा । पाँचों पनिहारी माने पांचो तत्व अलग-अलग चले गए। कबीरदास उलटबांसी लिखत रहैं ।हिन्दी के बिदुआन यहिका रहस्यवाद कहत  अहैं । उनका रहस्यवाद तो मनई समझे कि कोसिस करत अहै ।लेकिन यू जो कोरोना केर रहस्यवाद पसरि  गवा अहै वाहिका कस समझा जाई ? अब सब तन लहासन के अम्बार लगे हवैं ।सबकी बारी माने जीवन लीला बिनसी देखात हवै।कबीर कहिन- "दुखिया दास कबीर है जागै और रोवै।" माने दुख ते बचा चाहत हौ तो सोवत रहौ।पहिले कहूँ याक दुइ लावारिस लहास मिलत रहै। अब तो सैकड़न लहास समसान के आसपास बिथरी परी हवैं, कौनिव अधजली, कौनिव बुतान, कौनिव पर चील कौआ जुटियान हवैं । येहि तना के दृश्य आखिर कब तके देखाई देहैं मालुम नहीं ।

  गाँवन म तो न कोई जांच होत हवै, न कोई अस्पताल हवै। खाँसी बोखार आवा दम घुटि गवा।ऑक्सीजन औ इंजेक्शन तो बड़े बड़ेंन  क  नहीं मिल पावा  गांवन म  कहाँ जुरिहै?अब तौ गंगा गन्धाय गयी हैं|मुक्ति कि कामना म  उत्तराखंड ते ,कानपुर , उन्नाव औ  बिहार तके  गंगा के किनारे तमाम लावारिस लहासै परी मिली हवैं।पता नहीं कि  अस्पताल वाले इनका  हिंया धइ  गे,कि  कुछ मनई अपनेहे  घर के मुर्दा ते पिंड छोडावै बदि हिंया फैंकि के चले गए। अब तो चिता कि लकड़ी नहीं बची,कब्र खातिर धरती नहीं बची ।पत्रकार कहाँ तक मौत कि  खबर लिखैं कहाँ उनहू कि जिन्दगी दांव पर लागि हवै। रोहित सरदाना ,शेष नारायण सिंह जस न मालूम कतने पत्रकार यही दुसरी लहर म बिलाय गए ।

मुला कुछ सियार भेड़हा टाइप मनई तो यही अकाल म अपन धंधा खोजि  लिहिन हवै। दसगुने दाम पर  रेमडेसिवीर  बेंचि रहे हैं,कुछ नकली इंजेक्सन बनाय के बेंचि  लिहिन।कुछ ऑक्सीजन के सिलेंडर बेंचि के नोट छापि रहे हैं।कोऊ मुर्दन ते कफ़न उतार के बेंचे लेत अहै।कुछ अस्पताल के  कर्मचारी आपदा म अपन अवसर खोजि के कमाई कै रहे हवैं। अब कतने मनई रोज मर रहे हैं, अंदाज लगाना कठिन हवै।नाव लिखत लिखत मौत केर प्रमाणपत्र बनावै वालेन के हांथ पिराय लाग हवैं।

अब महाबली कोरोना सहरन ते आगे बढ़िकै गांवन म दाखिल हुइ  गए हवैं।गांवन म न तो अस्पताल देखात अहैं न कहूं डाकटर औ  नर्स देखे क मिलत हवैं ।समस्या बिकट हवै,अब सब जने अपने हिसाब ते अपन ब्यवस्था करे म लगे हवैं ।सरकार कहाँ तक ब्यवस्था करै?कोरोना क टीका बनावै, उनकी खरीद करै, फिर अस्पताल तक पहुंचावै,आक्सीजन केर इन्तिजाम करै कि लहास गिनै ? अघोरी बाबा कहत अहै - “सब धीरे धीरे आपुइ ठीक होई ।जो मरिगा ऊ आजाद भवा । न अंतिम संस्कार करै कि जरूरत हवै न दसवां तेरही, न पंडित बोलावैक जरूरी है न दान दच्छिना न फातिया पढे  कि दरकार । अब तो गाँव, सहर सब  समसान बनिगे हवैं।”

लेकिन ई अकाल म कुछ डाकटर औ अस्पताल के कर्मचारी बहुतै  ईमानदारी ते अपन फर्ज निभाय रहे हवैं।भूखे पियासे रहिके बीमारन कि सेवा कै रहे हवैं ।मुला सब भरम टूटि गए ,सबके अंदाज फेल हुइ गए ।नौकरी बिलाय गयीं ,भुखमरी बढ़ी हवै। देर ते जागी  सरकार अब कोसिस कइ रही है । बस सब जने हिम्मत बनाए रहेव। अब हमरे हाथेम तो कुछो है नहीं हमहू  बस रहीम क दोहा दोहराइत हन - रहिमन चुप हुइ बैठिये, देखि दिनन के फेर। जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर।

46. आम  दसहरी

 दुनिया कि तमाम भासा औ साहित्य म आम कि बहुत चर्चा कीन गय है। लखनऊ म नवाबी जमाने ते आम कि नुमाइस लागत रही।अंग्रेजन के जमाने म यह रीत चलत रही।अबहिनो सरकार आम महोत्सव केर आयोजन करत हवै। बाल्मीकि होंय चहै कालिदास जायसी तुलसी सबै आम पर कबिताई किहिन रहै । मिर्ज़ाग़ालिब क आम बहुतै  पसंद रहैं । उनका  आम के आगे गन्ने की मिठास कम लागत रही । कहूं लिखिन रहै- ‘मुझसे पूछो तुम्हें ख़बर क्या है/आम के आगे नेशकर क्या है।’ याक  दिन  मिर्जा साहब अपने दोस्तन के साथ  बैठ  आम खात रहैं  कि तब्बै  वहर ते एकु  गदहा निकसा  वहु रस्ते पर पड़े आम सूंघेसि औ  बिना खाए छोड़ के चला गवा । यू  देखके मिर्ज़ा  के दोस्त पूछेसि  ‘मियां, आम में ऐसा क्या है? ये तो गधे भी नहीं खाते।’ मिर्ज़ा साहब आम के प्रेमी रहैं  हाज़िर जवाब तो रहबै कीन  बोले ‘मियां, जो गधे हैं वही आम नहीं खाते|’

आम के बहुत किस्सा मिलत अहैं ।अवधी म  तमाम लोकगीत औ कबिताई आम पर लिखी गय है ।अपन तिरलोचन शास्त्री तो ‘अमोला’ किताबै  लिखिन रहै एकु बरवै देखा जाय- ‘भइ सरसई निहरतइ मा टिकोरान / अमवाँ बिजुरियान झूले जरियान।’ माने बौर देखते देखत टिकोरिया बन जात अहै ,टिकोरिया म बिजुली परि जात अहै फिर जस जस अमिया डार पर झूलत अहै वहिकी जाली पोढाय जात अहै । दुइ लाइन मा आम कि उत्पत्ति औ बिकास  कि कथा तिरलोचन जस बिदुआन कबि लिखि सकत अहै । 

बचपने म आम केर मौसम बहुत मस्त होत रहै । गर्मी के दिन  बगिया म सोवै खाय बतकही औ मुहब्बत करे वालेन केर ठीहा होत रहै।मुला अब वैसी देसी बागिया तो नहीं रहीं जिनमा छुपम छुपाई खेला जात रहै ,झुलुवा झूला जात रहै ,सुरबग्घी और तास खेले जात रहैं।लेकिन  आम केर पना, गलका, चटनी,अमावट  कि बहार अबहिनो  यही मौसम म आवत अहै । बहुत दिन भे कौनिव बाग कैती जाब न भवा। अब सहरुआ बीमारी ते गाँवन म किसानन क उछाह सेराय गवा है । मनई हलकान है,अम्बिया फरेंदा को खोजै? सुना रहै अबतिक दसहरी, लँगड़ा औ चौसा कि फसल बहुत बढ़िया भई है मुला यू दहिजरा कोरोना सब मटियामेट कै दिहिस। जब किसान अपन फसल मंडी तके न पहुँचाय सकी तो आम अदमी तके दसहरी कस पहुंची? बहुत दिन भये कागज़ी बकला वाला खुशबूदार उम्दा  दसहरी नहीं दीख परा। मलीहाबाद के आसपास कलमी आम कि बहुत किस्में पैदा कीनी गयीं ।एक दुइसौ  साल पुरान  दसहरी आमे केर बिरवा रहै पता नहीं कि वहु अब ई गाँव म बचा  है कि नहीं ।वह पुरनकी  दसहरी सब कलमन कि अजिया आही। मुगलकाल ते आम कि कलम लगावै कि परम्परा आगे बढी रहै ।लखनऊ के नवाब कलमी आम औ गुलाब के बहुतै सौखीन रहैं ।कलम गुलाब कि होय चहै आम कि होय,रंग औ खूशबू म नजाकत आय  जात अहै । भारत सरकार औ आम  के किसान मिलिकै सन  2010 म दसहरी क नाव  पेटेंट कराय लिहिन रहै।अब तो अपन लखनऊ कि दसहरी केर नाव पक्का हुइगा है मसहूरी तो दुनिया भरेम पहिलेहे ते  रहै ।

अबहीं लखनऊ वाली दसहरी दिल्ली म नही देखि मिली, तालाबंदी के कारन लखनऊ ते बाहर  दसहरी कि   बिक्री म कमी आयी हवै ।वाजिब दाम न मिले ते आम के किसान हैरान हैं ।कोरोना औ मंहगाई म  दसहरी केर स्वाद भुलाय न जाय ।लेकिन हरियाणा वाली  डांसर सपना जब थिरक के गावत अहै- ‘आम दसहरी देख के छोरे नियत बिगड़ गयी तेरी ।’ तो हम समझित अहै कि लखनौवा दसहरी कि महिमा अउर बढ़ी  है ।

47.फूफा फरेंद लैहैं

बचपने म मसल सुना रहै, ‘फूफा फरेंद लैहैं’ माने फर्जी उम्मीद लगाए रहौ। फूफा के फरेंद तो मानौ नेतवन के फर्जी वादा आय काहे ते नेता कि तना  फूफा केर भौकाल होत रहै ,गांवन म फूफा ते सब डेरात जरूर रहैं। फूफा दिक्क हुइ जांय तो मानो बुआ उनके संगै रिसाय जैहैं।इनका  देउता ते बढ़िके सनमान  चही,  यहे  सबते बड़े मान्य कहे जात हवैं। खाना पीना बिछौना सब तरह ते इनका आलीसान इन्तिजाम कीन जात अहै। मान्य खुस तो गांव के पट्टीदार औ बिरादरी वाले सांति ते बैठत रहैं।मान्य  नाखुस तो गाँव भरेम बेज्जती होत रही |ठेलुहा  मौज लेत रहैं, गांवन म  ठेलुहा बतकही ते तमाम खुराफात कीन  करत रहैं | जब  कोऊ गाँव केर बुजुर्ग ठेलुहन  क हड़काय दे तब्बै ठेलवाही बंद होत रही |  मान्यन म  जीजा क्यार दूसर नम्बर रहै पहिल तो फूफा केर भौकाल होत रहै | फूफा अकेले म जीजा क समझावा करत रहै कि अस करौ ,वस न करो | जीजा औ फूफा जब कामे काजे इकट्ठा होंय तो दुनहू मिलिके मान्य  वाला भौकाली  तम्बू तान देत रहें |एक्कै साथ उठे बैठे केर ब्यवस्था , एक्कै साथ खाना पानी कि ब्यवस्था उनका कमरा  अलग  होत रहै | कहैं - ‘कच्चा खाना न खाब,सरहज के हाथे क बना न खाब |’ जब छोटकऊ  कहेनि - ‘ठीक आय, हम गाँव के पुजारी दादा कि दुलहिन माने पंडिताइन भौजी क  बोलाए लाइत वुइ खाना बने देहैं |’ तो फिर फूफा  बुआ क बोलाय  के  उनते संदेस पठवत रहैं - ‘दच्छिना देवाय देव तो घर की मेहेरुवन के हाथे क बना खाय लेहैं | कहाँ  पंडिताइन भौजी कि तलास करत फिरिहौ ?

एक दफा बैलो दाई हमरे साथी  गंगाराम क कौनिव बात पर डांटेनि बोलीं- ‘तुमार फूफा फरेंद लैहैं का .. फर्जी उम्मीद न बांधो, बड़े फूफा के दुलारे आये।' हम समझ न पायेन कि वहिके फूफा कहाँ ते फरेंद लैहैं।फूफा  अउर  कुछ काहे न लैहैं फरेंद काहे ,अनार ,सरीफा ,दसहरी,पेड़ा,कलाकंद यू सब काहे न लैहैं ? तब्बै बैलो दाई ते पूछेकि हिम्मत न परी । बस अतना समझ पायेन  कि फूफा केर संबंध  फरेंदे ते जरूर हवै,जामुन ते नहीं। जामुन तनी कम फूला होत अहै, वहिकी गुठली बड़ी होत अहै मुला फरेंद  बड़ा केर  होत अहै वहिकी गुठली छोटि कि औ गूदा  जादा  होत अहै।फरेंद तो हमहुक बहुत नीक लागत अहै।घर के हाता म फरेंदे केर बिरवा लाग रहै तो मिनट भरेम  वहि पर मन्न दे चढ़ि जाइत रहै ।वहिके करिया करिया फरेंद बहुत मीठ होत रहैं ।जबान बैजनी हुइ जात रही, याक दफा फरेंदे पर बरैया हमका  फारि  खाएन रहै तो बिरवा ते पतरकी डार लैके धरती पर गिरेन रहै।दुइ तीन दिन हरदी वाला दूध पियेन सब चोट उड़नछू हुइगै। करिया फरेंद, हरियर पत्ता, नीला असमान, पीला बरैयन क छत्ता जो बिरवा पर चढ़ा नाय वू का जानै गाँव कि लुनाई ।

का बताई जब सत्यनारायण कि कथा होत रही तो  पंजीरी माने सत्यनारायण भगवान क ख़ास परसाद जरूर बनत रहै।वहि टेम जो कहूं  फूफा  आय जांय तो मुरहंट लरिकवा मुंह मा पंजीरी भरिके फूफा के मुंह पर फूफा ..फूफा कहै लागैं । ई सब पंजीरी खांय कम, फूफा पर पंजीरी फूंकै म जादा मगन  हुइ जांय ।फूफा के ऊपर पंजीरी फैलि जाय तो वुइ दौरावें गरियावें कौनो पकरे मिलि जाय तो वहिकी कुटाई हुइ जाय मुला मुरहट लौंडे बाज न आवें । जो बूढ़ समझदार फूफा होंय तो लरिकन कि मुराही हंसिके टाल जांय ।लरिकई केर  वहु सुख तो अब सपनु हुइगा । अब तो दिल्ली म  गरबैठा जामुन बिकात अहै ,फरेंद तो बरसन ते कहूं न देखि परा मन मा फूले फरेंद कि सुधि आवत अहै ।अब तो सहरन म  वस गाँव जवार वाले  पुरनिहा फूफा  बिलाय गए हैं ।

48. टीका न लगवैबे

अब गाँवन म  टीका लगावै बदि मेहनत कीन जाय रही है। जी नीके ककहरा न सीख पाए ओनका टीका के फायदा बताए जाय रहे हैं। ई सब बूढ़ तोता सुनत तो सबकुछ  हैं मुला जब टीका लगावै कि बेरिया आवत है तो भागि जात अहैं। बहाना बनावै लागत अहैं।कोऊ कही हम बेमार हन।कोऊ कही हमका कोरोना नहीं भवा तो काहे सुई लगवाई।मेहरुअन तीर अउर बढ़िया बहाना  कि हमरे पेट म दर्द है,कितो आज हम एकादसी बरते हन, हम टीका न लगवैबे।हम टीका लगवैब तो बांह सूज जाई फिर घर की टहल को करी।समस्या बिकट आय का कीन जाय कुच्छो सुझात नहीं।एक जने कहिन हम  मंजूर मनई कोरोना हमार का बिगारी।बड़कऊ दारू कि बोतल देखाय के बोले हमरे लगे कोरोना कि दवाई हवै। होशंगाबाद के बिधायक तो नई सुरुवात किहिन वुइ अपने इलाके के परधान बोलाय के मुनादी कराय दिहिन कि जउने गांव के कुल मनई पहिले टीका लगवैहैं वहि गांव के बिकास खातिर दस लाख रुपया इनाम मिली । हमरे अवध के मनई तनी ज्यादा डेरभुत हवैं।कोढ़ म खाज तना यहिमा कुछ राजनीतिव घुसी है । का बूढ़े, का जवान टीका न लगवैब कहि के घरते भाजि जात हैं। का गाँव, का सहर  मेहेरुआ तो अपने मंसवा कि राय ते चलती हैं।मुला गाँवन के बहुत मनई तो कोरोना के विषय म कुच्छो न जानत अहैं।

रामकली दाई जोगी मोदी क बहुत असीस देती रहैं,सरकारी जोजना कि बहुत तारीफ करती रहैं।मुला जबते  उनके गांव म टीका बदि नाम लिखे गये, वुइ लुकानी घुमती हैं।आंगनवाड़ी वाली बहन जी जब उनते पूछेनि तो  बोलीं - 'हम सुई न लगवैबे,जवानी म हमार  नसबंदी हुइ चुकी है। अब बुढ़ापा म सुई कि जरूरत नहीं है।दुइ चार साल जो जियैक होई बिना सुई के जियब। हम सुई लगवाय के न मरब। हमरी गुइयाँ नसीबन बीबी सुई लगवाय के मरि गयीं।दुइ दिन बोखार आवा फिर सांस अटकि गय। सुई न लगवैब बिटिया। जबरदस्ती न किहेव,अपने कागज म लिखि लेव रामकली गाँव म नहीं मिली। जस गेंदा भौजी कोरोना झरवाय के चंगी हुइ गयीं हमहू महादेव बाबा ते किरौना झरवाय लेबै। अपढ़ कुपढ़ मनइन क  सरकार समझाय रही है। सहरन जस समझदारी गाँवन म नहीं बनि पाई।यह असिच्छा तो जलमन कि काई तना हमरे गाँवन क जकड़े हवै। लेकिन कुछ सहरुवौ मनई टीका ते घबरात अहैं।एक पत्रकार मिले हम पूछा भैया  टीका लगवायेव  वुइ बोले टीका ते कोरोना न होयेकि गारंटी नहीं है।देखो एम्स वाले डाक्टर अग्रवाल टीका लगवाए के बदिव नहीं बचे। हम कहा करोड़न के टीका लग चुका है वुइ तो सब भले चंगे हैं।वुइ बोले- पता करो बाबा रामदेव टीका लगवाइन,टीका ते कुच्छो न होई, हमको कोरोना नहीं है,नमस्कार।अब उनते का कही? 

 कार्यकर्ता गाँव म मेहेरुअन क समझावै गय कहेसि -बेमारी ते बचना है जरूरी, टीका लगवाना है मजबूरी। सरकार तो मुफत म टीका लगवाय रही हवै, न कौनिव तकलीफ़ न कौनो झंझट।टीका लगते खन कम्पूटर ते अपने नाम केर सर्टिफिकेट लेव वहिमा प्रधानमंत्री कि फोटू लगी मिलिहै। कुंती फूफू बोली - बिटिया  हमका लम्बी दाढ़ी वाले मनई नहीं सोहात ।संत होंय, नेता होंय, चहै महातमा सब ठगी करत अहैं।बहिनी हम टीका जरूर लगवैबा मुला फोटू वाला कागज़ हमका न चही।कार्यकर्ता समझदार रही कहेसि ठीक है फूफू तुम कागज न लिहेव।मुला काल्हि चलो सुई लगवाय लेव।वा बोली सब जने ध्यान राखेव -मास्क लगाए रहेव,दूरी बनाए रहेव लपट चपट न किहेव,या बड़ी जालिम बीमारी हवै।टीका लगवाए ते कौनिव कमजोरी नहीं होत अहै।हमका देखो हमरे वुइ अउर हमरे सास ससुर सब टीका लगवाय चुके हैं,सब भले चंगे हवैं ।

न पूजा ते जाई न नमाज ते जाई,कोरोना ते सबका टीका बचाई। नारा गावत भये कार्यकर्ता चली गय ।बीच म टीका की कमी हुइगै रहै मुला अब सुना हवै की 21 जून ते सबका टीका मिली सब जने अपनी वसरी पर टीका जरूर लगवायेव ।सब कामधंधा बिलाय गवा,लाखन नौजवान बेकार हुइगे। सब जने यू जान लेव जो टीका ते भागी वहिकी जिनगी खतरे म है।तो भैया सब जने टीका लगवाओ,कोरोना भगाओ।

49. महाकवि विश्वनाथ पाठक 

अयोध्या म जन्मे अवधी के बड़े कबि बिस्वनाथ पाठक जी संस्कीरत के शिक्षक  रहैं।इनका जनम24 जुलाई सन 1931मा फैजाबाद के पठखौली  गाँव मा  भवा रहै। इनके  पिता केर नाम  रामप्रताप पाठक रहै । वुइ  फैजाबाद सहर के मोदहा नाव कै मोहल्ला मा रहत रहैं। सन 2010 म उनका अवधी भासा केर सबते बड़ा साहित्य अकादमी सम्मान मिला रहै।'सर्वमङ्गला' औ 'घर कै कथा'  उनकी अवधी कबिताई केरी बहुत जरूरी किताबें छपी रहैं। पाठक जी अपभ्रंश, पाली औ संस्कीरत के बड़े विदुआन रहैं।उनकी कबिताई केर महातम पूरे अजोध्या इलाके म ब्यापा हवै।हर दफा नेवरतन के मौके पर उनकी लिखी  सर्वमङ्गला केर पाठ उनके गांव जवार के मनई करत अहैं।अवधी समाज के सच्चे गायक पाठक जी केर नाव पढ़ीस,बंसीधर सुकुल,रमई काका के साथै बहुत आदर ते लीन जात अहै। ‘सर्वमंगला’ के दुइ सर्ग अवध विस्वविद्यालय के बी.ए.पाठ्यक्रम के -तिसरे साल मा विद्यारथिन बरे पढै खातिर तय कीन  गये हैं । सर्वमंगला महाकाव्य केरि कथावस्तु दुर्गासप्तशती ते लीन गइ है।लेकिन  ‘घर कै कथा’ मा कवि के अपनेहे सामाजिक जीवन केरि सच्चाई दर्ज किहिस हवै। पाठक दादा संस्कृत भाखा केर सच्चे  सिच्छक रहे ,वुइ गाथासप्तशती औ वज्जालग्ग क्यार खुबसूरत अनुवादौ कीन्हेनि रहै। सबके सुख कि औ भले कि चिंता कवि के मन मा सदा ब्यापी रही-

फूले फरे सभ्यता सब कै पनपे सब कै भासा 

संचित ह्वैहैं लोक सुखी सब जाए भागि  निरासा |(सर्वमंगला)

पाठक जी अवधी समाज औ अपने आसपास कि जिनगी के सुख दुःख बहुत नीके देखिन समझिन  औ लिखिन रहै| ‘घर कै कथा’ म गाँव जवार कि जिनगी के मनोरम चित्र भरे परे हवैं |किसान कि गिरिस्ती केर सामान देखा जाय -बिन चुल्ला कै घिसी कराही चिमचा मुरचा खावा|एक ठूँ फूट कठौता घर मा यक चलनी यक तावा। (- आजा)

हमरे गाँव क किसान आजौ अपनी जिनगी के अभाव से संघर्ष करत अहै |वू अबहिनो अभाव औ गरीबी  म हँसी खुसी रहत अहै | वहिकी गिरिस्ती बड़ी न भय है, मुला वाहिका आतमबल औ जुझारू पना कम नही भवा | गाँव कि ब्याहता के सादे  सौन्दर्य केर चित्रण देखे वाला है -‘दुलहिन गोड़े दिहीं महावर माथे बिंदु सलोना | ऊ छबि ताके सर्ग लोक से परी लगावे टोना |(घर कै कथा )’

देसी लोक सौन्दर्य केर तो खजाना उनकी कबिता म भरा परा है | असली सुन्दरता तो सादगी म होत हवै|गाँव कि दुलहिन जब पाँव म महावर और माथे पर बिंदिया लगावत अहै तो स्वर्ग  कि अपसरा ते जादा सुन्दर देखात अहै |कवि कहत अहै कि वहि गाँव कि दुलहिन कि सुन्दरता ते होड़ करै बदि स्वर्ग  कि अपसरा टोना टोटका करै लगती हैं | पाठक जी हमरे अवधिया समाज कि नस नस ते वाकिफ रहें |येहिकी तरक्की खातिर उनकी चिंता उनकी  कबिताई मा साफ़ देखात अहै | भैया सुशील सिद्धार्थ सन 1990  ‘बिरवा’ पत्रिका केर  अंक उनपर  निकारिन  रहै| बादि म औरी  कैयो पत्रिका के अंक पाठक जी की कबिताई  पर निकरे | अवधी भासा केर गौरव तब अउर बढ़िगा जब उनका पहला साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला |अब तो फैजाबाद म उनके नाम ते कौनिव संस्था बनी हवै| महाकवि विश्वनाथ पाठक की सुधि का नमन |

 

 

 

 

 

50.बिसुनाथ त्रिपाठी बिस्कोहरी 

बड़े आलोचक साहित्यकार डॉ.विश्वनाथ त्रिपाठी जी का पड़ोसी होए के नाते उनते बहुत निकटता बनिगै।गाहे बगाहे उनते बहुत सीखैक मिल जात अहै।अब फोन ते बतकही होत अहै।कोरोना काल ते पहिले तक उनते रोजुइ बतकही होत रही ।हर इतवार क डीयरपार्क म हम पंचन कि बैठकी लागत  रही । पहिली दफा  सन 1988 म उनते दि.वि.वि.कैम्पस म उनते मुलाक़ात भई रहै । वुइ तब हिन्दी विभाग म पढ़ावत रहैं हम संसकीरत म एम.फिल करित रहन ।कला संकाय की पार्क म घास पर इनकी गोष्ठी होत रहै । जेहिमा तबै के.जी.वर्मा,नित्यानंदतिवारी,अजय तेवारी,द्वारिकाप्रसाद चारुमित्र, सब हुवैं बैठिके बतकही करत रहैं ,हमहू येहि बतकही म श्रोता भाव ते बैठित रहै। गोबिंद प्रसाद,विनय विश्वास ,अरुण जेमिनी,बली सिंह ,हेमंत कुकरेती जैस कैयो हिन्दी के  बिद्यार्थी सब एक्कै साथ पार्क कि घास पर  बैठत रहैं ।हम येहि बैठकी ते सन 1994 तक जुड़े रहन ।वहिके बाद संजोग बना कि सन 1998 म हमहू दिलशाद गार्डन म रहै लागेन  ।तब ते रोज सुबेरे पार्क म तिरपाठी जी ते मुलाक़ात होय लगी ।तिरपाठी जी माने बिसुनाथ बाबू अब हमरे लिए घर के बुजुर्ग जस हवैं । मुला ई  हैं बड़े बतकहे,ई अपने अवध क्षेत्र  सिद्धार्थ नगर के बिस्कोहर गाँव के मूल रहवैया आहीं । ‘नंगातलाई का गाँव’ उनकी बहुत परसिद्ध किताब निकरी रहै ।येहि किताब म कुल उनके गाव बिस्कोहर  के किस्सा भरे हैं । मनई चाहै जेतना आगे बढ़ि जाय, चाहै जो जग जीति ले अपने गाँव जवार क कबौ नही भूलि पावत अहै। जो भूल जात अहै वो बढ़िया लेखक का बढ़िया मनई तके नहीं बनि पावत अहै।बिसुनाथ बाबू अपने पिता जी, अम्मा,बहिनी, लक्खा बुआ औ गाँव के ख़ास मनई ,घर बखरी सबकी तस्बीर  येहिमा खैचिन अहै ।अवधी कि माटी वाली खुसबू उनकी येहि किताब म साफ झलकत अहै ।हमका यह उनकी किताब बहुत पसंद है।लेखक डीयरपार्क दिल्ली की बत्तख औ अपने गांव घर दुनहू जगह ते एक्कै साथ जुड़ि जात हवै,यहै उम्दा लेखन पाठकन क जोड़े रहत अहै।तिरपाठी जी तुलसी,मीराबाई और अपने गुरुदेव हजारीप्रसाद द्विवेदी जी पर बहुत बढ़िया किताबै लिखिन अहै मुला अपने गांव देस कि खुसबू ते जेतना यह किताब महमहात अहै ओतना दूसर कौनो नहीं महकत बा।एक और इनकी खास किताब प्रारम्भिक अवधी आय।यही अवधी कि खुसबू केर कमाल आय कि इनका तमाम बड़े वाले पुरस्कार सम्मान मिल चुके हैं। 'प्रारम्भिक अवधी' तो अवधी भासा और व्याकरण कि बहुतै महत्वपूर्ण किताब आय।अवधी भाषा के इनके काम के लिए इनका 2014 म साहित्य अकादमी सम्मान मिला रहै।  अब वुइ नब्बे बसन्त पार कै चुके हैं।मुला उनके भीतर हमेशा के लिए समाए बिस्कोहर वाले बाबू बिसुनाथ अवधिया खाना पीना ,परब त्योहार औ रीति रिवाज़ खातिर मचलै लागत अहै।नौजवान लरिकन जस उमगै लागत अहै।

51.दादा गुरू 

गुरुवर हरिकृष्ण अवस्थी जी लखनऊ विश्वविद्यालय म हिंदी विभाग के अध्यक्ष रहैं।तब आपातकाल चलत रहै।हम बीए मा दाखिला लिया रहै।वुइ दबंग कांग्रेसी नेता तो रहबै कीन सात दफा स्नातक सीट ते एमएलसी रहे।छ फुटी कद रुआब दार चेहरा,खादी क कुर्ता पैजामा,नेहरू कट जैकेट पहिनत रहैं। वुइ जमाने म जादातर पढ़ैया लिखैया उनका दादा गुरू कहत रहैं । उनका जन्म 4 जुलाई सन 1917 क भा रहै।अब तो उनकी जन्मशती मनि चुकी हवै।लखनऊ विश्वविद्यालय परिसर मा उनका बंगला मिला रहै तो हुवैं उनका निवास रहै।हिंदी विभाग ते रिटायर हुइके वुइ  कला संकाय के  डीन बने  फिर उपकुलपति बने।अपने छात्र जीवन म वुइ छात्र संघ के अध्यक्ष बने रहैं। सामाजिक हित कै राजनीति उनकी जिनगी बनिगै रही।जब सन 1976 म हम बीए मा दाखिला लिया तो उनके पहिल दरसन भे  रहैं।

पहिला दिन रहै हिन्दी विभाग के कमरा नम्बर 14 मा  हिन्दी कक्षा खातिर पहुंचेन तो तनिक देर हुइ गय।आपातकाल म शिक्षक विद्यार्थी ते पाहिले कक्षा मा पहुंच जात रहैं ।  देखेन कक्षा म बहुत लहीमशहीम एक गुरू जी विराजमान रहैं वुइ हाजिरी लेत रहैं ।हम उनका देखके सिटपिटाय गयेन पहिले  हिम्मत न परी कि भीतर जाय के लिए पूछी। मुला आखिरकार हिम्मत बटोरि के  कहा- मे आई ,कम इन सर ? - वुइ तिरछी नजर ते  देखिन बोले- जी आइए,ये खाला जी का घर नही है ।यहाँ नेतागीरी नहीं चलेगी ,कल से ठीक समय पर आइये। ओके  सर, कहिके  हम दबे पाँव  हाल म चले गयेन ।यह पहिली मुलाकात रहै हम तब सफ़ेद कुर्ता औ पैजामा पहिने रहन ।तब वुइ हमका छात्र नेता समझ लिहिन  रहै | फिर वुइ सबका सुनाय  के कहिन - 'सब लोग ध्यान से सुन लीजिए हिन्दी विभाग की सभी कक्षाएं समय पर होती हैं यहाँ लेट लतीफी नहीं चलेगी और नेतागीरी बिलकुल नहीं । देश में आपातकाल चल रहा है अपने काम से काम रखिये ।यहाँ का सबसे बड़ा,दादा,नेता मैं हूँ । कुछ समस्या हो मुझसे सीधे कहिए।”   वुइ  कलफ किया झक्क दूध जस कुर्ता,अलीगढ़ी पैजामा औ पायेन म चमड़ा कि मोटे पट्टा वाली सैंडिल पहिने रहैं। उनका कद  छह फुट ते जादा होई। माथा चमकति रहै,गंभीर आवाज़ उनके कद पर फबत रहै।उनते हम कैसे बताइत कि सेफद कुर्ता पैजामा हमरे पिछले कालेज कि ड्रेस रहै।नए कपड़ा तबै न बनि पाए  रहैं तो वाहिका पहिनब हमार मजबूरी रही ।मुस्किल ते फीस जमा भइ रहै ।

 वुइ विद्यारथिन  के काम खड़े खड़े निपटाय देत  रहैं ।आर पार केर निर्णय लेत रहैं ।बादि मा कैयो दफे उनके बंगले पर आना जाना  भवा ।हमहू उनके स्नातक वाले वोटर बनि गएन तब उनके चुनाव कि मीटिंग म दौडधूप किया रहै ।तुलसीदास उनके प्रिय विषय रहैं ।कवितावली केर बहुत हिस्सा उनका  यादि रहै ,जल को गए लक्खन हैं लरिका ..पढ़ावत बेरिया दार्शनिक ढंग ते लौकिक बैदिक कैयो तना ते अर्थ बताइन  रहै ।

जब अवधी कि बात चलत अहै तो उनकी सुधि आय जात अहै।लखनऊ विश्वविद्यालय मा अवधी कि पढ़ाई उनही के समय मा चालू भै रहै। पढ़ीस,बंशीधर सुकुल,मृगेश,जैसे अवधी कबिन की कबिताई केर महातम तब्बै समझ म आवा रहै।हिन्दी विभाग म सूर्यप्रसाद दीक्षित जैसे  बिदुआन  की नियुक्ति उनहेके समय  भय रहै ।दीक्षित जी उनके विद्यार्थी तो रहबै कीन मुला जब वुइ दीक्षित जी का परिचय करावे बदि हमारी कक्षा मा आये तो कहिन- ‘जैसे दीपक से जलाया गया नया दीपक देर तक अधिक प्रकाश देता है वैसे ही दीक्षित जी मुझसे अच्छे योग्य शिक्षक हैं अब आप लोगों को यही पढ़ाएंगे |’ 

वुइ पुरान कांगरेसी  असली सामाजिक  नेता रहैं।अवधी कबि पंडित बंशीधर सुकुल के बड़े समर्थक औ प्रशंसक रहैं ।अपने घर पर हमेसा होलीमिलन कबि गोष्ठी केर आयोजन करत रहैं ।उपकुलपति बने तो अपन पूरी तनख्वाह विश्वविद्यालय क दान कै देत रहैं। उनका  देहांत 7 फरवरी 2001 क भवा।सुना है अब लखनऊ विश्वविद्यालय परिसर म उनके नाम ते सभागर बना हवै।वुइ सांचौ समाज के  बड़े सचेतक रहैं।उनकी सुधि का नमन।

 

52. मन हिंडोला  

जब ते सुना केहूकि मौत आक्सीजन कि कमी ते नहीं भय, तब ते मन हिंडोला हुइगा हवै। गजराज कक्कू कहेनि - जीका मरैक रहै वुइ मरि गये ।अब ज़िंदा बचे मनइन कि चिंता करौ ।सावन आवा है खुसी के गीत गाओ सब हरियर देखाई देई। असाढ़ बीति गा,दसहरी ख़तम हुइगा अबै चौसा,लंगडा आम देखात अहै । ई मौसम म घुघुरी या सिरका लसुनहा लोन  रोटी जो कुछ मिल जाय तो वहिका  नियामति समझौ ।किसानी घटी औ गाँव उजरे हैं, अब सहरुआ टीबी औ मोबाइल कि सभ्यता गावन म घुसि आयी हवै ।लेकिन अबहीं भीतर के गावन  मा सावन  कि  गौनई  सुनात अहै ।सावन भादों म पूरी धरती  नहाय जात अहै । हम कहा गजराज कक्कू - सावन के अंधरान मनई  का सब कैती हरियर सुझात अहै ।बाढ़ बरखा कि बदहाली के तमाम किस्सा सब कैती देखात अहैं।घोर गर्जना ते राम जी खुदै डेराय गए रहै।सीता के बिरह मा उनहुक मन हिंडोला हुइगा रहै - घन घमंड नभ  गरजत घोरा, प्रियाहीन डरपत मन  मोरा । तबाही भुखमरी बरबादी केर  चिराइंध  तुमका नहीं सुझात ? 

गजराज कक्कू बोले-मनभावन सावन कि बात करौ ।यू मौसम मनई के साथै चिरिया चुनगुन,पसु पच्छी  सब जीव जंतु के बरे सुखद होत बा।झींगुर ,मेझुका, गिंजाई ,बगुला,केचुआ,चिरैया,गिलहरी  सब धरती पर अपन घर बनावै लागत अहैं ,मुरैला नाचै लागत अहै । बरखा के दिनन  मा मेझुकन कि गौनई सुनिके तुलसी बाबा कहिन रहै- दादुर धुनि चंहु दिसा सोहाई, बेद पढ़हिं जनु  वटु समुदाई। मुला हमरे जवार  के मनई इनका बरखा के देउता मानत अहैं।अबहिनो  बरखा न  होए पर  पंडित के कहे मुहूरत पर गांवन मा  मेझुकी  औ मेझुका  केर बिहाव करावा जात अहै। मान्यता आय कि इनका बिहाव कराये ते अच्छी  बरखा होई।मुला  जब बहुत भारी बरखा हुइ जात अहै तो फिर नए जमाने मा  इनका  तलाकौ  करावा जाय लाग  अहै।काहेते  जब मेझुका मेझुकी पानी मा छप्पक छैया करत अहैं तब्बै पानी बरसत अहै ।माने इनके संयोग ते पानी बरसत हवै औ बियोग ते बरखा  बंद हुइ जात अहै ।मेझुका मेझुकी के बियाहे कि परंपरा मध्य परदेस के गावन म बैंड बाजा के साथ निभाई जात हवै।पूरी सान से इनका  बिहाव होत अहै ।हम कहा - कक्कू , सावन के कुछ गीत सुनाय देतिउ ।

गजराज कक्कू बोले- सावन पर हजारन  लोकगीत गाये जात हवैं।संयोग,बिरह ,तीज त्यौहार,भोले बाबा औ,झूला गीत  तमाम तन के गीत चलत अहैं । ...सावन आइ गये मनभावन बदरा घिरि घिरि आवै ना ।किसान के लरिका बिटिया मेघा ते पानी और गुड़धनिया मांगत  अहैं। माने मेघा जरूरत भर पानी दे -.. काले मेघा पानी दे पानी दे गुरधानी दे ।सब बिटेवा मेहेरिया अपने हांथे  म मेंहदी सजाये घुमती हैं । सोमबार के दिन भोलेबाबा  कि झांकी  सजाई जात अहै, उनकी महिमा के  गीत गाये जात अहैं -सिवसंकर  चले कैलास कि बुंदिया पड़ने लगीं,सावन कि आयी बहार कि बुंदियाँ पड़ने लगीं ।सावन तो भोलेनाथ केर महीना आय ।मौसम कि बदहाली के कारन  हमार चित्त थिर न रहै मुला गजराज कक्कू सावन कि महिमा पर अपन भासन देत रहे , फुहार वाली सावन कि घटा केर वर्णन करत रहे  । कहेनि - जब दस बीस मेहेरुआ याक साथ गौनई करती रहैं तब तो बहुत नीक लागत रहै ।सावन केर महिना प्रेम आनंद औ गर्भाधान केर समय आय न जाने कतने जीव येहि दिनन  मा पैदा होत अहैं ।न मालूम कतने बिरवा,बेल औ घास येहि समय धरती पर जामि आवत अहै ।सीरी हवा औ फुहार के मौसम ते सबियों धरती कि गर्मी सेराय जात अहै। हमरी लरिकईं मा नीबीं पर झुलुवा परि जात रहै । निम्बिया की डार पर मोटकये रस्सा ते मजबूत पटरा बांधिके गौनई के साथ  सनासन झुलुवा चलत रहै ।लरिका बिटिया साथी सहेली सब सावन भर  झूलत रहैं ।मइके आयी बिटेवन कि गौनई ते पूरा गाँव चहकत रहै  ।सबके सुख दुःख सुने सुनाये जात रहैं।सावन के झूले पड़े, सैंया जी हमें भूले पड़े।कक्कू कि सावन महिमा सुनिके अब  हमहुक सब हरियर देखाय लाग अहै। मालुम होत आय कि हमहू सावन के हिंडोले मा झूलित अहै।

53.अवधी दिवस

'तुलसी पावस के समय,धरी कोकिला मौन। अब तो दादुर बोलिहैं, हमें पूछिहै कौन।’ बेला कुबेला केर ध्यान बाबा तुलसीदास का हमेसा रहत रहै । सब नीकै नीक कब्बो नहीं  होत ,सब रितुन के कुछ फायदा हैं  तो कुछ नुकसानौ होत अहै । सही टेम केर महातम  समझदार मनई जानत अहै। जो अपने ब्यौहार मा सही समय केर पालन करत अहै वहै अकिलमंद समझा जात हवै।बुरे बखत मा केतनिव नीक  बात कही जाय तो वहिका कौनव मतलब नहीं रहत ।हमरे अवध के नेता यह बात नीके जानत समझत हवैं। सैकरन बिधायक,पचीसों सांसद, हजारन छोटकए नेता अवधी म अपन परचार करत अहैं । वोट मांगत बेरिया उनका अवधी बोली बानी यादि आवत अहै,मुला अवधी भासा के बिकास खातिर जब कुछ करेक होत अहै तो सब कन्नी काटै लागत हवैं।इनते प्रभु राम  औ तुलसीदास कि महिमा पर घण्टन भासन कराय लेव खुस हुइ जैहैं।लेकिन अवधी भासा संस्थान या अवधी अकादमी बनावै कि बात कोऊ करे तो कन्नी काट के भाजि लेत अहैं । ई सब अवधिया नेता अपनी जातिभासा के बरे कुच्छो न करिहैं।

  अवधिया मनई मिलिके तुलसी बाबा कि जयंती के दिन अवधी दिवस मनावत अहैं।यहौ सांचु आय कि तुलसीदास ते बड़ा अवधी केर दूसर कौनो कबि न भवा।दुनिया जहान लन्दन फिजी मारीशस कनाडा चहै जहाँ चले जाओ तुलसीदास कि कबिताई कौनव न कौनव रूप म मिलिन जात हवै। रामचरितमानस, कवितावली, दोहावली के अलावा उनके लिखे चालीसा औ आरती पूरी दुनिया मा गाई बजाई जाती हवैं।अवधी बिस्वभासा आय ,तुलसीदास बिस्व कबि अहैं| उनकी कबिता दुनिया के तमाम देसन म पढ़ी पढ़ाई जात अहै।मुला अवधी के बिकास मा सरकार केर कौनो हाथ नहीं है ।अपने अवध मा अवधी भासा के नाम ते कौनिव सरकारी संस्था लौ नहीं बनी। सरकार के लिए यह बहुत सरम औ दुख केर बात आय। लेकिन भैया का करिहौ चुनाव आवा जावा करिहैं नेता अवधी मा वोट मंगिहैं ।तुम सब जने फिर वुनका जिताय देहेव कौनिव बात नहीं । मुला  यू जान लेव कि  गोरखनाथ, कबीर, जायसी,तुलसी कुतुबन, मंझन  कि सैकरन  साल पुरनकी अवधी अब धीरे धीरे बिलाय रही हवै।पुरनके सबद जादातर खियाय गए हैं ।

 काल्हि सपने म दीख कि सरजू तीरे अपने जनमदिन पर तुलसी बाबा प्रगट भये तो सरजू मैया वुनका चीन्ह लिहिन बोली- ‘आव पुत्र, बड़े चिंतित देखात हौ ? हमरी गोदी  मा नहाय धोय के बिसराम करौ,फिर राम लला के दरसन कीन्हेव। आज तुमार जन्मदिन आय तुमरे गौरव केर बखान अब दुनिया भरेम होत अहै ।’ तुलसी बोले - प्रणाम मैया, लेकिन तुमरे तट पर अबलौ  कौनो अवधी भासा केर इसकूल नहीं बन पावा। अब जब रामलला केर घर दुआर बनि रहा है तो वुनकी औ वुनके सहपाठिन कि पढाई खातिर  अवधी संस्थान जरूर बनेक चही ।’ सरजू मैया बोलीं- बेटवा , हम तो केहूते कुच्छौ नही कहित, हमरे करेजे म तो राम लछिमन सबै समाये हवैं ।ई ढोंगी सब सिरी राम, सिरी राम करत अहैं, मुला पानी बानी केर महातम ई का जानैं ? अवधी के बिकास खातिर डबल इंजन वाली सरकार के पास कौनिव जोजना नहीं है|सरकार ते कुच्छो न होई  । बस कुछ तुम्हरी बिरादरी के नए कबि लेखक अवधी बिकास के बरे चिंतित अहैं।उनकी खातिर कौनो संदेस होय तो कहौ’ तुलसीदास कहेनि -- ‘ मैया,हम का संदेस देई ? बस अवधियन ते कहि दिहेव कि हमरे जन्मदिन पर  सब जने अवधी दिवस मनावैं, भाखा रही तो रामचरितमानस के अखंड पाठ केर महातम बना  रही ।’ तुलसीदास का अपने दोस्त रहीम कि बात याद आयी- ‘रहिमन चुप ह्वै  बैठिये देखि दिनन को फेर ।’ कुबेला समझ के तुलसी बाबा सरजू मैया क परनाम कैके राम घाट ते फिर  अंतर्धान हुइगे । जय अवधी जय अवधिया ।जय जय  तुलसीदास  ।

54. सोक के रंग

पुराने लखनऊ मा शिया सुन्नी दुनहू रहत अहैं।अगल बगल मर्सिया कि मजलिस फातिहा ते सुरू  होत रहै।रात रात भर  घरन ते चिल्ली तड़ाप औ मर्सिया की वाली धुन सुनाई देत रहै।कबौ मधुर कबौ दुख भरे सुर तब हलकान कै देत रहैं।मोहर्रम मा तो रातोरात मर्सिया सुनेक मिलत रहै।हमार घर दरगाह हजरत अब्बास कि दरगाह के पास हवै।हिन्दू मुसलमान सब हिंया एक्के साथ रहत अहैं। मुहर्रम के मौके पर रंगबिरंगी पन्नी वाले  लाल हरे नीले  ताजिया निकरत रहैं। उनके रंग हमका अपनी तरफ खैंचि लेत रहैं।नौजवानन की भीड़ रोवत छाती पीटत वहिके साथ चलत रहैं ।कर्बला मा लाल अंगारन पर चलै वाले  औ अपनी पीठी पर  कोड़ा मारै वाले मनई खून ते नहाय जात रहैं उनका देखिके  जिउ डेराय  जात रहै । सब समझावत रहैं कि ई दुसरे धरम के त्योहार मा न घुसो मुला कौतुक देखे बिना जिउ न मानत रहै। कुछ मुल्ला रेवड़ी औ बतासा बांटत  रहैं  । नर्गिस आपा रेवड़ी लैके हमहुक देती रहैं| घर वालेन ते बचिके बचपने मा हमहूँ वुइ रेवड़ी खावा रहै।कुछ सुन्नी उनके जलूस केर बिरोध करत रहैं, तो पुलिस होत रहै । सड़क पर लोभान केर धुंआ महकत रहै | हाय हसन हम न हुए,या अली, के नारा लागत रहैं| तब जादा समझ न पाइत रहै मुला भीड़ मा घुसिके वहु सब धरम करम हमसब लारिकई मा देखै जाइत रहै । तब नर्गिस आपा औ अहसान भाई साथ रहैं |तब हिन्दू मुसलमान सरदार इसाई सब बिरादरी के लरिका एकै साथ खेलत रहैं।

 मोहर्रम के तमाम सोकगीत अबहिनो  गाये जात अहैं।लखनऊ, फ़ैजाबाद,हैदराबाद,पटना,भोपाल जैसे सहरन मा मोहर्रम के ताज़िया जोर सोर से निकारे जात अहैं। अब तो नयके लरिका बिटेवा यूट्यूब पर मुहर्रम के झरनी गीत गावत बजावत अहैं।मुहर्रम गम केर  महिना  आय शिया लोग  ई महिना के नौवें या दसवें दिन रोजा रखत अहैं। मुहर्रम म पैगम्बर हज़रत मोहम्‍मद के नाती हज़रत इमाम हुसैन समेत कर्बला के बहत्तर  सहीदन  कि सहादत कि याद मा  मातम कीन  जात अहै।हमका लागत आय कि  अवधी कबिताई मा मर्सिया लोकगीतन  कि परम्परा यही तना सुरू भै होई । जलूस के बादि  सब ताजिया कर्बला म दफ़न कीन जात हवैं ।अबकी  कोरोना के कारन जलूस पर पाबंदी  हवै। कांवड़ियन के जलूस औ सब परब कोरोना के मारे बंद हवैं।

 अवधी समाज मा सोक के उत्सव औ सोक के गीतन  की यह परम्परा अमीर खुसरो, जायसी ते लैके तमाम सूफी कबिताई मा देखाई देत अहै ।नागमती बिरह के बरनन मा जायसी करुण सोक लिखिन रहै वहिकी बुनियाद कहूं न  कहूं मर्सिया कि परम्परा के साथ देखी जायेक चही - पिउ सों कहेव संदेसड़ा हे भौरा हे काग , जो धनि बिरहै जरि मुई तेहिक धुंआ मोंहि लाग । यहिके साथै  पद्मावती के सती होयेके बादिव जायसी लिखत अहैं  -जौहर भइ सब इस्तरी, पुरुष भए संग्राम।बादसाह गढ चूरा, चितउर भा इसलाम । माने सब महेरिया सती हुइ गयीं मनई लड़ाई मा मरि गए बादशाह गढ़  पर काबिज हुइगे औ चित्तौड़ पर इसलाम केर कब्जा हुइगा । मुला  जायसी की कबिताई मा यू संदेस खुसी के बजाय  सोक केर मालुम परत हवै |उनकी कबिताई मा सोक  के बड़े मार्मिक रूप देखात अहैं । हमरी समझ ते वुइ अवधी भासा मा सोक औ करुना के महाकवि  कहे जाय सकत अहैं । आदिकबि बाल्मीकि के मुंह ते जो दुनिया कि पहिल कबिता फूटि रहै वहौ सोक केरि प्रतिक्रिया रहै।याक चिरैया क तड़पत देखि के बाल्मीकि बहेलिया का सराप दिहिन रहै - मा निषाद प्रतिष्ठामं त्वमगम: शाश्वती समा:।यत्क्रौंच मिथुनादेकम अवधी: काममोहितम। माने सोक कि कबिता ते हमार साहित्य सुरू भवा | सोक गीतन केर परम्परा दुनिया कि कइयो भासा मा अपनी तरह ते झलकत अहै।दुःख औ सोक मनई का बाँधि  लेत  अहै ।अब समझि पाएन कि सोक के सुर अलगै होत है। सोक के त्यौहार केर रंग बहुत चटक  होत अहै। अफगानिस्तान कि धरती पर चौतरफा मौत औ सोक  कि चीखें सुनाई देती हवैं।कोरोना काल मा यू सोक डबल हुइगा हवै।बस कालदेउता हमरे दुखन का मांजि दे,परवरदिगार ते बस यहै बिनती  करित हन |

55. जहांतक भाला जाए 

पानीपत के  गाँव के  किसान परिवार ते निकरे नीरज चौपड़ा अपने देस खातिर  टोकियो ओलम्पिक ते गोल्ड  मेडल जीत लाये । एतवार का यह खबर सब पर भारी रहै । हमरे देस के तमाम खिलाड़ी टोकियो गे रहैं कुछ खिलाड़ी मेडल जीति के आये मुला कुछ खिलाड़ी मन जीति लिहिन । पीवी सिंधू ,महिला हॉकी टीम, पुरुष हॉकी कि टीम, कुस्ती वाले सब बहुत नीक खेले मुला भाला फेंक मा   जब गोल्ड कि खबर आयी , तब तो  नवा इतिहास बनिगा ।जबते अपनी  कटोरी दाई या खबर  सुनीं हैं  तब्बै ते वुइ हुलहुलानी घुमती हैं , बहुतै मगन  हवैं।हमते फोन पर कहै लागीं - भैया ,तुमहू ई सोना जीतै  वाली जगह काहे नहीं गयेव ? हम कहा - दाई, हुवां सब कोई  नहीं जाय सकत, वहिकी बदि सबकुछ होम करैक परत अहै ।  बड़ी जांच पड़ताल के बादि  नौजवान  हीरा चुने जात अहैं ।सबके बस का नहीं है ।यू का साईकिल रिक्सा थोरे आय कि सबै  चलावे लगिहैं ? दाई अपने देस केर नाम पूरी दुनिया मा ऊंचा करै वाले नीरज चोपड़ा का बधाई देव ।नीरज तो  मिल्खा सिंह औ पीटी  उषा ते बहुत  आगे निकरि  आये हैं ।

 कटोरी दाई बोलीं- भैया हम यू सब जादा नहीं जानित मुला गोल्ड लावे कि खुसी हमरे करेजे मा अंबाय नही रही है । हम  कहा  दाई, खुसी काहे नहीं अंबाय रही है ? येहिमा कौन जरे झरसे कि बात आय ?’ दाई डपटि के बोलीं तू बौखल हौ ? खुसी अतनी जादा हवै कि वह मन मा अंबाय नही रही माने छलकि रही हवै।’ हम कहा- तुम  ठीक कहती हौ दाई । भाला फेंक मा महराज  युधिष्ठिर बहुत माहिर माने जात रहैं, वहिके बादि हल्दीघाटी  कि  लड़ाई केर बहादुर सेनानी महाराना  प्रताप केर नाव आवत अहै  । अब यही लिस्ट मा अपने भैया नीरज केर नाव दर्ज हुइगा हवै,मुला नीरज भैया तो किसान के घर ते निकरे  खिलाड़ी आंय वुनका राजा महाराजा या लड़ाका  न समझेव  । ख़ास बात यहै आय कि ई सब मेडल लावै वाले लरिका बिटेवा निम्न मध्यवर्ग के  किसान  परिवारन ते निकर के आये हवैं ।ई सब अम्बानी अडानी  के खानदानी न आहीं , ई नेता पुत्र औ फ़िल्मी रील वाले कलाकारन के घर के  चमकुआ चश्मोचिराग न आहीं । कटोरी दाई कहेनि- खिलाड़ी बनी मेहनती बिटेवन के चमकदार चेहरा देखिके  फेयर लबली वाली चमकार पर कालिख पुति गय ।नाजुक बदन हिरोईनी बनी इन सबकी सुन्दरता खिलाड़िन के मन की सुन्दरता के आगे पानी भरत  आय, मानौ  पोछा फटका लगावत अहै।'  हम कहा -मेहनति औ पसीना कि खुसबू बहुत दूर तके  फैलत अहै । पी.वी.सिंधू औ ई हॉकी कि खिलाड़ी बिटेवा सबै बिस्व सुन्दरी ते कम न हवैं ।'

कोरोना काल मा हवा हवाई वाला बिग्यापन पर टिका बज़ार बैठाने आवा हवै। हमका देखात आय कि नई सदी के तमाम हिसाब किताब ई नएके जमाने के लोग करिहैं ।खैर मुसीबतन पर तो रोजुइ बात कीन जात अहै अब ओलम्पिक चार साल बादि आयी तो आज येहिकी चर्चा कीन जाय । नीरज चोपड़ा का गोल्ड मिलाय के  अबकी कइयो मेडल भारत के खिलाड़ी  जीति के लाये हवैं । कोरोना काल मा अतनी मेहनत ई सब खिलाड़ी किहिन तो सबका बधाई ।मुला यही कोरोना काल मा  अबहीं कुछ दिन पाहिले  भाई वाहिद अली वाहिद कोरोना ते चले गए।वाहिद भाई कबिसम्मेलन के मंच ते जुड़े हिन्दी अवधी के  बड़े खुबसूरत कबि  रहैं। उनके जाएकि अबै  कौनिव उमिर न रहै मुला उनकी जिन्दगी अतनेनि रहै । आज जब भाला फैंक मा नीरज चोपड़ा केर नाव आसमान पर फहरि गवा तो वहिके संगै वाहिद भाई कि कबिताई सोशल मीडिया पर चमकै लगी । उनकी कबिताई  याद आवत अहै -

दर्द कहाँ तक पाला जाए युद्ध कहाँ तक टाला जाए |

तू भी राणा का वंशज है फेंक जहां तक भाला जाए||’ 

भाला फेंक मा नीरज चोपड़ा 87.58  मीटर की दूरी तक भाला फेंक के दुनिया क देखाय  दिहिन औ गोल्ड जीत लाये ।ई नये कीर्तिमान खातिर नीरज सहित देस के सब खेलप्रेमिन  का बधाई ।

56.तालिबानी भौकाल

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